सट्टेबाजी
सट्टेबाजी
मैं और मेरा परिवार हैदराबाद में रहते हैं। मेरा फर्नीचर का व्यवसाय है जो ईश्वर की कृपा से अच्छा चलता है। मेरा एक सत्रह वर्षीय बेटा, अनूप, और एक चौदह वर्षीय बेटी, आँचल, है। हम सब मेरे बड़े भाईसाहब के परिवार के साथ एक ही घर में रहते हैं। हालाँकि भाईसाहब का अपना अलग व्यवसाय है पर हमारा घर और चौका एक ही है। भाभी और मेरी पत्नी, पूजा, सगी बहनो की तरह रहती है। भाईसाहब के बच्चों और मेरे बच्चों में एक दूसरे के लिए परस्पर प्रेम है। मैं बहुत संतुष्ट था की मेरा जीवन सुखमय और परिपूर्ण था।
मेरे बेटे को बचपन से ही क्रिकेट के खेल में विशेष रूचि थी। खेलने से अधीक, क्रिकेट देखने में। कुछ समय पूर्व आई पी एल मैचेस हुए और अब वर्ल्ड कप शुरू हो रहा था। वह अपना अधिकतर समय घर से बाहर बिताता था। पूछने पर उत्तर देता की वह दोस्तों के साथ मिलके क्रिकेट देखता है। पूजा ने मुझे कई बार समझाया कि अनूप बड़ा हो रहा है। उसपर विशेष ध्यान दीजिए। उसकी संगती मुझे कुछ ठीक नही लगती। पर पुत्रमोह में मैं पूजा की बातों को नजरअंदाज कर देता। जिसका नतीजा हमें बहुत जल्द भोगना पड़ा।
एक दिन मेरी दुकान पे कुछ गुंडे आए और कहा तुम जल्दी पैसे चूका दो वरना तुम्हारे बेटे से हाथ धो बैठोगे। मैं काँप उठा और सब विस्तार से कहने का आग्रह किया। पता चला अनूप क्रिकेट में बहुत समय से सट्टेबाजी करता है और वह डेढ़ करोड़ रूपये हार चुका है। मेरे पैरों तले जैसे जमीन खिसक गयी। एक तो मुझे अनूप से कभी ऐसे अपेक्षा नहीं थी और दूसरा मुझ जैसे मध्यम वर्गीय व्यवसायी के लिए इतनी बड़ी रकम जुटाना बहुत कठीन था। मैंने उन सब से मुझे कुछ समय देने के लिए विनती की और उन्हें आश्वासन दिया की मैं सब रकम चूका दूंगा। वह मान गए और चले गए।
शाम को घर आकर मैंने भाईसाहब को सब बात बताई। पूजा और भाभी भी वहीं मौजूद थे। भाईसाहब बहुत क्रोधित हुए और फिर कहा मैं इसमें अब क्या कर सकता हूँ। ये तुम्हारे ही लाड प्यार और छूट का नतीजा है, अब भुगतो। ये कहकर भाईसाहब और भाभी अपने कक्ष में चले गए। पूजा मेरे पास आई और कहा, “मैं जानती हूँ जो हुआ वो सही नहीं हुआ। पर अब हमें ही अपने बेटे को संभालना होगा”। उसने मुझे अनूप की नाजुक उम्र का हवाला देते हुए उसपे अत्यधिक क्रोध न करने और धर्य से काम लेने को कहा। फिर वह अलमारी से अपने गहने लायी और कहा, “गहने विपदा के समय न काम आये तो किस काम के?” मेरी आँखों से आँसू छलक उठे और मैंने उसका धन्यवाद किया।
अगले दिन मैंने मेरी पत्नी के गहने और दुकान के कागजात गिरवी रख 1 करोड़ 40 लाख रूपये जुटा लिए। 10 लाख की ऍफ़ डी तुड़ाकर डेढ़ करोड़ रूपये जमा करके मेरे बेटे को बुलाया। उसके हाथ में वो रुपयो का बैग दिया और कहा, “ये डेढ़ करोड़ रूपये ले जाओ”। वह सकपका गया और पूछा, “कहाँ ले जाना है पापा? मैंने उत्तर दिया, “मुझे सब पता है” और फिर सारा व्रतांत बताया। अनूप शर्मिंदगी से रोने लगा और उसने माफ़ करने की विनती की। मैंने उसे फिर ये न दोहराने का वचन लेकर उसे माफ़ कर दिया।
इस हादसे के बाद अनूप ने क्रिकेट और सट्टेबाजी से दूरी बनाली। वह कॉलेज के बाद मेरी दुकान आके मेरी मदद करने लगा। हमें हमारा बेटा तो वापस मिल गया पर बहुत से रिश्ते छूट गए। मेरी सारी कमाई गिरवी रखे हुए गहने और दुकान के कागज़ात छुड़ाने में खर्च हो जाती। इस वजह से मैं घरखर्च में सहयोग नहीं दे पा रहा था। धीरे धीरे भाईसाहब और भाभी का व्यवहार हमारी तरफ बदलने लगा और एक दिन उन्होंने हमें अलग हो जाने को कहा। हमने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की पर वो नहीं माने और कहा वो नहीं चाहते की अनूप का असर उनके बेटे पर पड़े। हमें विवश हो घर छोड़ना पड़ा और आज मैं और मेरी पत्नी अपने बच्चों के साथ अलग रहते है।