शहर में सर्कस
शहर में सर्कस
हर साल की तरह इस साल भी शहर में सर्कस आया। शहर के बच्चों को वो सर्कस बहुत अच्छा लगता था और कुछ को तो उसका इंतज़ार भी रहता था।
सर्कस के मालिक का लड़का मोहन जो विदेश से आया था इस बार बहुत उत्साहित था। उसने बाहर से विदेशी जिमनास्ट, तरह तरह के रंग-बिरंगे पक्षी, घोड़ों पर करतब करने वाले खिलाड़ी सब का इंताज़म किया था।
जोर-शोर से तयारी हुई, खूब इश्तीहार छपे। उसको बहुत भीड़ आने का अंदाज़ था। पहले एक-दो दिन भीड़ उमड़ी पर फिर वो जितना अंदाज़ा था उतने लोग नहीं आ रहे थे और बच्चे भी इस बार कम थे। कम भीड़ से मोहन थोड़ा परेशान और झुंझलाया हुआ था।
एक शाम वह अपने दफ्तर में बैठा हुआ था तभी सर्कस के मालिक उर्फ उसके पिताजी वहाँ आए और उससे उसकी परेशान का कारण पूछा। उसने अपनी उलझन बताई। उसके पिता मुस्कराए ओर बोले बेटा तुमने सब चीज पर ध्यान दिया पर एक छोटी सी बात तो भूल ही गए। किसी भी सर्कस की जान और बच्चों के सबसे पसंदीदा जोकर होता है। यही जोकर तो भीड़ को खिंचते हैं, इनके करतब बच्चों को खूब भाते हैं। विदेशी जिमनास्ट, तरह-तरह के रंग-बिरंगे पक्षी, घोड़ों पर करतब करने वाले खिलाड़ी इन सब में जोकर का करतब बहुत कम कर दिया, तुम इनके कार्यक़म की अवधि बढ़ाओ फिर देखो कितनी भीड़ आती है।
मोहन ने ऐसा ही किया और जोकरों के करतब पर जोर दिया। लोगों और खासकर बच्चों को खूब मजा आया। दुबारा भीड़ उमड़ने लगी। मोहन को अपना सबक मिल गया था, बदलाव और आधुनिकता के साथ बुनयादी चीज़ों का भी ध्यान रखना जरूरी है। कभी-कभी चकाचोंध में जो सबसे जरूरी है वो हम भूल जाते हैं।