समय की सोच

समय की सोच

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रोज शाम को गाँव की चौपाल पर हरी काका गाँव वालों के साथ जब भी गपशप करने बैठते, अपने ड़ाॅक्टर बेटे मोनु की बात करते उबल पड़ते और दुखी हो जाते। अपने दस खेत में से दो खेत बेचकर उन्होंने मोनु को ड़ाॅक्टरी पढ़ाई थी और बहु भी ड़ाॅक्टर ही लाये थे। उन्हें बड़ी आस थी कि ड़ाॅक्टर बहू बेटे गाँव में अस्पताल खोलेंगे और उनकी पत्नी की तरह इलाज के अभाव में किसी मरीज की जान नहीं जायेगी, परन्तु दोनों ही विदेश में नौकरी करने चले गये। गाँव वाले भी कहते—दुखी मत होओ, विदेश गये बच्चे लौटकर नहीं आते। एक दिन चौपाल पर बैठे ही थे कि धूल उड़ाती दो गाड़ियाँ आकर खड़ी हो गयी। हरी काका के बहू बेटे गाड़ी में से उतरे। काका के पैर छूकर बेटे ने कहा— बाबा मैं आ गया आपका सपना पूरा करने। आप सोच रहे होंगे ये विदेश क्यों गया? बाबा मेरे पास यहां इतना पैसा नहीं था कि मैं एक बड़ा अस्पताल खोलता और मुफ्त इलाज करता। चार साल तक हम दोनों ने वहां खूब मेहनत करके पैसा कमाया, नयी टेक्नालाजी सीखी और अब मैं यहां एक सर्वसुविधायुक्त अस्पताल खोलूंगा। मैने इस गाड़ी में एक चलता फिरता दो बिस्तर वाला अस्पताल बनवाया है, इसमें ऑपरेशन की भी सुविधा है। इससे आसपास के गाँवों के मरीजों का इलाज होगा, अब कोई भी माँ की तरह इलाज के अभाव में नहीं मरेगा। हरी काका और अन्य सभी गाँव वाले मोनु की इस नयी सोच के कायल हो गये और हरी काका ने गद् गद् होकर मोनु को गले से लगा लिया।


नई पीढ़ी हमेशा गलत या गैर जिम्मेदार नहीं होती बल्कि पढ़ लिखकर उनकी सोच विस्तृत और समयानुसार होती है तथा वे देश की प्रगति में सहायक भी होती है।


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