गौना

गौना

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यादों की पोटली से वो पल भी निकला जब वो दुल्हन बनना चाहती थी, एक तुड़ी-मुड़ी सी पेंटिंग, जिसे बनाया था ८ साल की उम्र में और उन लकीरों को पेंटिंग भी बस वही कह सकती थी, उनमें सिर्फ लाल रंग का एक बॉक्स बना था जिसे नाम दिया था उसने "दुल्हन की डोली" ..उन लकीरों को और उस नाम को पढ़ कर टीचर ने पूछा था 'ये डोली हैं, तो कहार कहाँ है?'...उसने उसी मासूमित से जवाब दिया था "वो लोग कुआँ से पानी लेने गये हैं न".. उस कागज़ को देख कर बाबा मुस्कुराये थे, दादी ने गर्व से सरौता पकड़ सुपारी दबाई थी जैसे सही जा रही उनकी तरबियत...उम्र के 19वें साल वो दुल्हन बन पिया के घर चल दी, ढ़ेरों सपने सजाये पाँव में आलता, कलाई भर भर के चूड़ी, कानों में झुमके, पायल करधनी यानी सजी धजी गुड़िया बन के पिया के नगरी चली वो। उसे जिसे शादी का अर्थ ही यही लगता था, पहली ही रात उसके सपने चूर हुए जब फ़रमान मिला 'ये देहाती शौक न पालो, जाओ इंसान बन जाओ, उतारो ये सब" सब उस छोटे से सन्दूकची में बंद हो गये, दुल्हन पल भर में बहु, बीवी और भाभी बन गई वो दुल्हन आज भी कसमसाती है उस छोटे से लोहे के सन्दूकची में जिसपर अब तो जंग भी लग चुकी है ...


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