पाश्चाताप

पाश्चाताप

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“बहू जरा पानी देना”, बाबूजी ने आवाज़ लगाई।


प्रिया ने झल्लाते हुए जवाब दिया, “मैं राहुल को स्कूल के लिए तैयार कर रही हूँ, आप खुद ही ले लीजिए”


बाबूजी लकड़ी का सहारा लेते हुए रसोई की तरफ बढे। कांपते हुए हाथों से जैसे ही उन्होंने पानी का गिलास लिया, वह अकस्मात ही उनके हाथों से छूट गया। यह देख दफ्तर के लिए तैयार होते हुए रमन चिल्लाया,


“ओफ्फो बाबूजी, आपसे एक भी काम ठीक से नहीं होता। प्रिया का काम और बढ़ा दिया” झुंझलाते हुए प्रिया ने पानी साफ़ किया और फिर बाबूजी को रात की रोटी और चाय देकर दोनों पति पत्नी अपने अपने दफ्तर के लिए निकल गए।


यह सिर्फ आज की बात नहीं थी। शीलाजी के जाने के बाद बाबूजी बिल्कुल अकेले हो गए थे। उनका बेटा रमन और बहू प्रिया अपने जीवन में व्यस्त थे। उनके पास बाबूजी के साथ कुछ क्षण व्यतीत करने का समय नहीं था। उनका पोता राहुल उनका जीने का एकमात्र सहारा था। बाबूजी आँखे बिछाये उसका स्कूल से आने का इंतज़ार करते। राहुल भी दादाजी से उतना ही प्यार करता था। स्कूल से आते ही वह बाबूजी के गले लग जाता और बाबूजी को फिर जीने की वजह मिल जाती।


एक रात बाबूजी अपने कक्ष में सोने के लिए जा रहे थे, तभी उन्होंने उनकी बहू को रमन से यह कहते हुए सुना। “सुनो जी, आप मुझे गलत मत समझिये। बाबूजी को अब हम यहाँ और नहीं रख सकते। मैं घर, दफ्तर और राहुल का कार्य करके पहले ही बहुत थक जाती हूँ। ऊपर से आपके बाबूजी का कार्य। मैं अकेले ये सब नहीं संभाल सकती” रमन ने कुछ क्षण के लिये प्रिया की बात का उत्तर नहीं दिया। बाबूजी के मन में उम्मीद बंधी की शायद वो बहू को समझायेगा। पर उनकी आशा के विपरीत रमन ने प्रिया से गंभीरतापूर्वक कहा, “मैं तुम्हारी परेशानी समझ सकता हूँ। हमें बाबूजी को वृद्धाश्रम भेज देना चाहिए। वहां उनका ख्याल भी रखा जायेगा और उनकी उम्र के लोगों में उनका मन भी लगा रहेगा। मैं कल सुबह ही उन्हें वहां छोड़ कर आ जाऊंगा”


बाबूजी भारी मन से अपने कक्ष में गए। उनकी आँखें नम थी। उन्हें वो पल याद आ रहा था जब वह पहली बार रमन को हाथ पकड़ कर स्कूल छोड़ कर आये थे। आज वही रमन कल उनका हाथ पकड़ कर उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ कर आएगा। तब अपने बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए बाबूजी प्रेमपूर्वक रमन को स्कूल छोड़ कर आते थे और आज बाबूजी को बोझ समझ कर रमन उन्हें वृद्धाश्रम भेज रहा था। बाबूजी ने रमन के मासूम बचपन को याद करते करते अपनी आँखें बंद कर ली।


अगले दिन सुबह बाबूजी ने स्कूल जाते हुए अपने पोते राहुल को बड़े प्रेम से गले लगाया। न जाने फिर राहुल से मुलाक़ात होगी या नहीं, ये विचार करके उनकी आँखे छलक उठी। राहुल ने ये देख बड़ी मासूमियत से कहा, “दादाजी, स्कूल ही तो जा रहा हूँ। दोपहर तक आ जाऊंगा और फिर आप और मैं बहुत बातें करेंगे” बाबूजी मुस्कुराये और राहुल को टाटा किया।


कुछ समय बाद रमन और प्रिया ने बाबूजी से उनके साथ चलने को कहा। बाबूजी का मन घबराया और उन्होंने सोचा अब इस घर से जाने का समय आ गया है। उनकी अपेक्षा अनुसार वह एक वृद्धाश्रम पहुँच गए। पर वहां सामने ही बहू के पिताजी को देखकर वह चौंक गए। उन्होंने बहू की तरफ देखा। वह भी वैसे ही अचंभित थी। उसने घबरा कर अपने पिताजी से पूछा,


“पापा आप यहाँ कैसे?” इसके पहले की वह कुछ उत्तर दे पाते, रमन ने प्रिया को कहा,


“जैसे तुम्हे बाबूजी से परेशानी होती है, वैसे ही तुम्हारी भाभी को भी होती होगी ना। इसीलिए मैंने सोचा आज बाबूजी के साथ साथ तुम्हारे पिताजी को भी वृद्धाश्रम छोड़ दूं”


यह सुनते ही प्रिया के पैरों तले जमीन खिसक गयी। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह फूट- फूट कर रोने लगी। उसने अपने पति रमन और बाबूजी से माफ़ी मांगी और घर चलने को कहा। बाबूजी की आँखों से भी प्रेमाश्रु बहने लगे। उन्हें अपने बेटे पर नाज़ हुआ और उन्होंने अपनी बहू की गलती को नादानी समझ माफ़ कर दिया। फिर सभी हंसी-ख़ुशी अपने घर चले गए और सदैव प्रेमपूर्वक रहने लगे।


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