स्कूल बैग
स्कूल बैग
वह रोज़ स्कूल से थोड़ी दूरी पर अपने पिता को चाय की टपरी पर उनके काम में हाथ बंटाता था। स्कूल में आधी छुट्टी के समय उसके पिता ही शिक्षकों के लिए चाय लेकर जाते थे।
एक दिन ज़्यादा ग्राहक होने के कारण पिता ने उसे थरमस देते
हुए स्कूल में चाय पहुंचाने के लिए कहा।
वो स्कूल पहुंचा और चाय की थरमस रखकर वापस जाने लगा तो एक शिक्षिका ने उससे पूछ लिया कि तुम कौन सी कक्षा में पढ़ते हो और क्या नाम है तुम्हारा,आज तुम स्कूल नहीं गये क्या? बाप रे इतने सवाल एक साथ,वो सकुचाते हुए बोला कि पिता के काम में हाथ बंटाता है और स्कूल तो वो कभी गया ही नहीं। उसका नाम महेश है। वह उत्तर देकर तुरंत भाग गया कि शिक्षिका कहीं और सवाल न पूछ ले।
उसी दिन शाम को वही शिक्षिका एक स्कूल बैग लेकर उसमें कुछ कापियां और पेंसिल,रबर आदि रखीं थी, लेकर आई
उन्हें देखते ही महेश सकपका गया और पिता के पीछे छुप गया। तभी शिक्षिका ने उसका हाथ पकड़ा और उसे वो स्कूल बैग दिया, उसके पिता से कहा कि आप इसे स्कूल भेजिए
इस प्रकार चाय की टपरी पर काम कराकर आप ग़लत कर रहें हैं। पढ़ लिखकर वो अच्छा इंसान बनेगा। उसके पिता ने हामी भरी और स्कूल भेजने को राज़ी हो गये। महेश स्कूल जाने लगा ।अपना पहला स्कूल बैग पाकर वो बेहद खुश था। उसने
उस शिक्षिका के स्कूल जाकर उन्हें धन्यवाद दिया।
