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Dr. Pradeep Kumar Sharma

Drama Tragedy Classics

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Dr. Pradeep Kumar Sharma

Drama Tragedy Classics

सरकारी नौकरी

सरकारी नौकरी

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ऊपर वाला जब देता है तो छप्पर फाड़ के देता है।’’ और ‘‘समय से पहले तथा भाग्य से अधिक न कभी किसी को मिला है और न मिलेगा।’’ ये बातें सिर्फ कहने सुनने के लिए ही नहीं है। अब रामलाल को ही देख लीजिए।

सरकारी नौकरी की आस लिए अपने जीवन के चौतीस बसंत पार कर चुके एम. एस-सी. प्रथम श्रेणी में पास पी-एच. डी. उपाधिधारक डाॅ. रामलाल चौधरी पिछले दिनोें डूबे मन से तथा ‘‘नहीं मामा से काना मामा भला’’ सोचकर के कालेज में भृत्य के पद हेतु आवेदन पत्र भर दिया था। कुछ दिन बाद संविदा सहायक प्राध्यापक की भर्ती के लिए भी आवेदन मंगाया गया। ‘‘जब तक साँस है, तब तक आस है’’ वाली उक्ति को चरितार्थ करते हुए डाॅ. रामलाल ने उसमें भी फार्म भरकर जमा कर दिया।

अप्रत्याशित ढंग से क्रमशः दोनों जगह से साक्षात्कार हेतु बुलावा पत्र रामलाल को मिला। साक्षात्कार आशानुरूप रहा। दोनों ही पदों के लिए उसका चयन हो गया।

परंतु हाय री किस्मत ! सरकार और सरकारी नियमों के कारण डाॅ. रामलाल चौधरी ने सहायक प्राध्यापक की बजाय उसी कालेज में भृत्य के पद पर कार्यभार ग्रहण किया क्योंकि यह पद स्थायी था और एक निश्चित वेतनमान पर नियुक्त था, जबकि सहायक प्राध्यापक का पद संविदा आधार पर था और सालभर बाद फिर से सड़क पर आ जाने का खतरा था।


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