Alok Singh

Drama

5.0  

Alok Singh

Drama

चाय संग रिश्ते भाग ४

चाय संग रिश्ते भाग ४

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उस रात ध्रुव को सोने में बहुत दिक्कत हुयी। उसका दिल न जाने कहाँ से कहाँ उसको लेकर जा रहा था।जैसे जंगल में शेर बिना किसी रुकावट के घूमता रहता है वैसे ही ध्रुव का मन अमृता की यादों में विचरण कर रहा था।ध्रुव ने अपनी घडी में देखा तो आज ८ फरवरी, दिन शनिवार और रात के २ बजे थे।

वह उठा और बाहर सड़क पर यूँ ही टहलने चला गया। मौसम में अभी भी कुछ गुलाबी ठंडक थी. बहुत मजदूर जो दिन भर अपने खून को पसीन बनाकर अपने और अपने पेट की आग को शांत करने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं वहीँ सड़क के किनारे कई झुग्गी झोपडी बनाकर रह रहे हैं तो कोई बाहर खुले आसमान को अपनी रजाई बनाकर सो रहे हैं। जानवर भी ऐसे दुबके से हुए हैं जैसे उनपर पृष्ठ तनाव लग रहा हो और वह कम से कम आकार में समाहित हो जाना चाह रहे हों।

ध्रुव जहाँ रहता है वहां से १ किलोमीटर दूर ही एक बस स्टैंड है उसके पैर उधर का ही रास्ता नापने की कोशिश में बढे जा रहे हैं।

वहां पहुंच कर वह एक खोखे के पास रुकता है और वहां पर एक वृद्ध बाबा चाय की दुकान पर चाय बना रहे थे।शायद वह उनकी दुकान नहीं थी बस वह वहां काम कर रहे थे।ध्रुव वहां साइड में कूपन काउंटर से एक चाय और १ पैकेट बिस्कुट का आर्डर देता है।जब तक कि बाबा चाय बनाते हैं वह वहां पर इधर उधर घूम रहे कुत्तों को भी बिस्कुट देता हुआ खुद भी खाते हुए बिस्कुट के पैकेट को खत्म कर देता है।

ये लो बेटा चाय।जी बाबा धन्यवाद।

कहाँ जाना है बेटा ? कौन सी बस का इंतज़ार कर रहे हो? बाबा ने पुछा।

वहां सवारियां बहुत कम थी ? और देर रात में बसें भी बहुत कम जाती थी तो इसलिए बाबा का सवाल वाजिब था क्योंकि बस स्टैंड के पास होने की वजह से कोई भी ये ही सोचेगा की शायद उसे बस का इंतज़ार है।सभी चेहरा या आँखे पढ़कर अमृता की तरह दिल की बात तो नहीं समझ सकते न।

कहीं नहीं जाना बाबा बस यूँ ही चाय पीने आ गया ध्रुव ने चाय को गले में उड़ेलते हुए कहा और वही पास में एक बेंच पर जाकर बैठ गया।

चाय में वह मजा नहीं था जो वह पिछले कई दिन से ध्रुव पा रहा था. सब वही तो सामान डाला होगा बस कुछ क्वालिटी ही कम रही होगी ? पर स्वाद में इतना जमीन आसमान का अंतर्? शायद प्यार और लगाव का अपना एक स्वाद होता है इसलिए ही हर चाय का अपना एक अलग ही स्वाद होता है।

चाय पीते पीते वह फिर से फेसबुक देखने की कोशिश करता है।अमृता की प्रोफाइल वाला पेज अभी भी ओपेन था उसने अमृता को फ्रेंडशिप रिक्वेस्ट भेज दी। फिर कभी व्हाट्सप्प तो कभी इंस्टाग्राम तो कभी फेसबुकइसी चक्रवात में समय के पहिये को तेजी देते हुए वह अपना समय पास करने लगा।

सुबह के ६ बजने वाले हैं।सूरज भी अपने आप को तरोताजा करके अपने कर्मभूमि में हाज़री लगा चुका है।

ध्रुव फिर से सुबह की सैर करते हुए वापस अपने कमरे में आ चुका है और बिस्तर पर लेटा हुआ है।

अमृता अपने परिवार के साथ कानपुर में ही शिफ्ट हो चुकी है क्योंकि यहाँ पर उसके बाबा का घर था और उनका खुद का व्यापर भी था।तो अमृता के पापा ने भी यही सोचा था कि वही शिफ्ट हो जाना सही रहेगा क्योंकि परिवार के बाकी लोग भी वही रहते हैं।

अमृता अपना खुद का बिज़नेस करने के साथ साथ और भी कई काम करती थी जैसे उसको सामाजिक कार्यों से बहुत लगाव था खाश कर जानवरों से और अगर ये कहें कि उसमे भी सबसे वफादार जानवर से तो गलत न होगा और इसके साथ साथ वह फ्री में हर रविवार वहीँ आसपास के झुग्गी झोपडी में रहने वालों के बच्चों को पढ़ाती भी थी और साथ में वह मास्टर डिग्री के लिए भी पढाई करती थी।

शनिवार का दिन था।सुबह के ८ बजे थे।अमृता नास्ते करने के साथ साथ अपने मोबाइल में मसगूल हैऔर हलकी हलकी सी मुस्कराहट उसके होटों को छूने की कोशिश कर रही थी।

फेसबुक प्रोफाइल में ध्रुव ने कुछ फोटो लगा रखी थी जो अमृता को पुरानी यादों को ताजा करवा रही थी।अब तक दोनों फेसबुक के माध्यम से तो जुड़ ही चुके थे।पर वह अब भी अनजान थी कि ध्रुव इसी शहर में है

दिन की भाग दौड़ और प्राइवेट नौकरी में खून चूसने और चुसवाने का व्यस्त प्रकरण कहाँ समय देता है कि इंसान अपनी ज़िंदगी में खुद के लिए समय भी जल्दी जल्दी निकाल पाए।कुछ सकूँ पाने के लिए बहुत जद्दो जहद करनी पड़ती है इसलिए ध्रुव चाह कर भी दिन में उस आभासी दुनिया के रिश्ते में आगे बढे हुए कदम को देख न पाया।

कुछ खुमारी का अपना अलग अंदाज होता है जो दिमाग में प्रवाहित हो रहे खून की रफ्तार को कंट्रोल करता है। दिमाग भी दिल की तरह ही तो है, ये बात भी सही है कि शुरुवात दिल करता है लेकिन दिमाग अपना रोल इस तरह निभाता है कि दिल के बने हुए सपने साकार होंगे या नहीं।

शाम के ८ बज रहे हैं काम कि व्यस्तता के कारण ध्रुव अभी भी दफ्तर में ही है उसका बॉस नीरज आज कुछ ज़्यदा ही काम दे गया है।सारी टीम उसी में लगी हुयी है।

रात के १० बज गए हैं सब काम निपटा कर और कल रविवार है थोड़ा बचा हुआ काम कल करने की सभी टीम मेंबर्स की सहमती के बाद अपने अपने घर की तरफ रवाना होते हैं।

आज ध्रुव के सर में भारीपन महसूस हो रहा है शायद कल नींद न पूरी होने की वजह से हो या ये भी हो सकता है जो उसकी आदत बन गयी थी "अमृता द चाय रेस्टोरेंट "पर चाय पीना।मगर आज न पी पाने की वजह से सर में भारीपन हो गया हो.

कमरे तक वापस आते आते रात के १०.३० बज गए थे।चेंज करके बिस्तर पर जाने के बाद वह कब सो गया पता ही नहीं चला।

उधर अमृता शाम से कई बार फेसबुक देख चुकी है।शायद उसको भी किसी अनजानी सी ख़ुशी का अहसास हो रहा है लेकिन कभी कभी खुशियों तक पहुंचने का रास्ता पास होकर भी बहुत लम्बा दिखता है.आज उसने ध्रुव की पोस्ट देखते देखते उसकी बहन अमिता को टेक्स्ट सन्देश भेजा था अमिता का जवाब आया था तो उसने फॉर्मल तौर में बात की थी।

कई दिन से जंग पड़े रिश्ते में सिर्फ दोस्ती ही एक ऐसा रिस्ता है कि वर्षो के बाद भी अगर दोस्त का सन्देश आये तो वो जंग हट जाती है जैसे फूलों पर पड़ी धूल बरसात हो जाने पर धुल जाती और उसमे एक चमक सी आजाती है.

अमिता और अमृता देर रात तक संदेशों के माध्यम से बाते करते रहे और तभी अमृता को पता चलता है कि आज कल ध्रुव भी उसी के शहर में है।

अमिता सो चुकी है लेकिन अमृता यादों के समंदर में गोते लगा रही है।

बचपन में जब मम्मी ज़िंदा थी तब से लेकर अभी ३ साल पहले तक ध्रुव के साथ बिताये हुए लम्हों को यादें उसके जहन में अभी भी उगते हुए सूरज के साथ नए पुष्पों की रौनक की तरह ताजा है।

शायद परिवार का इतना क्लोज होना ही कभी न तो अमृता को हिम्मत दे पाया और न ही ध्रुव को कि वो आपने दिल की फीलिंग्स को एक दूसरे को बता पाएं।

ध्रुव के द्वारा दिए गए सभी गिफ्ट्स अमृता के पास अब भी रखे हुए थे।रात के १ बज रहे हैं अमृता अपने बिस्तर पर ध्रुव के दिए गए बर्थडे गिफ्ट्स, नए साल और कई त्योहारों पर दिए गए गिफ्ट्स फैला कर बैठी है।आज वो सरे गिफ्ट्स न जाने क्यों अमृता को बहुत मनभावक लग रहे हैं ध्रुव के हाथो की लिखावट उसको धुर्व के जज्बातों के संदेशवाहक की तरह लग रहे हैं उसके हाथों से लिखा हुआ अमृता का नाम आज न जाने क्यों ऐसा लग रहा है जैसा कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका का नाम अपने दिल पर लिखवा लिया हो।

सुबह के ६ बज रहे हैं।बाहर पापा जग गए हैं और अमृता के कमरे के दरवाजे पर नॉक करके उसको जगाने की कोशिश करते हैं उनको क्या पता है कि आज रात अमृता सोयी ही नहीं

बस पापा मैं जग गयी।अमृता ने अंदर से ही जवाब दिया और उठकर सारे गिफ्ट्स को सँभालने लगी 

आज रविवार है बेटा तुझे क्लास लेने भी जानी है न.याद है ?

जी पापा बस मैं बाहर ही आरही फ्रेश होकर रविवार ऐसे तो आराम का दिन होता है लेकिन कुछ लोगों के लिए रविवार सबसे व्यस्त दिन होता है।वैसा ही अमृता के साथ ही हैआज के दिन वह अपने पापा के साथ सुबह सबसे पहले मंदिर जाती है फिर।उसके बाद १० बजे से बच्चों को पढ़ाती है और फिर दोपहर में अपने रेस्टोरेंट में जाकर कुछ देर बैठती है फिर शाम में वह घर के लोगों के साथ समय बिताती है।

ज़िम्मेदरियाँ इंसान को कब बड़ा कर देती हैं समय को भी नहीं पता चलता।क्योंकि वह अपनी एक ही रफ्तार में चलता रहता है।और बहुत धीरे धीरे बदलाव को अनुभव करना आसान नहीं होता क्योंकि वह आत्मसात होता जाता है और जो अपने में ही शामिल होता जाए वह कहाँ दिखता है फिर।

सोमवार , सुबह ६ बजे ध्रुव अपने मोबाइल के अलार्म को बंद करके मोबाइल के फेसबुक को खोलता हैउसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं है।अमृता ने जो उसकी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली हो.वह ऐसे खुश है जैसे उसने अमृता को प्रोपोज़ किया हो और अमृता ने हाँ कह दी हो।

रोज डे , प्रोपोज़ डे , चॉकलेट डे प्रेम संदेशों में बीत चुके हैं।आज टेडी डे है।

ध्रुव ने अमृता को सुप्रभात का सन्देश भेजा है जिसमे एक मासूम सा टेडी दिख रहा है अमृता का जवाब भी तुरंत आ गया जैसे वह इंतज़ार ही कर रही थी ध्रुव के सन्देश का बातों का सिलसिला चल निकला।

क्रमशः 


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