सुरभि रमन शर्मा

Drama

2.4  

सुरभि रमन शर्मा

Drama

संस्कार की कीमत

संस्कार की कीमत

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सुनहरे लहंगे में स्टेज पर परिधि को थिरकते देख आँखें खुशी से भीग उठी और दर्शकों की भीड़ में बैठे-बैठे मन अपने आप अतीत के पन्ने पलटने लगा।


“बाबूजी वो घर के पास ही डांस क्लास खुला है मैं भी सीखना चाहती हूँ”, आँखें तरेरते हुए बाबूजी का जवाब था


“अच्छे और संस्कारी घर की लड़कियां नाच-गाने में मन नहीं लगाती, पढ़ाई-लिखाई में ध्यान लगा”


रुआंसी हो माँ की तरफ नजर उठा के देखा तो वहाँ उनकी आँखों में बेबसी के सिवा कुछ ना दिखा 7 वर्ष का मासूम दिल अच्छे और संस्कारी घर की लड़की होने के बोझ तले दब गया और पढ़ाई लिखाई में जुट गयी वो अच्छे घर की लड़की कुछ सालों बाद जब अच्छे घर की लड़की ने बी कॉम की डिग्री ले ली तो मन में आत्मनिर्भर और अपनी पहचान बनाने की ललक जागी पर वहाँ भी उसके अच्छे घर की लड़की होना उसका शत्रु बन उसके रास्ते में खड़ा हो गया दो टका जवाब दे दिया गया था उसे पढ़ाया लिखाया इसलिए है कि शादी अच्छी हो सके और शादी में ज्यादा परेशानी न हो बेटी की कमाई खाएं, इतने बुरे दिन नहीं आ गए है हमारे वो संस्कार नहीं है और अच्छे घर की लड़की मन मसोस कर रह गई और कुछ दिन बाद डोली में बैठ विदा हो ससुराल आ गयी जितने संस्कार उसे सिखाए गए थे वो यहाँ उसे आदर्श बहू साबित करने के लिए काफी न थे हर रोज फिर एक नया सबक सिखाया जाने लगा फिर गोद में जब बिटिया आयी तो खुशियाँ आई, उस अच्छे और संस्कारी घर की लड़की के सूने जीवन में।


13 वर्ष कब बीत गए पता ही न चला कुछ दिन पहले ही जब उसकी बिटिया ने स्कूल के डांस कॉम्पिटिशन में भाग लेने की अनुमति माँगी तो फिर अच्छे और संस्कारी घर की लड़की होना उसके पाँव को भी बेड़ियों में जकडने के लिए विवश होने लगा पर बस और नहीं मेरी बेटी अच्छे और संस्कारी घर की लड़की होने का बोझ अपने कंधे पर नहीं उठाएगी वो खुद आत्मनिर्भर बनेगी, वो संस्कारी बनेगी, पर तानाशाही नहीं सहेगी अच्छे और संस्कारी परिवार की लड़की होने के कारण अपनी जायज खुशियों का गला नहीं घोटेगी आज मैंने भी अपने संस्कारी होने का चोला उतार फेंका है जिसके बोझ तले बेबसी में अपनी हर इच्छा को दफन करती आई पर मेरी बेटी अपनी खुशियां, अपनी प्रतिभा, अपनी क्षमता को संस्कार के नाम पर दफन नहीं करेगी हर कदम अपनी बेटी को एक नया आसमान नापने का हौंसला दूँगी।


“इस नृत्य प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार परिधि सिंह को मिलता है”


घोषणा के साथ ही हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा परिधि ने मेरे पाँव छूये तो बरसती आँखों से गले लगा लिया।


“माँ अब घर चले”


“नहीं परिधि पहले डांस क्लास चल, वहां तेरा एडमिशन कराना है”


“पर माँ – दादाजी”


“तू उनकी चिंता मत कर, मैं हूँ न”


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