संतान का सुख
संतान का सुख
ज़िंदगी का ये सफर काफी कुछ सीखा देता है। रोज़मर्रा के किस्से हों या कोई बड़ी घटना, बस उनमें खुशियों की तलाश में ज़िंदगी का सफर हम किसी तरह जी लेते हैं। ऐसे ही किसी सफर की तलाश में थे रश्मि और अतुल। दोनों के विवाह को सात साल हो चुके थे। माता पिता बनने का सुख उन्हें नहीं मिला था। रश्मि काफी उदास रहती थी, घर का अकेलापन उसे खाए जाता था। जब भी कभी अपनी सहेलियों को मिलती थी वो, सब अपने बच्चों की बाते करते, उनकी शरारतें और चंचलता, स्कूल की मस्ती और होमवर्क और रोजमर्रा के काम।
अतुल और रश्मि को अब आदत सी हो गई थी परिवार के ताने सुन ने की, आस पड़ोस के लोगों की अटपटी बातों को झेलने की। अंदर ही अंदर दोनों एक दूसरे की मनोस्थिति को समझते थे। कुछ दिनों बाद अतुल को किसी काम के सिलसिले से दूसरे शहर जाना था। अतुल ने रश्मि से भी पूछा कि उसकी कोई इच्छा हो आने की तो साथ चल सकती है। इस से उसके मन को भी अच्छा लगता और किसी नई जगह का अनुभव भी होता। रश्मि चलने के लिए मान गई। दोनों अगले दिन अपनी गाड़ी लेकर निकल पड़े।
रास्ते में एक जगह रुके थे वो। पास ही किसी छोटे से होटल में चाय पीकर उठ ही रहे थे की उनकी मुलाकात श्रीमती अनुराधा जोशी जी से हुई। छोटे से होटल से इतना सारा खाना ले जाते देख, रश्मि थोड़ा सोच में पड़ गई। यहां हाइवे के आस पास तो कोई भी घर या लोगों घर नहीं थे, ना दूर दूर तक कोई दुकान या ऑफिस था। रश्मि ने देखा वो औरत थोड़ी सहमी से थी।होटल का मालिक उसे खाना नहीं ले जाने दे रहा था। तब उसने काउंटर पर जाकर पूछा की बात क्या है। होटल के मालिक ने बताया कि इन्होंने पिछले पूरे हफ्ते का बिल नहीं भरा है।
रश्मि पहले तो हैरान हुई कि पिछले पूरे हफ्ते का बिल यानी के सातों दिन बहार का खाना। रश्मि ने अनुराधा जी से पूछा कि आखिर माजरा था क्या। थोड़ा मायूस हो कर अनुराधा जी ने रश्मि को जवाब दिया कि यह खाना उनके लिए नहीं था। वह यह खाना अपने अनाथ आश्रम के बच्चों के लिए लेकर जाती है। इस महीने उनके अनाथ आश्रम को इतना चंदा नहीं मिला था कि वो अपने अनाथ आश्रम के सारे खर्चे उठा सकें।
यह सुनकर रश्मि को थोड़ा आश्चर्य लगा कि यहां आस-पास तो कोई भी अनाथ आश्रम नहीं था तो वह अभी कहां से हैं? तब उन्होंने पूछा उनसे कि आपका अनाथ आश्रम है कहां। अनुराधा जी ने कहा कि हाइवे के कुछ दूर चलते ही एक छोटी सी गांव की बस्ती है वहां हम सारे गांव के बच्चों का ख्याल रखते हैं। वहां पर सारे बच्चे बहुत ही गरीब हैं और जो अपने मां-बाप को खो चुके थे। ऐसे बच्चों का ख्याल रखने के लिए, उनके खाने-पीने की व्यवस्था और उनकी शिक्षा इन सब की जिम्मेदारी हमारा अनाथ आश्रम उठाता है। पहले पहले तो काफी अच्छा चंदन मिल जाता था और लोग भी आगे अगर मदद करते थे पर पिछले काफी लंबे समय से कोई मदद करने नहीं आता। सारे बच्चों की शिक्षा रुकी हुई है और ना ही वह कुछ पढ़ पाते हैं।
पीछे से अतुल रश्मि को आवाज मार रहा था कि चलो बहुत देर हो चुकी है। अनुराधा जी की बातें सुनकर रश्मि का मन भर आया था और वह नहीं जाना चाहती थी। पर अगर उसने अतुल से अनुरोध किया कि तुम्हारे दूसरे शहर के दफ्तर के लिए निकलने से पहले क्या हम इस अनाथ आश्रम में जा सकते हैं?
अतुल को रश्मि की बात समझ नहीं आई पर रश्मि की भरी हुई आंखें देखकर उसने हामी भर दी। रश्मि फटाफट होटल के काउंटर पर गई और उसने अनुराधा जी के पिछले पूरे हफ्ते का बिल भी चुकता कर दिया। रश्मि ने अनुराधा जी से अनुरोध किया कि वह अपनी ही गाड़ी में उनको ले चलेंगे तभी उन्हें भी अनाथ आश्रम का रास्ता पता चल जाएगा। जब वे तीनों अनाथ आश्रम पहुंचे तब उन्होंने देखा कि बच्चे काफी मायूस होकर बैठे थे। उनको काफी दिनों से ठीक से खाना नहीं मिला था। अनुराधा जी जो खाना होटल से लेकर आती थी दोपहर के लिए वही खाना रात को भी चलाना पड़ता था। बच्चों की यह हालत देखकर रश्मि से रहा नहीं गया। और जैसा कि रश्मि पिछले 7 सालों से एक बच्चे की तलाश में थी, इन सभी बच्चों को देखकर उसे पहली बार एक ममता का एहसास हुआ। रश्मि ने अनुराधा जी से कह दिया कि आप इन बच्चों के लिए बाहर से खाना नहीं लाएंगे। इनकी सेहत पर भी काफी असर पड़ेगा। रश्मि ने अतुल से कह दिया कि वह अपने दफ्तर के लिए निकल सकता है वह 2 दिन के लिए यही रुकेगी। अतुल समझ गया था कि रश्मि के दिमाग में क्या चल रहा था। रश्मि बेहद खुश थी और इसलिए अतुल भी रश्मि के लिए खुश था और अतुल रश्मि को अनाथ आश्रम ही छोड़ कर चला गया। बच्चों के खर्च के लिए और उनकी शिक्षा के लिए अतुल कुछ पैसे दे गया था रश्मि को। यह देखकर रश्मि भी समझ गई कि अतुल क्या चाहता था। उस दिन से अतुल और रश्मि रोज अनाथ आश्रम आने लगे बच्चों के साथ वक्त गुजारने लगे और उन बच्चों को अपने बच्चों की तरह संभलना लगे और उनकी देखभाल करने लगे।
निकले तो वह इस सफर में किसी काम के सिलसिले से थे मगर 7 सालों से जिस चीज की उन्हें तलाश थी उन्हें वह खुशी मिल गई।