Naresh Bokan Gujjar

Romance

2.5  

Naresh Bokan Gujjar

Romance

सुगन्धा

सुगन्धा

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घर के बाहर लगे लेटर बॉक्स को देखकर आज फिर सुगन्धा घर खाली हाथ लौट जाती है। आज एक बार फिर उसकी उम्मीदें उसका साथ छोड़ देती है। न जाने कितने ही दिनों से उसे नीरज का कोई खत नहीं मिला। सुगन्धा 18 साल की थी जब उसे नीरज मिला था। उस वक्त सुगन्धा कॉलेज के दूसरे साल मेंथी और नीरज तीसरे साल में। दोनो बीए सोशियोलोजी के स्टूडेंट्स थे और इसी विषय को लेकर जब कालेज में एक प्रोग्राम हुआ तो दोनो ने एक ग्रुप में काम किया और यही से‌ दोनो में जान पहचान हुई। जान पहचान को दोस्ती में और दोस्ती को प्यार में बदलते वक्त नहीं लगा। 

सुगन्धा बेहद खुबसुरत और हँसमुख लड़की थी। अपनी कोमल हँसी और शहद से भी मीठी बातों से किसी को भी दीवाना बना देती थी और नीरज बिल्कुल शांत स्वभाव था मगर उसकी आँखें बहुत कुछ कहती थी। सुगन्धा हमेशा उसकी आँखों को पढ़ लेती थी। नीरज अपने माता पिता के साथ रहता था। सुगन्धा जब 10 साल की थी तब उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी। घर को जैसे तैसे उसकी माँ ने सम्भाला मगर कॉलेज के पहले साल में उसकी माँ भी चल बसी। माता पिता के बाद सुगन्धा को नीरज का साथ मिला। नीरज को पाकर वो अपने सब दुख दर्द भूल चुकी थी।

सुगन्धा अक्सर नीरज से कहती ..."नीरज" पता है! तुम्हें मेरे माता पिता ने मेरे पास भेजा है।

नीरज उसकी बातों को बड़ी गौर से सुनता रहता। नीरज भी सुगन्धा को दुनिया कि सारी ख़ुशियाँ देना चाहता था। कॉलेज खत्म होने पर नीरज ने सुगन्धा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। जिसे सुनकर सुगन्धा की खुशी का ठिकाना ना रहा। सुगन्धा जैसे हवा में उड़ रही थी। इतनी सारी ख़ुशियों को सम्भाल पाना जैसे उसके बस में ना हो। वो कभी हँसती तो कभी अपने बीते दिनो को याद कर रो पड़ती। सुगन्धा की झोली ख़ुशियों से भर चुकी थी। बस कुछ बाकी था तो वो था इस रिश्ते को लेकर नीरज के माता पिता की हामी का इंतजार। 

अपने रिश्ते को लेकर नीरज ने सुगन्धा से कहा कि एक बार उसे कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाये फिर वो अपने घर वालो से बात कर लेगा। कुछ ही दिनों में नीरज को एक नौकरी मिल जाती है और वो सुगन्धा से कहता हेै-  

"सुगन्धा मैं घर जाकर सबको तुम्हारे बारे में बताऊँगा और तुम्हें खत लिखूगां और जल्दी ही तुम्हें लेने आऊँगा...तुम मेरा इंतजार करना" 

सुगन्धा बड़ी बेसब्री से नीरज का इंतजार करती रही। हर रोज घर के बाहर लगा लेटर बाक्स देखती और जब कुछ नहीं मिलता तो वापिस घर लौट जाती। फूलों की तरह हँसने खिलखिलाने वाली सुगन्धा टूटती हुई उम्मीदों को लेकर दिनों दिन मुरझाती चली गई। दो साल के लम्बे इंतजार के बाद एक रोज़ जब सुगन्धा को खत मिला तो उसमे लिखा था -  

"नीरज वेडस तनुश्री"

 उस खत को जिसे नीरज ने अपने हाथों से लिखा था अपने सीने से लगाये सुगन्धा हमेशा के लिए खामोश हो गई।

 सुगन्धा फिर कभी नहीं महकी।


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