संतुष्टि

संतुष्टि

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 आज विनोद बहुत खुश था उसका प्रमोशन हो गया और घर में पार्टी करना चाहता था इसमें विभिन्न तरह के पकवान बनाने की तैयारी थी मगर पिताजी का कहना था कि किसी आश्रम में आयोजन करो जहाँ भूखों का पेट भरे

मगर विनोद का कहना था अपना स्टेटस दिखाने के लिए हमेशा के आयोजन करते रहना चाहिए उसने बड़ी धूमधाम से आयोजित किया जिसमें अत्यधिक व्यंजन बनाए गए और लोगों के जाने के बाद इतना ज्यादा खाना बचा की कई गरीब लोगों का पेट भर सकता था मगर अत्यधिक रात होने के कारण वह खाना भी व्यर्थ हो गया जिसका विनोद को भी मन ही मन दुख हो रहा था और सोचने लगा पिताजी सही कहते थे छप्पन भोग दिखावे के लिए नहीं किसी जरूरतमंद की पेट भरने के लिए होते तो ज्यादा अच्छा था ।

दिखावे के कारण उसने कई तरह के नुकसान की इसका मन ही मन उसे पछतावा हुआ था लगा काश किसी गरीब का पेट भरता, पैसा मैं किसी जरूरतमंद को देता अक्सर हम दिखावे में कुछ भी करते हैं लेकिन वास्तविक संतुष्टि खुशी तू किसी की मदद करने में मिलती है को दिखावे में नहीं

 


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