सुकून
सुकून
"अरे ! अरे ! काकी कहाँ भागी जा रही हो ?
"वो टेम्पो आ गया है न। हम सब औरतों को ले जा रहें हैं बड़े पार्क में कोई धरना वगैरह है।"
"तो तुम इतनी भीड़ में वहां क्या करोगी ? घर पर बैठो। आराम करो। वहां धक्का-मुक्की में कोई हाथ-पैर तुड़वा लोगी।"
"वो सब तो ठीक है पर घर पर भी क्या करूँगीं। बेटा कह रहा है कि वहां चली जाऊँ। वहां रहने के इंतजाम के साथ-साथ नाश्ता-पानी ,खाना सब मिल रहा है और पैसे भी मिल रहे हैं वहाँ जाने के। कई महीनों से कंधे में दर्द हो रहा है।
कोई डॉक्टर को दिखाने नहीं ले जाता। बहू एक पैसा खर्च नहीं करने देती। कुछ कहो तो लड़ाई-झगड़ा करती है। रात बेटा बता रहा था कि धरने पर अब मुफ़्त में डॉक्टरी चेकप भी हो रहा है। इसीलिए मन बना लिया जाने का। कुछ टाइम सुकून से बिता लूंगीं वहाँ। अच्छा चलूँ बेटा नहीं तो टेम्पो चला जाएगा"
काकी सही तो कह रहीं थी। कम से कम वहाँ किसे के ताने तो नहीं सुनने पड़ेंगे। जब तक धरना चलेगाअपनी इज्ज़त भी बनी रहेगी,
वैसे सौदा बुरा तो नहीं है।
