स्वय सिद्धा
स्वय सिद्धा
अकेलापन एक ऐसी समस्या है ,जिससे खुद को ही निपटना पड़ता है ।खुद कोई जीतना पड़ता है कभी-कभी तो हम भर भीड़ में भी अकेले होतेहैं।और अकेलापन काटने को दौड़ता है। ऐसे ही मैं एक ऐसी स्वयंसिद्धा नारी की कहानी बता रही हूं। वह भी मेरी जुबानी
हमारे पड़ोस में डॉक्टर भाईसाहब को शादी करके वह रहने आई हमारी भाभी कहलाई।
मेरी तो वह बहुत अच्छी दोस्त बन गई थी। बहुत ही अच्छी ,मधुर भाषी ,और समझदार और बहुत होशियार डॉक्टर ,आई स्पेशलिस्ट है। आज मैं आपको उन्हीं के बारे में बताने जा रही हूं। उनके पति डॉक्टर थे। मगर समय- के क्रूर पंजे ने उनको हम सब से और उनसे कैंसर जैसी बीमारी के कारण छीन लिया ।
उसके बाद में वह बिल्कुल अकेली रह गई थी ।ऐसे तो भरा पूरा घर था। मगर वह अकेली थी। उनके एक बेटा भी है ।उन्होंने बहुत हिम्मत से बेटे को पढ़ा लिखा एमबीए करवाया ।वह आज अच्छी जॉब में है ।डॉक्टर भाभी ने अपने पति की जो गांव की जो क्लीनिक थी उसमें भी शनिवार रविवार जाकर के आंख के ऑपरेशन चालू रखें । और जयपुर में भी उन्होंने सुबह शाम दो-तीन जगह पर और अपनी क्लीनिक पर अपनी प्रैक्टिस और ऑपरेशन चालू रखें ।
इस तरह उन्होंने अपने अकेलेपन को अपने हिम्मत और ताकत से और मेहनत सेजीत लिया। वे घबराई नहीं। भाई साहब के ईलाज मे बहुत सारा खर्चा हुआ था ।उनको पैसा और इंसान दोनों से हानि हुई ,दोनों की कमी हुई। मगर फिर भी उन्होंने अकेले हाथ से बहुत मेहनत करके सब अच्छा कर लिया। मेरी तो वह हमेशा बहुत अच्छी मार्गदर्शक रही हैं ।
जयपुर जाते ही सुबह में मेरी पहली चाय उनके साथ ही होती थी ।आज भी में बराबर उनसे संपर्क में रहती हूं। बहुत ही खुश रहती है। और हमेशा पॉजिटिव सोचती हैं। और हमको भी अच्छा अच्छा सिखाती हैं। जहां पर भी किसी बात में थोड़ी प्रॉब्लम आती है तो उनके पास में उसका सॉल्यूशन होता है। ऐसी है मेरी प्यारी भाभी
