शादीशुदा सरकारी नौकर-व्यंग
शादीशुदा सरकारी नौकर-व्यंग
है न दो धारी तलवार ...दोनों तरफ से गालियों की बौछार । नौकरी वो भी सरकारी मतलब निकम्मा ..निठल्ला , काम करने के भी पैसे और न करने के भी पैसे लेने वाला, आराम परस्त । हर घंटे पर चाय की तालाब रखने वाला इंसान। एक फाइल को खुद से इधर उधर न करने की फितरत रखने वाला। अपना काम किसी तरह दूसरे के सर पर डालकर खुद को भार मुक्त महसूस करने वाला प्राणी. सब मिलाकर काम न करने वाला लेकिन तनख्वाह ऐसी की पूछो न ...बाप रे..आपकी जुबान कह दी क्या?समय की कोई पाबन्दी नहीं ..अरे अब आप इतना भी न फेंकों ..बायोमेट्रिक लग गयी है ऑफिस में ....अब समय पर आना जाना होता है ...अच्छा अच्छा आप भी सरकारी कर्मचारी हो ....दुखती नब्ज पर हाथ रख गया ...माफ़ करियेगा ..वैसे बहुत लोग मिल जाएंगे जो या तो कुछ नहीं करते हैं या कोई प्राइवेट नौकरी करते हैं ....उनकी नज़रों में सरकारी नौकर मतलब तुच्छ इंसान ...जिसका समाज में एक रुतबा तो है मगर वह उसका हक़दार नहीं है ।मुँह में पान या गुटखा खाये ..आधी बात मुँह से निकलती है तो आधी पैसों की तरह खुद में हजम हो जाती है। पेट तो दिन दुनी रात चौगनी करता हुआ दिख जायेगा, वो चाहे पुलिस में ही क्यों न हो ...अध्यापक अध्यापन छोड़ सब काम करता है ....जी गैस सिलिंडर से लेकर खाना बनवाने ..वितरण तक ..फलों की दुकान से लेकर दूध वाले सा सांठ गाँठ करने तक । प्रधान संग मिलकर मिड डे मील की आधी खुराख अपने नाम कर लेना.. डॉक्टर ....अरे भाई पूछों न ...क्या लिखते हैं शायद वो अपनी राइटिंग खुद ही न समझ पाएं ..और अगर दिखने गए ..तो तुम्हरे बेंच पर बैठने से पहले ही सारा परचा दवाओं के नाम से भर जायेगा ....और २-३ दिन बाद रिपोर्ट के साथ आने का निमंत्रण भी उसी में देने से नहीं चूकते ...मेडिकल स्टोर हो या डाइगोनोसिस सेंटर..सबसे अपने आप पैसा आता ही रहता है।और एक दिन में मरीजों की आँखों का ऑपरेशन हो या कुछ और....सबमें अव्वल ...फिर क्यों न पड़े गालियां?कितनी मेहनत करनी पड़ती है एक सरकारी नौकरी के लिए ...कभी कभी तो साम दाम दंड भेद सब लगाना पड़ता है ...जब इतनी म्हणत पहले ही करवा लेते हैं तो बाद में तो आराम बनता है न.....कहावत है न ...पहले थोड़ा कष्ट उठाना फिर सबदिन आनंद उठाना ।इतना सब कुछ है और आप लिख रहे हैं कि सरकारी नौकरी जैसे कोई मक्खन हो ...दरोगा से लेकर जज तक .....इंजीनियर से लेकर डॉक्टर तक ......सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं।अरे रुको....जरा
शादीशुदा वालों के बारे में भी लिख लेने दो न ..फिर एक साथ दोनों को तराजू पर रख कर देखा जायेगा कि कौन कितना भारी है ।
शादीशुदा मतलब वो इंसान जिसको न बोलने की तो आदत से मुक्ति मिल चुकी हो लेकिन न सुनने की आदत में इजाफा हुआ हो।वो जो घर के काम में अगर हाथ बटाएँ ..अपनी पत्नी का पक्ष ले तो बीबी का गुलाम कहलाता हो। वो जो माँ और बीबी के चक्रवयूह में फंस चुका हो और वह अभिमन्यु की तरह खुद को समझता हो कि वह उसको तोड़ लेगा ....लेकिन इतिहास यहाँ खुद को दोहराता है..और वह खुद को अभिमन्युं समझने वाला इंसान ज़िंदगी से लड़ता हुआ खुद को हार जाता है ...फर्क बस इतना है कि वहां अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हुआ था और यहाँ वह सिर्फ वीरों को गतिशील देखता हुआ भारत माता की जय ही बोल सकता है ।वह इंसान जिसको घर का हर सदस्य हेय कि नज़र से देखता हो। शादी शुदा मतलब जज्बातों की सिर्फ एंट्री आप अपने जज्बात बाहर नहीं दिखा सकते हैं ।वह जो २४ घंटे दौड़ भाग करने के बाद भी धीमी रफ़्तार से सुस्ती में रहकर काम करने वाला मज़दूर होता है । तुमको तो रोटी बनानी भी नहीं आती..कितनी बार समझा चुकी हूँ ...फिर भी आज तक तुमसे सही से नहीं बन पाती रोटियां ....नामकर का अंदाज कब आएगा ...? बूढ़ा गए हो बचपना न गया ? बहुत हंस हंस कर आज कल बातें कर रहे हो ? ख़ूब फोटो अपडेट होता है आज कल ? घर के लिए भी कुछ समय निकालो ...दफ्तर में जाकर कौन सा पहाड़ तोड़ते हो ? तुम्हारे साथ तो बात करना ही बेकार ? मेरी किस्मत ही ख़राब थी जो तुमसे शादी के लिए राजी हो गयी? कभी घुमाने भी ले जाया करो बाकी सहेलियों को देखो ....साल में २ ट्रिप तो कहीं न कहीं लगा ही लेती हैं । बेटा , थोड़ा हम लोगों की तरफ ध्यान दे लिया कर ...देख चश्मा खराबा है ...कई दिन से तबियत ख़राब है .....बेटा क्या करें .उसकी तबियत तो जैसे तबियत नहीं...आराम तो जैसे उसकी किस्मत में ही नहीं है ....जैसे औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं वैसे ही आदमी आदमी का...तभी तो हर इंसान सोचता है सरकारी दामाद मिले ....और ये भूल जाता है उस इंसान का क्या होगा...जो सरकारी नौकर भी हो और शादीशुदा ......बस कर पगले ...अब क्या रुलाएगा .....अरे ...आप भी शादीशुदा निकले क्या?अब फैसला आप पर ...सोचो किसका पड़ला भारी है ? एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ नाला ..बेचारा कैसे कैसे ज़िंदगी की पगडंडी पर स्लो मोशन में चलता है ।