Alok Singh

Drama

5.0  

Alok Singh

Drama

बलात्कार

बलात्कार

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शायरन बजने लगता है तो चोर उच्चके भागने लगते हैं। शायद ये पहले होता हो। पुलिस देखकर लोग पुलिस से मद्दद मांगते हो। शायद ये पहले होता हो। काल्पनिक डर से लोग कुछ गलत करने से डरते हो। शायद ये पहले होता हो। किसी जरूरत मंद की फोटो या वीडियो बनाने की जगह पर मदद करने के लिए लोग आते हो। शायद ये पहले होता हो। अब ये शायद भी धीरे धीरे विलुप्त हो रहा है। समाज में बुराइयों की चादर में लोगों ने अपने पैरों को बहुत ही ज्यदा फैला लिया है। ये रबड़ की चादर अपना आकार और मजबूती दिन दूनी रात चौगनी वाली रफ़्तार से बढा रही है। हम लोग सिर्फ आवाज उठा रहे हैं। और उसे बुरे कृत्य की पुर जोर। जोर लगा के हैंसा वाली स्टाइल में निंदा कर रहे हैं।

तो क्या ये कभी समाज की गंदगी ऐसे आवाज उठाने से कम नहीं होगी क्या ? होगी, क्यों नहीं होगी, एक एक पानी की बूँद से ही घड़ा भरता है। लेकिन अगर घड़े में छेद हो तो पानी डालने की रफ़्तार तेज करनी पड़ेगी तभी आपको घड़ा भरा हुआ दिख सकता है। लेकिन वो भी कुछ समय के लिए। आपको अगर घड़ा भरा हुआ देखना है लम्बे समय के लिये तो आपको पानी भरने की रफ्तार को बढ़ाने के साथ साथ लीकेज को भी बंद करना होगा।

बलात्कार अब एक ऐसा शब्द है जो इंसान की जुबान पर दिन भर में एक बार तो आ ही जाता हैकभी कोई सड़क में तो कभी कोई चलती गाड़ियों में। कभी घर में तो कभी किसी सूनसान खाली पड़े मकान में। दिन रात के चक्रव्यूह में दौड़ती घंटे मिनट के साथ देती सेकंड के हर एक हिस्से में कभी किसी नवजात तो कभी किसी उम्र दर्ज तो कभी किसी जवानी में सपने साकार करने को ततपर महिला से बलात्कार की घटना हो ही रही है कभी वो इसकी शिकायत करती है तो कभी पुरुष प्रधान देश में कुछ और अहित न होने की खातिर शान्ति से उस नासूर दर्द को लिए जीवन से लड़ने को संघर्ष करती रहती है। आकड़ों की माने तो देश के बटवारे के समय लगभग १ लाख औरतों का अपहरण कर बलात्कार करने की दुखद घटना का जिक्र मिल जायेगा। दिल्ली हो या मुंबई। शहर हो या गांव। मतलबये एक ऐसा अपराथ है जो न तो जगह के हिसाब से बदलता है। और न ही समय के हिसाब से। किसी भी चीज का फर्क इस अपराथ की कमी करने में प्रभावी नहीं।

इतिहास उठा लीजिये।औरत का सम्मान प्रथम रहता था। उसकी खातिर महाभारत भी हुआ। और रावण का बध भीआज के दौर में हम संवेदन हीं होते जा रहे हैंसिर्फ अपने तक ही रह जाना हर अपराध को बढ़ने की गुंजाइस को बढ़ा रहा है।

आधी जनसख्यां आधी जनसख्यां से आपने वजूद को बचाने की गुहार कर रही हैफिर भी उसकी हालत में सुधार नहीं ।क्यों वो मजबूत नहीं हो पा रही है। हाथ में मोमबत्ती लिए और काली तख्तियां लिए वो खुद पर अपराध हो जाने के बाद सड़को पर उतर कर निष्प्रभावी कर्म करती रहेगी। ये लड़ाई खुद की समझिये। , अपने स्तर पर इस लड़ाई को लड़ने की कोशिश करिये। कहावत है न। अपने मरे ही स्वर्ग मिलता है। तो अपने को मारना पड़ेगा। तपाना पड़ेगा। चिंतन करना पड़ेगा। जितनी ऊर्जा चिल्लाने में लगा रहे हैं उसी ऊर्जा को अपनी मजबूती की तलवार पर धार रखने में लगाओ। हर शहर। हर गांव में। छोटे छोटे समूह बना कर लड़ाई लड़ना शुरू करो।

छोटे छोटे मुद्दों को खुद से निपटाओ। एक आत्मविश्वास जगेगा। थोड़ा समय दीजिये खुद को। सास बहु के कार्यक्रमों से बाहर निकलिए। साप्ताहिक मीटिंग करिये। व्हट्सग्रूप बनाओ। ऐसे मनचलों की फोटो या वीडियो अपने ग्रुप में साझा करिये। एक्शन प्लान बनाये, पुलिस में कम्प्लेन करियेमगर खुद की लड़ाई को खुद से अंजाम तक पहुचायें। उस मचले लोगों के घर वालों से बात करियेहाँअगर फिर भी हालत सही न हो। तो काली भी बनिये। तोड़ दीजिये हड्डियां। ऐसे ही मर जाना याजिस्म और रूह का बलात्कार होकर मर जाने से बेहतर है उसको मार दीजिये, कानून क्या करेगा? हाँ। कानून को हाथ में न लिया जाए तो बेहतर है। लेकिन जब पानी सर से ऊपर होने लगे तो क्या करेंगे।

कुछ तो कुर्बानिया देनी ही पड़ेंगी। सारी औरतों को एक साथ बगावत करनी पड़ेगी। फिर वो चाहे किसी की पत्नी ही क्यों न हो। बोलिये अपने पुरुष पार्टनर से। कि वह भी उस महिला की आवाज बने वरना।।हज़ारों धमकियाँ है। न हो तो तलाक दे दीजिये। ऐसे आदमी के साथ भी क्यों रहना जो औरतों की इज्जत न कर सके। य़ा गलत को गलत बोल न सके। आप सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए नहीं हैं न, और न ही सबका पेट भरने के लिए। आप भी जिन्दा हैं। और जिन्दा होने के लिए ज़रूरी है आप खुद के अंदर की चिंगारी को समय समय पर आग बनने दे।

पढाई करियेकानून की। पुलिस लाइन में नौकरी करियेप्रधान बनिएनेता बनिएमंत्री बनिये मुख्यमंत्री प्रधानमंत्रीसारे रास्ते पर दौड़िए और जो पहले से हैं इस फील्ड में। वो सब एक साथ आएं।प्रहार एक साथ होना चाहिए। असर तभी जल्दी दिखेगाअपने बच्चों को अच्छी सीख दीजिये। अगर कुछ गलत करता है तो अपने मातृत्व को अपनी जिम्मेदारी के तराजू पर तौल कर कुछ दिल को मजबूत करके उसको सही रस्ते पर लाने के लिए कुछ हार्ड स्टेप भी लीजिये।

बलात्कार हो जाने के बाद हर शहर में कैंडल मार्च में जमा भीड़ को देख कर लगता है कि शहर में कितने अच्छे लोग हैं। चंद ख़राब लोगों को ये अच्छे लोगों की फ़ौज रोक क्यों नहीं पा रही है। ऐसा क्यों हो रहा है ? जब कैंडल मार्च करने के लिए इक्कठा होते हैं तो जरा पूछिए एक दूसरे से। क्योंकि खुद से पूछने की आपमें हिम्मत नहीं और न तो आपके पास समय। शायद कोई उत्तर मिल जायेऔर वह उत्तर किसी बड़ी समस्या का समाधान भी ढूँ सके।

अच्छे लोग भी आगे बढ़ सकते हैं।वो भी कोई नए तरीके सोच सकते हैं। अगर समस्या है तो उसका समाधान भी संभव है।

खुद को भी देखना पड़ेगा।"औरत होने का फायदा "जैसी कहावतों को भी चरित्रत्राथ होने से रोकना पड़ेगा।

क्या कुछ नहीं हो सकता है। ये समाज है। इसमें गंदगी भी हम लोगों ने ही मिलायी है। तो हम लोगों को सफाई भी करनी पड़ेगी। और इस सफाई में अगर कुछ कपड़े गंदे भी हो जाए तो फर्क नहीं पड़ना चाहिए।


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