Akansha Rupa chachra

Inspirational

4.9  

Akansha Rupa chachra

Inspirational

तारा की व्यथा

तारा की व्यथा

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बात सर्दी की ठिठुरूती रात की है।कार की हैड लाईट की रोशनी तारा पर पड़ी। सहमी हुई कराहती सी ङरी- ङरी तारा गली के आवारा कुत्तो की चोटो के प्रहार से खून से लथपथ फुटपाथ पर बैठी थी।भूरा रंग सुदंर छवि बहुत प्यारी सी तारा •••••उसकी हालत देख कर दुख का अंदाजा लगाया जा सकता था।

मै उसे उठा कर अपने साथ ले आयी। गर्म पानी से उसे साफ कर उसके जख्मो पर मरहम लगाई। खाने के लिए दूध पाव रोटी दी।

जब मै सुबह उठी तो मैने देखा तारा मुझसे अपने दुखो की नालिश करना चाहती थी। अनोखा रिश्ता स्नेह , अपार प्रेम से बना । मुझे हैरानी थी कि तारा की सूनी आँखो मे अपनेपन के भाव थे पूरे घर मे मेरे पीछे -पीछे खुशी से घूमती तारा पूँछ हिला कर मेरे चारो ओर चक्कर लगाती ।कम समय मे सबके साथ धुलमिल गई थी।

मुझे कुछ जरूरी काम के कारण पूना जाना पडा।सात दिनो के बाद जब मै लौटी मुझे बुखार आ गया। तारा का स्नेह देख कर मेरी आँखो से अश्रुधारा बहने लगी। चक्षुश्रवा हम एक दूसरे को एकटक देख भावना के सागर मे बहने लगे थे। प्राणी से मेरे अनोखा रिश्ता एक अनूठा अहसास मेरे दिल को भाव- विभोर करने लगा था।मै तारा को प्यार से सहलाने लगी। तारा अपनी पूँछ हिला कर खुशी का इजहार करते हुएबालकनी से गली को ओर देखते हुए ••••••अनायास गली की ओर देख कर दुम हिला हिला कर भटकने लगी।मानो कह रही हो अब मुझे तुम्हारा डर नही।यहाँ सुरक्षित हूँ।तारा मेरी परछाई बन पूरे घर मे खेलती, और अपनी खुशी बिखेरती।



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