STORYMIRROR

Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Classics Inspirational Others

4  

Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Classics Inspirational Others

सन्यासी का संकल्प

सन्यासी का संकल्प

12 mins
19

सन्यासी का संकल्प 

 वनटांगिया मजदूर जो न तो आदिवासी होता है जन जाति से सम्बंधित सिर्फ मजदूर होता है जो वन प्रदेशो में वनों का संरक्षण संवर्धन करता ।

गरीबी भुखमरी अशिक्षा कुपोषण आदि से संघर्ष करता जीवन व्यतीत करता है वनटगीया मजदूरों की वन बस्तियां किसी सामाजिक परिभाषा परिसीमन में नही आती थी।

बनटगिया मजदूर समाज की संस्कृति संस्कार तीज त्योहार मूल रूप से देश के अन्य समाज के अनुरूप ही है बाल विवाह एक कुरीति के रूप में है बनटगिया मजदूर बस्तियां जो जंगल रिहायशी कस्बो शहरों के आस पास है उन्ही वन प्रदेशों में है। 

संसाधन विहीन गरीबी से जूझता यह समाज जंगल वनो के अंधेरे में भी राष्ट्र के प्रति आस्थावान होकर अपने बेहतर भविष्य के लिए उजाले कि किरण को खोजता रहता था ।

मोलहु तीकोनिया जंगल गोरखपुर मे बनटगिया मजदूर थे जिन्होंने जन्म लिया जंगल मे मोलहु को जंगल छोड़ दुनियां दुनिया दारी से कभी कुछ लेना देना नही रहा वनो का संरक्षण संवर्धन  प्रकृति के सेवक बनटगिया मोलहु का शिक्षा दीक्षा से कभी पाला नही पड़ा सिर्फ जंगलों के बीच झोपडी और दो जून की रोटी ही जीवन का सार सत्य था।

मोलहु जब पंद्रह सोलह वर्ष के हुये शादी इमिलिया से हुई और देखते देखते कब वह तीन बेटों और दो पुत्रियो के पिता बन गए उन्हें खुद भी तब आभास हुआ जब बेटी बेटे उनकी लंबाई के बराबर हो गए ।

सुगनी और मैना दो बेटियां बड़ी थी शोमारू, भैरू ,दीघा तीन बेटे थे सुगनी जब बारह तेरह वर्ष कि हुयी तभी मोलहु ने उसका विवाह बनटगिया मजदूरों के ही परिवार के युवक सुघर से कर दिया धीरे धीरे मोलहु ने मैना शोमारू भैरू दीघा का भी शादी व्याह कर दिया और जिम्मेदारियों से मुक्ति पा ली।

 मोलहु के चार बच्चे मैना शोमारु भैरु दीघा बनटगिया मजदूरों की किस्मत करम के अनुसार जीवन यापन कर रहे थे जिससे मोलहू संतुष्ट थे ।

लेकिन बड़ी बेटी सुगनी को लेकर बहुत दुखी रहते जिसका कारण सुगनी पंद्रह वर्ष कि ही आयु में मॉ बन चुकी थी और उसका पति अक्सर शराब के नशे में उसे तरह तरह के प्रताड़ना देता बनटगिया मजदूरों के साथ एक और दुर्भाग्य जुड़ा है रिहायशी कस्बो या जिन शहरों के आस पास के बन क्षेत्रो में बनटांगिया बस्तियां है वहाँ देशी शराब बनाने के अवैध कारोबार भी खूब फलते फूलते है जिसका पहला शिकार अशिक्षित बनटगिया समाज ही होता है आस पास के शहरी कस्बाई निम्न एव मजदूर वर्ग भी इस प्रकार के देशी शराब का सेवन करने जाते रहते है कभी कभार नकली शराब के कारण बड़े बड़े हादसे भी पेश आते रहते है।

सुगनी का पति निकम्मा नही तो कामचोर अवश्य था किसी प्रकार के मेहनत मजदूरी से जी चुराता भागता और जब उसे शराब की तलब लगती पीता उधारी जब अधिक हो जाती तब पैसे के लिए पत्नी को ही प्रताडित करता ।

सुगनी अनपढ़ होते हुए भी भारतीय नारी कि प्रतीक पति को संतुष्ट रखने एव कलह से बचने के लिए जो भी उसके बस में रहता  करती ।

बनटगिया मजदूर जिन जंगलों में रहते है उनमें ऐसे संसाधनों की कमी रहती है जो उनके जीविकोपार्जन का स्रोत हो पेड़ और लकड़ियां वन विभाग की संपत्ति होती है।

 बनटगिया मजदूर सिर्फ जंगलों के सरंक्षण संवर्धन के कार्य मे उपयोगी होते है उनसे जो भी मजदूरी मिलती है वह जीविकोपार्जन के लिए अपर्याप्त होती है ।

सुगनी जंगलों में पेड़ से टूटे सूखे टहनियों को जंगल मे कोसो पैदल चल कर अपनी दूधमुंही बच्ची को गोद मे लिए एकत्र करती और उन्हें सर पर कावंड गोद मे दूधमुंही बच्ची लिए बाज़ार जाती ।

गोद मे  दूधमुंही बच्ची ऐसे चिपकी रहती जैसे कोई बच्चा मां के आंचल में ब्रह्मांड के सुख का दिवा स्वप्न देख रहा हो जंगल की लकड़ी के खरीदार कभी मील जाते जब किस्मत ठीक रहती लेकिन कभी नही मिलते तो निराश हताश पति कि क्रूरता  झेलती

ऐसे ही बदकिस्मत सुगनी का जीवन बीतता जा रहा था ।

एक दिन सुगनी सर पर लकड़ियों का कांवड़ लिए गोद मे अपनी दूधमुंही बच्ची कभी दाहिने गोद मे लेती कभी बाए गोद मे सुगनी के बदन पर जो वस्त्र थे वो भी  अपर्याप्त सुगनी कि छोटी बच्ची माँ के फटे वस्त्रों से स्तन पान करने का प्रयास करती यह ऐसा दृश्य जिसे देखकर विधाता भी  दुःखी हो जाय हृदय को झकझोर देने वाला भारतीय नारी कि विडंबना का परिहास उड़ाता।  

वन पदेश से बाहर सुगनी सड़क के मार्ग से कावड़ पर  लकड़िया लिए   लकड़िया बेचने जा रही थी ठीक उसी समय महान संत सन्यासी महंत जन भावों की आस्था के प्रतीक किसी कार्य से उसी रास्ते किसी प्रयोजन से कही जा रहे थे भगवा बाना नाक पर चश्मा तेजस्विता ऐसा सत्य सनातन का प्रकाश साक्षात जब उनका ध्यान सड़क पर सुगनी के तरफ पड़ा तब उन्होंने वाहन चालक से कहा गाड़ी रोको चालक ने गाड़ी रोक दी ।

चालक को बहुत आश्चर्य हुआ कि महराज ने गाड़ी क्यो रुकवाई उसे जरा भी भान महाराज के विचार उद्देश्य का नही हुआ ।

महराज के वाहन से उतरते ही वाहन चालक एव अन्य लोग जो महराज के साथ थे पीछे पीछे चल पड़े महराज एकाएक सड़क के उस तरफ गए जिस तरफ से सुगानी कावड़  पर लकड़ी लिए अपनी किस्मत को कोसती चली जा रही थी ।

महराज को सामने देख सुगनी डरी सहमी सड़क के और किनारे चलने लगी तभी महाराज ने कहा रुको पुत्री सुगनी भय से और किनारे होकर कुछ तेज चलने लगी एक तो सर पर कावड़ का बोझ दूसरे गोद मे दूधमुंही बेटी उसको लगा उससे अनजाने में कोई अपराध हो गया है ।

महाराज कि मंशा को समझते ही उनके साथ चल रहे लोंगो  ने कहा रुको महराज तुम्हे ही बुला रहे है हांपते कांपते सुगनी अपराध बोध से ग्रसित सड़क के किनारे खड़ी हो गयी महाराज सुगनी के पास पहुंचे कुछ बोलते उससे पहले उनका वाहन चालक बोल उठा ये महाराज अभेद्य नाथ जी है महाराज ने वाहन चालक से चुप रहने का सकेत किया ।

महराज बोले बेटा आप कौन है? कहाँ रहते है ?इस तरह कहा जा रहे है ?

सुगनी ने महाराज के इतने सारे प्रश्नों को सुनते ही कावड़ सड़क के एक किनारे रख दिया और बहुत ही विनम्रता से महाराज को नमन किया अनपढ़ होते हुए भी सुगनी को सामान्य व्यवहारिकता का बोध था वह बोली महाराज हम सुगनी है हम बनटगिया मजदूर है बाज़ार जा रहे है लकड़ी बेचने ।

महाराज ने फिर प्रश्न किया तुम तो विवाहित हो तुम्हारा पति क्या करता है ?

सुगनी बोली महाराज मेरा पति कुछ नही करता सिर्फ दारू पिता और मार पीट करता है ।

महराज ने पुनः पूछा कि क्या तुम्हारा खर्च इन लकड़ियों के बेचने से जो पैसे आते है उससे चल जाता है ?

सुगनी ने बताया नही महाराज  कोसो घूम घूम कर लकड़िया एकत्र करती हूँ सप्ताह में दो दिन बाज़ार लेकर आती हूँ जो पैसा मिलता है पति ही डकार जाता है। 

महराज ने जब सुगनी कि व्यथा सुनी उनका हृदय द्रवित हो गया उन्होंने कहा आज तुम्हारी लकड़ियां हम खरीद लेते है और महराज अभेद्य नाथ जी ने सुगनी को लकड़ियों के दाम से चौगुना दाम दिया और कहा ये लकड़ी अब तुम बाज़ार न ले जाकर अपने घर रख ले जाओ और कभी इसे मत बेचना।

 महराज ज्यो ही मुड़े उनके पीछे उनके साथ के लोग भी चल दिये महराज गाड़ी में बैठे और गाड़ी चल दी ।

सुगनी आश्चर्य से तब तक पत्थर कि मूरत की तरह खड़ी देखती रही जब तक गाड़ी आंख से ओझल नही हो गयी ।

महाराज गम्भीर मुद्रा सोच में खो गए उनके साथ चल रहे व्यक्तियों में एक ने कहा महराज किस सोच में पड़ गए ये दुनिया है ऐसे ही चलती रहेगी। 

अभेद्य नाथ जी ने बड़े शांत स्वर में कहा तब तो ऐसी दुनिया को ही बदलना होगा आज अभेद्य नाथ  कि प्रतिज्ञा है कि बनटगिया समाज की सामाजिक स्थिति में बदलाव का विगुल हमारी परंपरा का परम कर्तव्य होगा जिसे हर परिस्थिति में निर्वहन करना होगा। 

महाराज फिर शांत होकर अपने कार्यक्रम को चल दिये लेकिन उनके अंतर्मन में सुगनी और बनटगिया समाज की स्थिति आवाज दे रही थी उठो संत बनटगिया समाज का उद्धार उत्थान करो  गुरु पिता बनकर पोषण करो ।

अभेद्य नाथ जी ने अपने संकल्प का निर्वहन करने के लिए शुभारम्भ किया जंगलों के आस पास शैक्षिक संस्थानों की संस्कृति उनका प्रथम पग था जो प्रायोगिक लेकिन कारगर था ।

अभेद्य नाथ जी ने जीवन पर्यन्त अपने संकल्प पर उपलब्ध संसाधनों द्वारा बनटगिया समाज के उद्धार का कार्य किया जिससे समाज में गुणात्मक सुधार संभव हो सके।

बीसवीं सदी के अंतिम दौर में अभेद्य नाथ ने अपने  उत्तराधिकारी कि घोषणा की उत्तराधिकारी भी युवा उत्साही ऊर्जावान जो अभेद्य नाथ जी के जीवन मूल्यों संकल्पों के प्रति आस्थावान समर्पित संत परम्परा का युवराज उज्ज्वल नाथ शुरू से ही गुरु के आदर्शों के लिए निष्ठावान के साथ कार्य करना शुरू किया जिसकी मूल आत्मा सुगनी को मन वचन से गुरु का दिया वचन बनटगिया समाज का सम्पूर्ण विकास शिक्षा स्वास्थ सामाजिक आर्थिक सभी स्तरों पर सुधार थी।

बनटगिया बस्तियों को  गांव की सीमा में परिभाषित कर उन्हें ग्राम्य सुविधाओं से युक्त करने के सकारात्मक प्रयास  सम्भव थे संत अभेद्य नाथ जी ने बनटगिया समाज के लिए किया लेकिन उनकी दो प्रमुख समस्याएं थी संत होने के कारण बहुत से धार्मिक अनुष्ठानों एव गतिविधियों से जुड़े होने के से समय का अभाव  एव उनके समय मे प्रशासनिक  एव सामाजिक हालात साथ साथ उनके पूरे जीवन काल मे ऐसी कोई सरकार राज्य स्तर या केंद्र स्तर पर नही थी जो  उनके किसी उद्देश्य या संकल्प में सकारात्मक  सहयोग कर सके हाँ उन्हें सम्मान अवश्य हर वर्ग का प्राप्त था।

अभेद्य नाथ जी  द्वारा नियुक्त  उत्तराधिकारी दृढ़ निश्चयी और अपने धुन ध्येय का मजबूत युवा था जिसने कुछ समय में ही शहर समाज के हालात को समझकर सम्पूर्ण सनातन समाज को एकत्र करने के लिए युवा संगठन का निर्माण कर गांव गांव तक सकारात्मक संकेत दिया जो युवा समाज को बहुत भाया और मन से स्वीकार किया गया।

उत्तराधिकारी के रूप ने उज्जवलनाथ ने पूरी ऊर्जा से सनातन के उद्देश्यों को प्रसारित करते हुए युवा समाज को जो किसी भी विकास निर्माण के लिए जिम्मेदार एव उत्तरदायी सदा रहता है के मन मस्तिष्क कर्म धर्म मर्यादा आचरण कि संस्कृति सांस्कार में उतार दिया यही अभेद्य नाथ जी के उत्तराधिकारी के रूप में उज्जवल नाथ कि अविस्मरणीय उपलब्धि थी जिसने भविष्य को निर्धारित करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया अभेद्य नाथ जी ने आधे अधूरे मन से राजनीति को ग्राह किया कभी पूर्णता के रूप में स्वीकार नही किया क्योकि उनके विचार से परिवर्तन  सामाजिक क्रांति एव जागरूकता का सार था जो स्वंय परिवर्तन को आत्मसाथ करती है जिसमे राजनीति एव शासन प्रशासन कि बहुत महत्वपूर्ण भूमिका नही होती है उन्होंने जीवन भर इसी सिंद्धान्त का पालन किया बहुत सी सफलताओं का वरण किया किंतु शिखर बहुत दूर था ।

अभेद्य नाथ जी के निर्वाण के बाद उज्जवलनाथ जी का राज्याभिषेक हुआ  उज्जवल नाथ जी ने  लगभग दो दशकों के महत्वपूर्ण समय में राजनीतिक शक्ति कि उपलब्धि हासिल कर लिया था।

उज्जवल नाथ जी गुरु पिता अभेद्य नाथ जी के प्रत्येक संकल्पों के लिये प्रतिबद्ध एव समर्पित  थे ।  

उज्जवल नाथ जी का ध्यान गुरु द्वारा सुगनी को दिए वचन कि तरफ गया वन जंगलों के बनटगिया मजदूरों की व्यथा वेदना को ठीक उसी प्रकार अनुभव किया जिस वेदना कि अनुभूति उनके पिता गुरु अभेद्य नाथ जी ने सुगनी से मुलाकात के बाद की थी समाज शक्ति उद्देश्य सभी महाराज उज्जवल नाथ जी के साथ थे और उन्होंने संत परम्परा कि प्रतिज्ञा जो उनके गुरु द्वारा ली गयी थी को बनटगिया मजदूरों के लिये सम्पूर्णता के साथ आगे बढाने का कार्य शुरू किया ।

जिन बनटांगिया मजदूरों की व्यथा आवाज वन जंगलों में ही गूंजती  दम तोड़ देती वह आकांक्षाओं के साथ मूर्त रूप लेने लगी दिन में भी वन जंगलों में जहां बहुत उजाला नही रहता वहां  उज्जवल नाथ जी के प्रयासों से अमवस्या के भयंकर अंधकार में भी प्रकाश ही प्रकाश बनटगिया मजदूरों के बच्चे को शिक्षा स्वास्थ कि सुविधा मिली तो पूरे बनटगिया समाज को जीवन की आधारभूत सुविधाएं प्राप्त होने लगी बनटगिया समाज मे जीवन समाज राष्ट्र के प्रति नई जागृति चेतना का संचार हुआ और आत्म विश्वास एव आत्म सम्मान का प्रवाह होने लगा।

राष्ट्र कि मूल चेतना धारा से कटा समाज राष्ट्र कि आवाज आचरण संस्कार में समाहित होता उत्साहित रहने लगा यह परिवर्तन अभेद्य नाथ जी कि सुगनी से मुलाकात से लेकर  पचास साठ वर्षो कि कल्पना परिकल्पना के सत्यार्थ का स्वरूप है । 

सुगनी बूढ़ी हो चुकी उसके पति कि अत्यधिक शराब सेवन से मृत्यु हो हो गई।

 सुगनी हर पल  यही बताती बनटगिया समाज मे गरीबी और जीवन के अनेक दुश्वारियों में जन्म लेने के बावजूद उंसे उसके पूर्व जन्म के सद्कर्मो के कारण महाराज से मुलाकात हुई और बनटगिया मजदूरों पर ईश्वर कि कृपा हुई।

महाराज उज्ज्वल नाथ जी ने बनटगिया समाज के जीवन स्तर में आमूल चूल परिवर्तन के अपने गुरु पिता गुरु अभेद्य नाथ जी के संकल्पों के लिए जो भी सम्भव हुआ करने का प्रयत्न किया और निरंतर कर रहे है ।

 बनटगिया समाज जो भय संसय में पल प्रहर घुट घुट कर जीवन जीता था  सम्मान आत्मविश्वास के साथ राष्ट्र के गौरवशाली समाज की तरह जीवन यापन कर रहा है ।

भगवान राम ने जिस प्रकार अपने वन प्रवास के दौरान ऋषि मुनियों को भय मुक्त करके निर्भय निडर कर्तव्यबोध का संदेश महाराज अभेद्य नाथ जी कि सुगनी से मुलाकात ने संत संकल्प एव मर्यदा के निर्वहन का राम मिलन प्रमाणित किया ।

सुगनी संकल्प कि शबरी कि तरह जीवन में जैसे अपने उद्धारक कि राह निहारती कांवड़ पर लकड़ी दूधमुंही बच्ची को गोद लिए बाज़ार जाती उसकी साधना पूर्ण हुई ।

अभेद्य नाथ को  महान संत परम्परा में दशरथ कहा जाय तो अतिश्योक्ति नही होगी और उनके उत्तराधिकारी महंत उज्वलनाथ जी को राम वास्तविकता भी यही है उज्जवल नाथ जी ने बनटगिया समाज के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के  लिए गुरु के संकल्पों को अपने जीवन के महत्वपूर्ण उद्देश्यों में सम्मिलित कर लिया।

 उज्जवल नाथ जी युग उजियार लक्ष्मी गणेश पूजन राम आगमन के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाला दीपोत्सव बनटगिया समाज के साथ ही मनाते है कितना विहंगम होता है यह दृश्य देवता भी ब्रह्मांड में सनातन संत परम्परा के उज्जवल नाथ एव अभेद्य नाथ पर अभिमानित हो अभिनंदन करते है।

ऐसी ही संत परम्पराओ के सत्य सनातन समाज ने भरत भारत के अस्तित्व को सम्पूर्ण वैश्विक मानवता के लिए अनुकरणीय वन्दनीय युगों से बनाये रखा है। 

सुगनी को जब किसी तरह पता चला कि महंत अभेद्य नाथ जी का निर्वाण हो चुका है तो बूढ़ी हो चुकी सुगनी रोती विलखती वन क्षेत्र से बाहर निकली वनटगिया समाज के लोगो को लगा की सुगनी को क्या हो गया? अभी तो वह भली चंगी थी सभी सुगनी को पुकारते पीछे चल दिये कोई सुगनी को बहिनी कहता पुकारता कोई बुआ लेकिन सुगनी कहां सुनने वाली सुगनी एकाएक वही ठिठक कर वही रुकी जहां उसकी पहली मुलाकात अभेद्य नाथ जी से कावड़ पर लकड़ी एव गोद मे दूधमुंही बच्ची को गोद मे लिए हुयी थी वह वही अवनि पर गिर पड़ी और आकाश कि तरफ दोनों हाथ उठाते बोली हमे काहे छोड़ गए महाराज हम त तोहरे भक्ति किया शबरी कि जईसन काहे छोड़ गए हमरी भक्ति में खोट कैसे हो सकत इतना कहते ही सुगनी के प्राण पखेरू उड़ गए सुगनी के चेहरे पर मुस्कान अजीब शांति जैसे वह कह रही हो महाराज के चरण में स्थान मिल गइल।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics