Asha Pandey 'Taslim'

Tragedy Romance

1.5  

Asha Pandey 'Taslim'

Tragedy Romance

संदूकची(भाग 1 )

संदूकची(भाग 1 )

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मिस्टर बेनर्जी अपने हाथो में अपना चेहरा पकड़े सोच रहे थे कि "इतना भीड़ इतने लोग तो एक साथ मेरे घर में 20साल पहले भी नहीं आये थे जब केया...." तभी पीछे से छोटे भाई ने आवाज़ दी"दादा इधर आओ तुम्हारे बीना कोई फैसला कैसे होगा?"|

अपने उम्र से ज़्यादा बूढे हो चूके मिस्टर  शुभाशीष   बेनर्जी खुद को अपने ही पैरों पर घसीटते चल पड़े बैठक में जहाँ पूरा ख़ानदान ,नए रिश्तेदार और 'वो'थी जिसके लिए ये हलचल ये भीड़ ये सवाल और ये फैसले की घड़ी |

शुभाशीष सोचते जा रहे थे कि "क्या सच मेरे बीना कोई फैसला किसी का रुक सका था, जो आज मुझे बुला रहे "?।

शुभाशीष जब ड्राइंगरूम में आ कर अपने निर्धारित कुर्सी पे बैठे तो पूरे कमरे में मरघट सी शांति पसर गई,जिसमें उनका दम घुटने लगा।

शुभाशीष ने नज़र उठा कर देखा तो सब उन्हें घूर रहे थे,जैसे 20 साल पहले उनके दो छोटे भाई स्नेहाशीष,शंखोशिष उनकी बीवियां मधुरिमा ,अंतरा उनके बेटे,शुभाशीष की 2 बेटियां उनका जमाई ,जमाई का वो दोस्त जो शायेद 2या 4 साल बाद उनके पीहू से ब्याह कर उनका छोटा जमाई बने।

और 'वो'खड़ी थी सामने चुपचाप सब के आँखों में एक सवाल बन कर जिस पर शुभाशीष को फैसला देना था।

  नज़र उठा कर उसे देखा शुभाशीष ने एक पल को और मुस्कुरा दिये,उनकी मुस्कान को सब ने अपनी-अपनी सोच में अपने तरह से सोचा।

वो जो सामने खड़ी थी मन ही मनमुस्कुराई "न भोय नेई ओ आमय आजो भालो बासे "(न डर नहीं अब मुझे वो अब भी मुझे प्यार करते है)|

भाईयों ने एक दूसरे के आँखों में कहा"यही डर था"दोनों की बीवियों ने गुस्से में मुँह बिचकाया।

बड़ी बहु ने छोटी को देख धीरे से कहा"भीमरोति " छोटी बहु मुस्कुरा दी,दोनों बेटे शर्म से निचे देखने लगे। बड़ी बेटी अपनी आसूं नहीं रोक पा रही थी ये सोचते हुए'बाबा आज भी?'|

छोटी बेटी पीहू कल शाम से ही बूत बनी बैठी थी ,जमाई समर और उनका दोस्त कुछ समझ नहीं पा रहे थे।

स्नेहाशीष ने चुपी तोड़ी "दादा हँस क्यों रहे हो?इतना बड़ा सवाल आ कर खड़ा है हमारे सामने कल दुनिया को क्या बतायेंगे ,कल क्या होगा सोचा है?"एक सांस में कह के ग्लास का पानी उठा लिया |

अब कमान सम्हाली श्रीमती स्नेहाशीष ने "छी छी छी कि लोज्जा ऎसा किया 20 साल पहले भी और आज फ़ीर वही बात दादा चुप मत रहो कहो कुछ"|

शंखोशिष ने कहा "दादा तुम्हारा चुप रहना ही सब मुसीबत की जड़ है ये क्यों नहीं समझते हो ?अब तो बदलो कुछ तो बोलो??|

शोंखोशीष की बीवी ने कहा "रहने दो दादा को मैं ने बचपन से देखा है जब तुम्हारे पड़ोस में रहती थी,तब से अब तक कुछ बोला है दादा ने जो अब बोलेंगे"अब बेटों ने कहा "हम ने तो कहा बाबा को कुछ कहना नहीं है बस आप डिसीज़न लो"

बड़ी बेटी ने कहा "सुन तो ले क्या कहने आई है",

और इन सब में "वो"चुपचाप खड़ी थी|

शुभाशीष ने फिर से गर्दन ऊपर उठाई आँखों पर चश्मा लगया और हाथों को कुर्सी के हथों  पर कस्ते हुए उठ गए,बड़े इत्मीनान से चलते हुए गये और फ्रीज से पानी ले जा कर 'उसे ' दिया और कुर्सी दे कर कहा बैठो |

और कहा

"मुझे आज सच में कुछ कहनहै अपने 68 साल की ज़िन्दगी में जो नहीं कहा वो सब तुम सब से अच्छा है ये भी आ गई और अरुणाभ् भी है ,सब को बता दूँ अपने ज़िन्दगी की हर बात" ,'उसे' कुर्सी पर बिठा कर मुड़े और अपने परिवार को देख कर मुस्कुरा कर कहा"हम तो किताब नहीं है ,सो अच्छा है सब डायरी समझ के एक बार में ही पढ़ लो"|

जैसे वो खुद ही याद करते हुए कहने लगे। ......

1971 में जब बांग्लादेश बना मैं 29 साल का था हम शरणार्थी बन के कोलकाता आ गए , किसी तरह से ज़िन्दगी शुरू की दो वक़्त के भात के लड़ाई में कूद पड़ा सिलहट(पूर्वी बंगाल)के ज़मींदार परिवार ।

ये जो अंतरा बेठी है न इसके बाबा ने गुदाम में बही-खाता लिखने का काम दिलवाया था,हमारे बाबा को और मुझे एक जूट-मिल में नोकरी याद है तुम्हे अंतरा | हम 3 भाई और माँ -बाबा नई दुनिया में जीना सीख़ रहे थे,इन दोनों भाइयों को कॉलेज में भर्ती करा दिया था,एक रोज मैं मिल से लौटा तो देखा माँ किसी से बात कर रही थी बसन्त का मौसम था हल्के पीले तात की साड़ी में एक लम्बी चोटी वाली लड़की थी माँ के साथ जिसकी बड़ी- बड़ी आखों में मैं पहली बार ही डूब गया ।

वो केया थी माँ के पूर्वी बंगाल के सखी की बेटी वो भी अब शरणार्थी थे ,माँ ने अपनी विधवा सखी और उनकी दो बेटियों को अपने पड़ोस में बुला लिया और बिना मुझ से या केया से पूछे हमारी शादी तय कर दी।

बाबा का अपना ज़िद थे उनका अपना घर जिसके लिए मुझे और बाबा को डबल काम करना पड़ता था ,ये दोनों भाई तब पढ़ाई कर रहे थे

घर बना हमारी शादी हो गई,माँ घर सम्हालती केया ने भी संगीत क्लास शुरू कर दिया था घर पे ही,ज़िन्दगी पटरी पे आ रही थी दोनों भाईयों ने पढ़ाई पूरी कर ली थी इनकी शादी हो गई ,

हम भी दो बच्चों के बाप बन गए और केया माँ|

पर हम केया को कभी नहीं बोल पाया कि 'केया तोमार चोख खूब गोभीर आमी एते डूबे थाकते चाई(केया तुम्हारे आँख बहुत सुन्दर है मैं इनमें डूब जाना चाहता हूँ).

इन दोनों भाईयों की शादी हो गई एक अमेरिका चला गया बड़ा डॉक्टर बनने और एक दिल्ली बड़ा ऑफ़िसर ।

तब तक पापिया भी केया के गोद में आ गई थी,और केया का गाना भी थोडा कम हो गया था हाँ झगड़ा बड़ गया था शिकायत भी और मैं और पैसे कमाने में बिजी हो गया था।

  केया का 2,4गाने का रिकॉड आ चूका था तब तक उसका भी नाम होने लगा था कि तभी पता चला केया फ़िर से माँ बनने वाली है ,केया का ज़िद अब और बच्चा नहीं चाहिए पर हम ने कहा ये बच्चा हम पाले गा तब जब केया ने कहा कि "ठीक"तो कहाँ अर्थ समझ आया था हमें।

और पीहू के अन्नप्रासन के दिन केया एक चिट्ठी रख के चला गया ।दोनों बेटों को स्नेहाशीष अमेरिका ले गया मुझ से पूछ कर नहीं बता कर ,और दोनों बेटियों को मैं ने पाला माँ बन कर तब नहीं पूछ पाया हम कि केया तुम क्यों गया पर आज पूछता है तुम 20 साल बाद क्यों आया केया?!!

अपनी बात पूरी कर वो "उसे"घूर रहे थे जो कभी उनकी बीवी थी और आज भी उनके बचो की माँ है ।.......


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