ताना
ताना
आज फिर सुबह उन्होने मेरे आगे नाश्ते की प्लेट में एक स्वादिष्ट सा आमलेट और एक प्याला चाय का बनाकर रख दिया। ये उनका मेरे लिए एक अनोखा प्यार था। मैं ये बात अच्छी तरह जानती थी पर फिर भी उनसे अक्सर किसी ना किसी बात को लेकर झगड़ा करने लगती थी। झगड़े की वजह वो भी जानते थे और मैं भी।
शादी से पहले मैं अक्सर ऐसे पति की कामना करती थी जो सुबह हाथ में टिफिन लेकर अपने आफिस जाए पर शादी के बाद सब उल्टा ही हो गया। प्रदीप के पास कोई पक्का काम ना होने के कारण उन्हे घर चलाने के लिए ट्यूशन पढ़ानी पढ़ी। अब ट्यूशन का काम दोपहर के बाद ही शुरू होता था इस वजह से वो सुबह घर पर ही होते थे। अक्सर वो मेरी रसोई के कामों में मदद करते पर मैं उन्हे ताने देने में कभी पीछे नहीं हटी।
आचानक से एक दिन प्रदीप रात को घर नहीं लौटे। सारी रात मैंने उनका इंतजार किया। सुबह उन्होने फ़ोन पर बताया कि अब वो कभी वापस नहीं आयेंगे। उन्हे बीती सुबह मेरा दिया हुआ ताना कहीं चुभ गया था जब मैने उनके नाश्ता लाने पर तुनक कर कहा था, " अरे कैसे मर्द हो तुम , ये सब औरतों के काम है .... तुम सुबह तैयार होकर घर से निकल जाया करो .... रसोई का काम मैं अपने आप कर लूँगी।"
अब मुझे अपनी गलती का एहसास होने लगा था। मैं फ़ोन पर ही जोर - जोर से रोने लगी और उनसे अपनी कही हुई बात की माफी माँगने लगी। उन्होने मौके की नज़ाकत को समझते हुए मुझे माफ कर दिया और घर वापस लौट आये।
उद्देश्य - हमें सोच - समझ कर ही बोलना चाहिए। मनुष्य जो भी सपने देखता है वो ज़रूरी नहीं कि वैसे ही पूरे हों जैसी उसने कभी कल्पना की थी।