"संस्कार "
"संस्कार "


गरिमा दरवाजा लगा ले,कहता हुआ लोकेश कमरे से बाहर निकला।घर में इस समय गरिमा के अलावा उसके छोटे भाई बहन थे।मां-बाप दोनों बाहर गए हुए थे।रात के 8:00 बज रहे थे।लोकेश कुछ समय पहले आया था और अब वापस जा रहा था।गरिमा सुनकर उसके पीछे-पीछे बरामदे से होती हुई आंगन में पहुंची ।उसके चेहरे पर खुशी थी और आंखों में संकोच का भाव।
पूर्णमासी का चांद आसमां में चमक रहा था।शायद आज उसके प्यार का इज़हार हो जाये और चांद इसका गवाह हो जाये। लोकेश जिसे वह मन ही मन चाहती है,उसके कितना करीब है।लोकेश उसके दिल का हाल जानता था लेकिन दोनों के बीच कभी कोई बात अभी तक नहीं हुई थी। शायद उससे कुछ कहे लोकेश,मन में यह सोचती हुई गरिमा उसके पीछे-पीछे जा रही थी।
जैसे ही गरिमा दरवाजा बंद करने के लिए आगे बढ़ी, दरवाजे के पास अचानक ही लोकेश पलटा और दोनों हाथ उसके कन्धों पर रख दिए।ये इतना जल्दी हुआ कि गरिमा की कुछ समझ ना आया।जब तक समझ आया लोकेश को अपने चेहरे पर झुके पाया।शायद वह अपने प्यार की मोहर लगाना चाहता था या फिर उसकी भावनाओं का मौका देखकर फायदा उठाना चाहता था।
गरिमा ने हड़बड़ी में अपना एक हाथ उसके मुंह पर रखा और दूसरे से उसको हटाने लगी।उसकी स्थिति कुछ अजीब सी हो गई थी जिससे वह प्यार करती है,चाहती है,वही तो उसेे प्यार करने जा रहा था,लोकेश भी उसे प्यार करता है....पर ऐसे एकाएक बिन कुछ कहे...
नहीं.. ,नहीं यह ठीक नहीं है।चाहते हुए भी वह उसे हटाने पर विवश थी।
उसके संस्कार उसे इस सब की इजाज़त नहीं देते।वह एकदम सीधा हो गया।उसके चेहरे के भाव अंधेरे में गरिमा ना देख सकी।उस समय अजीब सी कश्मकश में थी ।
"मुझसे कुछ शिकायत मत करना....... जैसे वह उसे चेतावनी दे रहा था।"उसके स्वर में नाराजगी थी ।
"मैंने कभी शिकायत नहीं की" ........अनजाने ही हड़बड़ी में वह बोल उठी।मैनें तो इसे कभी कुुुछ कहा ही नहीं था...गरिमा सोच में डूूब गयी। वह मुड़ा और फुर्ती से चल दिया मानो उसके अहं को चोट लगी।
लोकेश चला गया।गरिमा का दिल कह रहा था, रोक ले... लोकेश को आवाज दे ले....परंतु उसके संस्कारों की बेड़ियों ने उसे उसे रोक लिया।
प्यार एक एहसास है
उसे रूह से महसूस करो।
प्यार को प्यार ही रहने दो
कोई इल्जाम ना दो।।
देहरी पर खड़ी गरिमा सोचने लगी कि-
"अगर वह भी उसे सच्चा प्यार करता होगा तो उसके जज़्बात समझेगा और उसकी नाराजगी दूर हो जाएगी।वह समझ जाएगा कि वह जो कर रहा था,वह उचित नहीं था।भारतीय संस्कृति इस तरह के क्रियाकलापों को नैतिक नहीं मानती और उसको अपने परिवार से जो नैतिक मूल्य प्राप्त हुये हैं,उनको वह शर्मिंदा नहीं करेगी अन्यथा उसे ऐसे प्यार को पाने की तमन्ना नहीं जो प्यार की भावनाओं से ज्यादा दैहिक चाह की कामना करता हो।"
गरिमा के चेहरे पर दृढ़ निश्चय के भाव थे।उसने अपने प्यार को नहीं,अपनी भावनाओं को नहीं,अपने जीवन में पहला नंबर पर अपने संस्कारों को चुना था।गरिमा ने आकाश की ओर देखा,आकाश में चांद मुस्करा रहा था।एक चांद दागदार होने से जो बच गया था।