Alok Singh

Drama

5.0  

Alok Singh

Drama

सवाल

सवाल

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कभी दुनियाँ को समझने की कोशिश करने वालों से खुद को समझने के बारे में पूछा गया है क्या? समाज गलत है, सरकार गलत है , सिर्फ खुद को छोड़ कर शायद ही कभी कोई सही हो उनकी नज़र में।

आज कल के लोगों की ये फ़ितरत है कि उनको लगता है कि वो जो सोचते हैं जो करते हैं वह सिर्फ सही है बाकी तो गलत ही है और अगर सही है तो वो भी किन्तु परन्तु के साथ।

रोहित भी अपनी ज़िंदगी के इसी कश्मकश में फंसा बिस्तर की चौड़ाई की नाप अपनी बेचैनी में ली जा रही करवटों से कर रहा था शाम के समय दफ्तर के आने के बाद उसकी आज फिर से अपनी पत्नी से बहस जो हो गयी थी  अब तो ये हर रोज का काम हो गया हो जैसे आदमी है इसलिए अपनी आँखों के गंगाजल को सिर्फ विचारों की आग में भाप बनाकर उड़ा ही तो सकता है। बहा नहीं सकता। और दिल के बेचैनियों को किसी से बताये भी तो कैसे? अपनी माँ से वह क्या बताये कि आज वह बिना खाये सोने की नाकामयाब कोशिश कर रहा है ? अपनी बाबू से भी क्या बताये कि ज़िंदगी में जो तुमने फलसफे सिखाये थे वह अब काम नहीं आ रहें है। अपने बड़े भइया से भी क्या बोले कि भइया ज़िंदगी की दौड़ में उससे अब और दौड़ा नहीं जा रहा है।

मीलों दूर किराये के घर में रहते हुए अपने परिवार का पेट पालने के चक्क्र में सिर्फ मोबाइल पर ही सारी रिस्तेदारी निभाई जा रही है। वह माँ जो पहले सब कुछ समझ लेती थी अब शायद उम्र बढ़ने के साथ साथ उसके जज्बातों के सेंसर में वह ताकत नहीं बची। पिताजी जो किसी मुसीबत को आने से पहले ही उसके बारे में आगाह कर दिया करते थे शायद अब वह भी अपनी कमजोर नज़रों से देख नहीं पाते हैं वह बड़ा भाई जो हाथ पकड़ कर पिताजी के सामान चलना सिखाता था। गिरने पर फिर से खड़ा होने की हिम्मत देता था, वह आज खुद की ज़िंदगी की भाग दौड़ में पता नहीं किस तरह दौड़ रहा है

घर की लड़ाईयां किसी पानीपत युद्ध की तरह नहीं होती। कोई अपने आप को सर्वश्रेठ दिखाना नहीं चाहता है। घर के अंदर के सभी युद्ध भावनात्मक होते हैं। बड़ी बातों को छोटी बातें समझ कर लोग भूल जाया करते हैं लेकिन छोटी बातें हमेशा सुई की तरफ चुभती रहती हैं।

रोहित जब ही ऐसा होता है तो अक्सर सोने की कोशिश करता है और खुद को समझाने की भी दफ्तर में जिस्मानी थकावट घर के भावनात्मक थकावट के आगे बहुत कम है

रोहित सोच रहा है कि कैसे वह अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर ला सकता है। सवाल ही सवाल उसके दिखतें हैं। जवाबों का दूर दूर तक कोई निशान नहीं मिल रहा। कुछ जवाब वह सोचता है तो दिमाग तुरंत बोलता है कि वह अपनी तरफ से तो कर सकता है सामने वाला उसको किस तरह लेगा पता नहीं। वैसे भी वह अपनी तरफ से ही कोशिश कर रहा है इतने सालों से। सही भी है रिश्तों से जुड़े सवालों का उत्तर अकेले तो नहीं निकल सकता है हाँ आप किसी नतीजे पर पहुंच सकते हैं। जवाबों के हिसाब से सवाल बना सकते हैं लेकिन जवाब वो भी ज़िंदगी के उलझे हुए सवालों का। अकेले निकाल पाना बहुत मुश्किल है औरतों के पास तो कई ऑप्शन रहते हैं। वह बड़ी आसानी से अपनी समस्याएं अपनी सहेलियों से साझा कर लेती हैं , या अपने घर में माँ बहन से बात कर लेती हैं लेकिन वह भूल जाती है हर एक कि ज़िंदगी के सवाल तो एक जैसे हो सकते हैं पर उनके उत्तर एक जैसे ही हूँ ज़रूरी नहींज़िंदगी सबकी अलग अलग। तो एक ही दवा सैप रिश्तों पर असर करे ज़रूरी तो नहीं।

वैसे आज कल ज़्यदातर रिश्तों में जो मनमुटाव हो रही हैं वह शायद दुसरे की ज़िंदगी अच्छी लगने और अपनी ज़िंदगी की कार की रफ्तार धीमे हो रही चश्मे से देखने की वजह से भी हो रही है।  

ज़िंदगी में एक दुसरे से तुलना करना अपनी चीजों में संतुष्टि न मिल पाना। औरों की ख़ुशी की वजह से जलन होना। सिर्फ सब कुछ अपने अपने तक रखना। सोशल मीडिया को अपने असली का परिवार मान लेना। व्हाट्सप्प के ज्ञान को तुरंत ही सत्य मान लेना। जो पढ़ना। समझना उसको किसी भी तरह अपनी ज़िंदगी का हिस्सा समझ लेना , शायद यही सब आज ज़िंदगी की समस्यायों में चार चाँद लगे रहें। रोहित के दिमाग की सारी नसें लाखों विचारों को किसी माला सी बुनती जा रही हैं।

कल फिर से सूरज निकलेगा। शायद सब सही हो जाएये काली रात शायद फिर से इतनी बेदर्द न हो। पर रोहित यह भी तो जनता है की आने वाली सुबह सिर्फ एक ऊर्जा दे सकती है। उस ऊर्जा का परिवर्तन किसी और ऊर्जा में करना तो उसको ही पड़ेगा।

कई सवालों को लिए वह कब सो गया। उसको खुद को होश नहीं

यह जो रोहित है न। आज कल के कई लोगों की कहानी है। और उसके सवाल। कई और लोगों की ज़िंदगी के प्र्शनपत्र में पूछे जाने वाले या पूछे जा चुके सवाल हैं।

ज़रा सोचिये। क्या ये सवाल अब ऐसे हो चुके हैं जिनके जवाब मिलना मुश्किल है बताएं आप भी। आपके सवालों का इंतज़ार रहेगा।


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