स्त्री कुछ भी कर सकती है !
स्त्री कुछ भी कर सकती है !
"नहीं साब आप बिना कार्ड के अन्दर नहीं जा सकते।"
वॉचमैन सुनील को रोकने की पूरी कोशिश कर रहा था। पर सुनील जैसे उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था।
तभी सुनील की पत्नी आरती ने आकर वॉचमैन को बताया कि ये उसके पति है। ये सुन वॉचमैन के शरीर में बिजली सी दौड़ गई । उसने तुरन्त सुनील को सेल्यूट कर सॉरी साब बोला और गेट खोल दिया।
सुनील के अन्दर आते ही आरती ने तंज कसा ...."क्या सुनील बाबू बिना पास लिये क्यु आ गये ? दिया तो था मैने आपको 'बीआई पी' पास। "
फिर थोड़ा टेढ़ी मुस्कान के साथ बोली.... "लगता है आपको ये लगा होगा कि सुनील मल्होत्रा ग्रेट बिजनेस मैन को सभी जानते होगें। तो बिना पास के भी एंट्री हो ही जायेगी। पर सुनील बाबू आपको हर कोई नहीं जानता। "
उसकी बात सुन सुनील मुस्कराते हुये आरती संग अन्दर आ गये। जहाँ मौका है,आरती को स्त्रियों के लिये किये गये कार्यो के लिये सम्मानित किये जाने का। आज आरती यहाँ की चीफगेस्ट है। चारों तरफ उसके बड़े - बड़े पोस्टर लगे है। पत्रकार उसका इंटरव्यू लेना चाहते है। और वहाँ आया हर शख्श उसका ऑटोग्राफ लेना चाहता है।
आरती सुनील को 'बीआईपी' कुर्सी पर बिठा कर सभी से मिलने में व्यस्त हो गई। और सुनील अपनी यादों में पुरानी आरती को सोचने लगा।
आरती भी आम महिलाओं की तरह ही एक घरेलू और पारिवारिक महिला थी। जो अपनी जिन्दगी बच्चो एवं पति की देखभाल और घर संभालने में ही गुजार रही थी।
एक दिन एक छोटी सी बात पर सुनील और आरती की कहासुनी हो गई।आरती गुस्से में बोले जा रही थी कि "तुम्हे तो मेरा ख्याल ही नहीं रहता। जी करता है सब छोड़ के चली जाऊँ। जब मैं नहीं होऊँगी न तब पता चलेगा। "
तो गुस्से मै भी सुनील ने हंसते हुये कह दिया.... "चली जाओ कहाँ जाओगी। ज्यादा से ज्यादा मायके। वहाँ से भी चार, पाँच दिन में वापिस आ जाओगी। "
तो आरती तुनक कर बोली... "मायके क्यु जाऊंगी। इतनी बड़ी दुनिया में कहीं भी चली जाऊंगी।"
इस बार सुनील लगभग ठहाका लगा कर हँसते हुये बोला..... " तुम कहीं नहीं जा सकती। तुम्हे आता ही क्या है। घर संभालने के अलावा। पैसे कमाना कोई आसान काम तो है नहीं। और बिना पैसों के इस दुनिया में रहना नमुमकिन है। इसलिये चुपचाप सो जाओ। "
उस दिन आरती का मुँह उतर गया। वो लेट तो गई पर नींद उसकी आँखों से रूठ गई थी। उसे सुनील का उसका यूँ अपमान करना अच्छा नहीं लगा था। क्योंकि काम तो वो भी करती थी। भले ही घर से बाहर नहीं जाती काम करने पर घर का काम भी तो काम ही होता है।
पर ये बात पुरुषों को कब समझ आई है। जो सुनील को समझ आती। वो तो अपने काम करने के दंभ में चैन से सो गया। पर उसके शब्दों ने आरती को सोचने पर मजबूर कर दिया कि सच में अगर कभी उसे किन्ही हालातों में घर छोड़ कर जाना पड़े तो वो कहाँ जायेगी??
बस यहीं से आरती का युद्ध शुरू हुआ। अपने साथ - साथ जो भी उससे जुड़े उसे स्वाबलम्बि बनाने का। उसने सिलाई, कड़ाई, बुनाई, क्रोशिया जैसी चीजों से गृहउद्योग शुरू किया। और कुछ ही सालों में वो बहुत सारी महिलाओं की रॉलमॉडल बन गई। "
तभी हॉल में हुई तालियों की गढ़गड़ाहट से उसका ध्यान टूटा। सामने स्टेज पर कार्यक्रम के संचालक आरती को सभी को संबोधित करने का अनुरोध कर रहे थे। और सभी अतिथिगण तालियां बजा कर उसका स्वागत कर रहे थे।
स्टेज पर पहुँच कर आरती ने माइक संभाल लिया और बोलना शुरू करने से पहले उसने सुनील की तरफ एक मुस्कान के साथ देखा और बोलना शुरू किया.... .
"मेरी प्यारी बहनों, हमारे पति कितने भी अच्छे हो पर कभी न कभी हर महिला को चाहे वो अमीर हो चाहे गरीब कुछ बातें तो सुनने को मिल ही जाती है। जैसे - तुम करती क्या हो? तुम्हे आता ही क्या है? हमारे बिना तुम जाओगी किधर??
ये वो सवाल है । जिन्होंने हर औरत के मन में कभी न कभी तेहलका जरूर मचाया होगा। मेरे मन मे भी मचाया और इन्ही सवालों के जबाव जानने की कोशिश ने मुझे आज यहाँ आप सभी के सामने खड़ा कर दिया। "
तभी नीचे से किसी पुरुष की वयंगात्मक आवाज गूंजी... " तो जबाव मिल गये कि अभी भी कोशिश जारी है। "
उसकी इसबात पर पुरुष वर्ग के दबी हुई हंसी से पूरा हॉल सुगबगा उठा।
इस सुगबुगाहट को महसूस कर आरती के चेहरे की मुस्कराहट और भी गहरी हो गई । और उसी मुस्कान के साथ उसने बोलना जारी रखा।......
"हम महिलाओं से सवाल करने वालों से मै पूंछना चाहती हूँ, बस एक सवाल हमें क्या नहीं आता?? जो स्त्री अपने बेटे को हर काम सिखा सकती है तो क्या वो खुद नहीं कर सकती।
पर वो नहीं करती क्योंकि वो अपने से ज्यादा अपने परिवार को महत्व देती है। जो पापा, भाई, पति ने बोल दिया हम वहीं करने लगते है। और वहीं सब अपनी बेटी को भी करने को कहते है। और बेटियां भी आसानी से हमारे नक्से कदम चलने लगती है।
पर मै आज पूरे पुरुष वर्ग को ये बताना चाहती हूँ कि पैसे कमाना हम महिलाओं के लिये बहुत मुश्किल नहीं है। जिसके लिये तुमलोग डिग्रियाँ लेते हो वो तो हम लड़कियाँ बचपन से करते है।
जैसे तुम लोग पैसे कमाने के लिये मैनेजमेंट का कोर्स करते हो ।हम तो बचपन से मैनेज करके ही सब काम करते है। सिलाई , कड़ाई ,बुनाई, खाना बनाना ये सब कामों से आसानी से पैसा कमाया जा सकता है। पर हम लोग कमाते नहीं है कि कहीं तुम्हे बुरा न लगे।
और अगर कुछ महिलाएं करती है। तो आप मर्द लोग किसी भी काम में मदद करने में हाथ खड़े कर देते हो। यानी अगर कोई लड़की बाहर जाकर कितने भी पैसे कमाले । पर घर आ कर खाना उसे ही बनाना है।
हम महिलाएं बहुत आसानी से घर बाहर की जिम्मेवारी उठा लेती है। तो क्या अपने लिये एक घर नहीं बना सकती। पर नहीं बनाती क्योंकि वो आपके घर को ही अपनी दुनिया मानती है। और उस दुनिया को छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं चाहती।
और सबसे बड़ा सवाल होता है। कहाँ जाओगी? घर के बाहर दुनिया बहुत खराब है।
ये सवाल करने वालों से बोलना चाहूँगी कि अगर सारे मर्दो की नजरें हम महिलाओं के लिये अच्छी हो जाये तो हम कहीं भी जा सकते है। तुम लोगों की वजह से ही हमें शाम होते ही घर लौटना पड़ता है। "
आरती की ये बातें सुनकर पूरे हॉल में एक सन्नाटा पसर गया था। जैसे सभी उसकी बातों पर गहन अध्यन कर रहे हो।
सोच तो सुनील भी रहा था। कैसे उसदिन उसने आरती से बोल दिया था कि तुम कहीं नहीं जा सकती। बिना ये सोचे कि अगर वो सच में चली गई तो उसका और उसके घर का क्या होगा?
और उसके बाद जब उसने अपना काम शुरू किया तो हमेशा उसके काम को छोटा ही समझा। कभी घर में या बाहर उसकी कोई मदद नहीं की। जबकि वो तो हमेशा हमारे सारे काम टाइम पर करती है। तभी तो मै अपने ऑफिस टाइम से पहुँच पाता हूँ। घर और बच्चों की चिन्ता किये बिना आराम से मन लगाकर काम करता हूँ। मेरे बिना वो सब करलेती है। मै तो उसके बिना कभी चाय भी नहीं पी पाता। **
तभी एक बार फिर आरती की आवाज ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इसबार वो सभी महिलाओं को संबोधित कर बोली....
" बहनो हमने जो सहन कर लिया अब वो हमारी बेटियां न सहें इसके लिये हमें आगे आना होगा। हमें अपनी हर बेटी को ये सिखाना है कि 'भले ही वो अपने लिये घर न बनायें । पर अपने आपको इस लायक बनायें कि कोई ये न बोल सकें कि तुम कहाँ जाओगी। ये बोलने से पहले सामने वाले के दिमाग में ये बात आये कि इसे तो सब कुछ आता है। ये कुछ भी कर सकती है।
हमें अपनी बेटियों को अब सिर्फ कोमल सी राजकुमारी नहीं बल्कि एक योद्धा भी बनाना है। ताकि कोई भी मर्द उन्हें कमजोर समझ उनका अपमान न कर सकें। "
आरती की एक -एक बात ने जैसे सभी पर जादू सा किया था। क्या महिला क्या मर्द सभी उसकी बात से सहमत थे। सभी तालियों के साथ उसका अभिनंदन कर रहे थे।
अपने सम्मान की ट्रॉफि ले जब वो दमकते चेहरे के साथ नीचे आई तो सुनील ने उसका स्वागत हाथ जोड़कर किया। और बोला.......
"आरती मै तुमसे हर उसबात के लिये माफी मांगता हूँ। जिससे तुम्हारा दिल दुखा है। तुमने बिल्कुल सच कहा महिलाएं चाहे तो कुछ भी कर सकती है। बस वो हम मर्दो के प्यार की वजह से कुछ करती नहीं है। वो जिस घर को अपना समझ अपने प्यार से सींचती है। हम वो उनकी कमजोरी समझ लेते है।
आज मै समझ गया कि हर महिला में एक योद्धा होता है। जो बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हम मर्दों के बनाए रूढ़िवादी विचारों से लड़ती रहती हैं। और मर्दो से हर लड़ाई जीत कर भी हार जाती है। सिर्फ उनके प्यार के लिये। जैसे तुम हर क्षेत्र में जीत कर भी अभी तक हमारे जैसे बुरे व्यक्ति के साथ रहती हो। जो जब चाहे बोल देता है चली जाओ जहाँ जाना हो।
पर अब मै ऐसा कभी नहीं बोलूंगा। बस इसबार मुझे माफ कर दो। "
सुनील की बातें सुन आरती बोली.... "बस सुनील यहीं इज्जत चाहिये हर महिला को। उसे ज्यादा कुछ नहीं चाहिये होता । "
सुनील ने आरती की बात सुन उसे प्यार से गले लगा लिया।
