तैयार होकर अस्पताल कौन जाता है
तैयार होकर अस्पताल कौन जाता है
"ज़रा आईना तो देना बहू! एक बार अपना चेहरा तो देख लूं। दो दिनों से बाल भी नहीं बनाया है। ऐसे में अगर बाहर जाऊंगी तो पता नहीं कैसी दिखूंगी? और लोग मुझे देखकर पता नहीं क्या सोचेंगे?"
आशा जी ने अपने बिखरे हुए बालों को किसी तरह बाएं हाथ से समेटने की कोशिश की। जब एक हाथ से समेटा नहीं गया तो दूसरा हाथ उठाने की कोशिश में दर्द से कराह उठीं।इस उमर में हड्डियों का दर्द लाजिमी है। लेकिन उनके बाएं हाथ में फ्रोजन शोल्डर हो गया था। और वह दर्द से परेशान थीं।इन दिनों एक दिन सुबह गिर जाने की वजह से अमोघ जी के घुटने में भी थोड़ी चोट आई थी सो बहुत दर्द था और डॉक्टर ने उन्हें आराम करने कहा था। नहीं तो वही आशा जी को अस्पताल लेकर जाते। इसी बीच आशा जी के दाएं हाथ में गहरा दर्द शुरू हो गया था।
कितना तो कहने के बाद मुन्ना यानि उनका बेटा राजीव उन्हें डॉक्टर के पास ले गया था। पहले तो वह उन्हें जनरल फिजिशियन के पास ले गया। लेकिन जब उनकी बेटी विशाला ने फोन पर भाई को कहा कि,
"भैया! मां की हड्डियों में दर्द है तो जनरल फिजिशियन के पास मत ले जाओ। उन्हें किसी अच्छे ऑर्थोपेडिक के पास ले जाओ!"
तब कुड़कुड़ाते हुए रोमा बोली,
"हम मां जी का इलाज तो करवा ही रहे हैं। अगर विशाला जीजी को इतनी ही फिक्र है तो क्यों नहीं वहीं आकर इनको डॉक्टर के पास ले जाती हैं। अब भला रोज-रोज कोई कितनी छुट्टी ले सकता है?"
यह कहते हुए अपने पति से झूठी सहानुभूति दिखाई तब आशा जी कुछ कहतीं कि उन्होंने गौर किया कि... रोमा से यह सुनकर मुन्ना का चेहरा भी तन गया था । कदाचित उसे भी लग रहा था कि वह मां के पीछे बार बार छुट्टी लेकर अपनी छुट्टियां बर्बाद कर रहा है।
जबकि रोमा का कहना था कि,
" छोटा भाई संजीव बैंगलोर में आराम से रहता है। बस साल में दो या तीन बार छुट्टियों में आता है। और दिखावे के लिए मां जी और बाबूजी की परवाह करता है। कुछ पैसे हाथ में थमा जाता है। इसके अलावा और कोई जिम्मेदारी नहीं निभाता। और घर की इकलौती बेटी विशाला भी जब मायके जाती है तो सिर्फ अपनी मां को प्यार करती है और अपने पिता की परवाह करती है। बाकी वह यह जताने से नहीं चूकती कि उसके माता-पिता की देखभाल ठीक से नहीं हो रही है!"
यह बात और है कि शहर के पॉश एरिया में यह तीन मंजिला मकान बाबूजी ने लगभग राजीव के ही नाम करने का निश्चय किया है। और मां के सारे गहनों पर रोमा की नजर है। शायद संजीव की बीवी शुभ्रा और विशाला को पता भी ना हो कि आशा जी के पास कितनी अच्छी-अच्छी व कीमती साड़ियां और जेवर हैं। वह सब रोमा ने अपने नाम से सोच रखा है।
बहरहाल....
अभी बात हो रही थी कि ...
आज आशा जी को पहली बार फिजियोथेरेपी के लिए जाना था। दो दिनों से घर की कामवाली लक्ष्मी भी नहीं आई थी। नहीं तो वही आशा जी के बाल बना दिया करती थी। इन दिनों उनका दाहिना हाथ उठता नहीं था, और दाहिने पैर में भी बहुत दर्द था। इसलिए वह बहुत सारे काम खुद से नहीं कर पाती थी।
आज अस्पताल जाते हुए उन्हें लग रहा था कि उनका चेहरा भी ठीक नहीं लग रहा। कपड़े भी ढंग से नहीं पहने और बाल भी बिखरे बिखरे से थे। इसके पहले जब कभी वह घर से बाहर निकलती थी तो तैयार होकर ढंग से निकलती थी। तीन दिन पहले जब डॉक्टर के पास गई थी ।तभी लक्ष्मी ने उनके बाल अच्छे से बना दिए थे। और चेहरे पर उन्होंने क्रीम पाउडर भी लगाया ही था। पर आज उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था।
उन्होंने जब रोमा से आइना मांगा ।तब रोमा ने मुंह बिचकाकर कहा ,
"आप भी हद करती हैं मां जी ! भला हॉस्पिटल इतना सज धज कर कौन जाता है?"
सुनकर आशा जी के साथ बाबूजी को बहुत बुरा लगा।आशा जी कुछ कहती। उसके पहले ही बाबूजी ने कहा,
" बहू क्यों नहीं तैयार होकर जाएंगी आशा जी ?.दर्द तो उनके हाथ में है ,चेहरे में थोड़ी । और कहीं भी बाहर जाए तो इंसान को ढंग से पहन ओढ़कर जाने से आत्मविश्वास आता है और सामने वाले पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है!"
बाबूजी के इतना बोलते ही राजीव और रोमा एकदम सकते में आ गए।हमेशा से मितभाषी बाबूजी का ऐसे तेज़ आवाज़ में बोलना सबके लिए अप्रत्याशित था।और... आशा जी मंत्रमुग्ध होकर अपने सहचर को निहार रही थीं। जिन्होंने आज उनकी मद्धिम आवाज़ में अपनी आवाज़ मिलाकर उनका साथ दिया था।इस उम्र में उनका मान रखा था अमोघ जी ने। क्योंकि वह अच्छी तरह जानते थे कि उनकी पत्नी हमेशा टीपटॉप रहना पसंद करती हैं। और अपने रख रखाव और पहनावे को लेकर बहुत सजग रहती थीं।वैसे... इसकी तह में अमोघ जी की ही तो अद्म्य इच्छा हुआ करती थी कि उनकी पत्नी हमेशा सज धजकर रहा करे।
तभी तो...आज ज़ब आशा जी के तैयार होकर बाहर जाने की चाहत पर बहू के टोकने पर उनसे नहीं रहा गया था।उनकी डांट सुनकर रोमा और राजीव चुपचाप अपने कमरे में जाने को उद्धत हुए।क्योंकि...अभी भी उन्हें एक बात का डर था कि कहीं यह मकान और यह संपत्ति उनके हाथ से ना चला जाए ।
क्योंकि यह मकान बाबूजी ने मां के नाम से बनवाया था। सारे कागजात भी आशा जी के नाम पर ही थे। और वह कानूनन इसे गिफ्ट के तौर पर राजीव के नाम करने वाली थी। क्योंकि संजीव ने बेंगलुरु में फ्लैट खरीद लिया था और विशाला अपनी ससुराल में सुखी थी। मकान की रजिस्ट्री अभी नहीं हुई थी। क्योंकि अभी संजीव और विशाला से (एन.ओ.सी.)
नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट बनवाना बाकी था।कुल मिलाकर राजीव और रोमा का यह तर्क था किया था कि,
" क्योंकि हम दोनों ही बाबूजी और मां की देखभाल करते हैं। इसीलिए यह मकान उनके नाम कर दिया जाना चाहिए!"
वैसे... देखभाल के नाम पर दोनों बस मां बाबूजी के साथ रह भर रहे थे।
अमोघ जी सरकारी नौकरी के क्लास वन ऑफिसर के पद से रिटायर हुए थे। सो उन्हें अच्छी खासी पेंशन मिलती थी। घर में कामवाली के अलावा एक खाना बनानेवाली थी और बाहर का काम करने के लिए उनका ड्राइवर था। जो उनकी गाड़ी भी चलाता था और घर के छोटे मोटे काम जैसे सब्जी भाजी लाना और दवा वगैरह लाने का काम कर दिया करता था।और...राजीव की प्राइवेट कंपनी की नौकरी से इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी जो वह इतना तामझाम अफोर्ड कर सके।तो ...एक तरह से राजीव अपनी स्थिति समझता था। पर रोमा का तो दिमाग ही सातवें आसमान पर ही चढ़ा रहता था।
फिर भी आज बाबूजी की तेज आवाज से वह भी सकपका गई थी।अभी तक बाबूजी ने यह मकान गिफ्ट के तौर पर ही राजीव (मुन्ना) के नाम करने का सोचा भर था और वसीयत बनवाई तो थी पर अभी तीनों बच्चों के साथ मिलकर निश्चय करनेवाले थे कि यह मकान राजीव के नाम रजिस्ट्री की जाए या उसे गिफ्ट के तौर पर दिया जाए। कानूनन रजिस्ट्री में कोई छः सात लाख का खर्चा था जो उन्हें अपनी तरफ़ से देना पड़ता और अगर मकान गिफ्ट के तौर पर दिया जाता तो उसमें दो प्वाइंट और थे। एक तो ये कि चूंकि मकान आशा जी के नाम था सो वह कभी भी गिफ्ट के कागजात रद्द कर सकती थी। और रजिस्ट्री तब तक नहीं हो सकती थी जब तक उस मकान के अन्य दो दावेदार संजीव और विशाला एन ओ सी पर साइन ना कर दें। मतलब कुल मिलाकर यह मामला भी अधर में ही लटका हुआ था। अगर अभी मां पापा नाराज हो गए तो यह वसीयत रद्द भी हो सकती थी । यह बात राजीव अच्छी तरह जानता था। उसने यही बात रोमा को भी समझाया कि,
"रोमा! तुम थोड़ा शांत रहा करो। अभी मकान की रजिस्ट्री अभी हमारे नाम नहीं हुई है। क्योंकि संजीव और विशाला से एनओसी लेना बाकी है!"
अब राजीव ने रोमा को आंखों के इशारे से चुप रहने को कहा और दोनों अपने कमरे में चले गए।
थोड़ी देर बाद...
रोमा और राजीव जब बैठक में आए तो बाबूजी मां की चोटी बना रहे थे। और आशा जी आईने में अपना चेहरा निहार रहीं थीं।उसके बाद का दृश्य शायद किसी भी युवा जोड़े को अपने जीवनसाथी से प्यार और व्यवहार के कई पाठ पढ़ा सकता था।
जब अमोघ जी आशा जी के बाल बनाकर उनकी साड़ी के प्लीट्स ठीक करने के बाद उनके चेहरे पर क्रीम पाउडर लगा रहे थे।
रोमा और राजीव उम्र के इस पड़ाव का प्रेम देखकर आश्चर्य से भर उठे थे।
और फिर... जब आशा जी तैयार होकर अपने सहचर का हाथ पकड़कर हॉस्पिटल जाने के लिए निकलीं तब अमोघ जी बड़े प्यार से उन्हें निहार रहे थे। चुंकि उनके घुटने में दर्द था इसलिए वह अपनी पत्नी के साथ नहीं जा पा रहे थे। पर पूरे रास्ते आशा जी को अपने पार्श्व में अपने पति की उपस्थिति का भान होता रहा था।
अब रोमा ने भी कसम खा ली थी कि वह अपनी सास के सजने संवरने पर कुछ नहीं कहेगी।
आखिर... उसे मकान जो अपने और राजीव के नाम करवाना था।
और...
इस बार दिवाली पर जब दोनों बच्चे संजीव और विशाल आए । तब जब छोटी दिवाली की शाम पूरा परिवार इकट्ठा हुआ तभी अमोघ जी और आशा जी ने साथ मिलकर वसीयत के सारे पेपर तीनों बच्चों को दिखाए। उनके अनुसार उस मकान पर तीनों बच्चों का बराबर का हक था। यह देखकर राजीव और रोमा का मुंह लटक गया। लेकिन अपनी तरफ़ से माता पिता ने अपने तीनों बच्चों के हक में यह सही फैसला किया था।
उन पेपर्स को देखकर राजीव और रोमा कुछ कहने ही वाले थे कि अमोघ जी ने कहा कि,
"इस घर पर सबका बराबर का हक है। साल में एक या दो बार ही विशाला और संजीव आते हैं। लेकिन दोनों अक्सर इस घर पर खर्च करते हैं। कभी संजीव इस घर का पानी का टैंक नया लगवा जाता है तो कभी विशाला नई टीवी खरीद लाती है। पिछली बार संजीव नया इनवर्टर लगवा गया था और यह बड़ा सोफा और दीवान उनदोनों संजीव ने दिलवाया। ऐसे ही विशाला भी घर पर खर्च करती ही रहती है पिछले दिवाली पर नया फ्रिज विशाला ही तो दिलवा कर गई थी। तो जब तीनों मिलकर इस घर पर खर्च करते हैं तो हक भी इस घर पर तीनों का ही हुआ ना?"
"पर… बाबूजी हम दोनों तो आपके साथ साथ ही रहते हैं ना? वो दोनों तो नहीं रहते?"
"बेटा! यह बात तुमने सही कहा कि, तुमदोनों हमारे साथ रहते हो लेकिन साथ नहीं देते!"
अब विशाला ने भी मूंह खोला,
"भैया ! मैं हर बार मैं देखती हूं कि आप और भाभी अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगे रहते हैं। और अम्मा बाबुजी पर ध्यान नहीं देते!"अब संजीव भी कैसे चुप रहता ?
उसने भी कह ही दिया कि,"राजीव भैया और भाभी ! आपने अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाई नहीं है। तभी हमें हमेशा मां बाबूजी की चिंता लगी रहती है। मैं तो हर महीने कुछ पैसे बाबूजी का अकाउंट में जमा कराता हूं। और विशाला भी घर का कितना ख्याल रखती है। हमें इस मकान का लालच नहीं है। लेकिन अगर बाबूजी ने प्रसाद के तौर पर यह धरोहर हमें सौंपी है तो हम इसके लिए इंकार भी नहीं करेंगे। क्योंकि यह मकांत हमारे लिए अम्मा बाबूजी के नाम की धरोहर है!"
राजीव व रोमा अब क्या कहते ....?
क्योंकि इस घर पर दोनों एकदम खर्च करते नहीं थे। और ऊपर से अधिकार भी जताते थे। अब उन दोनों को समझ में आ गया था कि भले ही अमोघ जो और आशा जी उन्हें प्यार करते हों, इनकी सारी जरूरतें पूरी करते हों। लेकिन दोनों समझदार भी थे। और अपने बुढ़ापे को नर्क नहीं बनाना चाहते थे।
तभी तो अपनी व्यवहारिक समझ का परिचय देते हुए उन्होंने अपने रहते अपनी संपत्ति तीनों बच्चों में बराबर बांट दी थी।ताकि सब मिलकर उनकी देखभाल करें और आगे भी मिल जुल कर रहें।
आज के माता-पिता को ऐसी ही समझदारी का परिचय देना चाहिए। जिससे उनका बुढ़ापा खुशी से गुजरे और उन्हें किसी का मोहताज ना होना पड़े।
