शालिनी- प्यार की एक मुकम्मल दास्ताँ
शालिनी- प्यार की एक मुकम्मल दास्ताँ


तुम मिले हो तो ऐसे लगता है सबकुछ मिल गया हो मुझे। जब तुम नहीं थे तो ना ये चाँद था ना ये चांदनी। सिर्फ काली अंधेरी रात थी और उम्मीदों की लड़खड़ाती लोह के कुछ दीये जो मुझे ये कहते थे कि तुम मेरे पास लौटकर जरूर आओगे और देखो वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आज तुम मेरे पास आ गये हो और आज ऐसा लगता है जैसे मुकम्मल हो गयी हूँ मैं।
क्या तुम जानते हो अभिषेक मैं कितना प्यार करती हूँ तुमसे। तुमने पहली मुलाकात में मुझे जो कंगन दिया जिस पर कि मेरा नाम लिखा था वो कंगन आज भी मेरे हाथ में वैसे ही चमक रहा है जैसे पहले था हाँ जरा सा ढीला जरूर हो गया हैं ...और हो भी क्यूं ना तुम्हारे जाने के बाद कितनी बीमार हो गयी थी मैं ...तुम्हें मालूम भी है भला ? ....कितना गहरा सदमा लगा था मुझे जब मुझे पता चला कि तुम्हारे घरवालों ने तुम्हारी शादी कहीं और तय कर दी है....और लोग तो कहते थे उसमें तुम्हारी भी रजामंदी है ....मगर मैंने किसी कि बात नहीं सुनी ....एक बार भी नहीं सुनी .... क्योंकि मुझे विश्वास था कि तुम मेरे बिना नहीं रह सकते ।
.....तुम ही तो कहते थे ना कि शालिनी मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता। आज पूरे साल साल के बाद तुम मेरे पास लौट आये हो ....आज जाकर मुझे चैन की सांस मिली है ...अब बस कोई इंतजार नहीं कोई दूरी नहीं कोई बुरा ख़्वाब नहीं ....अब सबकुछ शांत हो रहा है ...और मेरे अंदर का शोर भी ....सब खामोश ...सब शांत ...जैसे कुछ हुआ ही नहीं ....हाँ ... सब शां....त....सब खामो.......श ......
अभिषेक के प्यार में पागल .....शालिनी ....सात साल से जुदाई के ग़म में डूबी हुई ....हाँ वही शालिनी जो पिछले सात साल से सो नहीं पायी ....आज अपने आखिरी वक्त में अभिषेक के लौट आने के भम्र में मुकमल नींद में सो गयी।