प्रपोज डे
प्रपोज डे
वृद्धाश्रम के बाहर गार्ड़न में सुबह सुबह जाॅन और राधा बैठकर चिड़ियों की चहचहाट सुन रहे थे। अचानक जाॅन ने राधा का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा--" राधा आज कौनसा दिन है ? तुम्हे याद है ? " राधा मुसकरा दी--" जाॅन आज का दिन मैं कैसे भूल सकती हूं !
आज प्रपोज ड़े है। आज के दिन ही तो चर्च के सामने घुटने के बल बैठकर तुमने मुझे प्रपोज किया था। 'विल यू मेरी मी राधा' और मैने शरमाते हुए फौरन हां कह दी थी, हमने जमाने और जाति की परवाह ना करते हुए अपना संसार बसा लिया और हम दो से चार भरापूरा परिवार हो गये।" कहते कहते अचानक राधा उदास हो गयी,, लेकिन जाॅन हम फिर से अकेले हो गये हमारे बच्चे हमारे नाती पोतों के साथ हमें छोड़कर अमेरीका में जा बसे और हमें इस ओल्ड़ एज होम में शरण लेनी पड़ी।
कहते कहते राधा फफक कर रो पड़ी। जाॅन उसे सात्वनां देते उसके पहले दो नन्हें नन्हें हाथ राधा के आंसू पोंछने लगे। जाॅन और राधा ने नजरें उठाकर देखा-- रशिद खड़ा था। अपनी पत्नी और दो प्यारे प्यारे बच्चों के साथ। जाॅन चहक उठे--रशिद तुम !
कहां थे बेटा इतने दिनों से। रशिद , जाॅन और राधा के पैरों पर झुक गया। अब्बू , मुझे अमेरीका में कम्पनी वालों ने पांच साल के लिये भेजा था। वहीं मुझे सलमा मिली और हमने निकाह कर लिया। अब्बू जाने से पहले मैंने आप दोनों को बहुत ढूंढा परन्तु कोई अता पता नहीं मिला। जाॅन के ऑफिस कैंटीन में रशिद चाय सर्व करता था, रशिद की पढने में बहुत रूचि थी, जाॅन को पता लगने पर उसने रशिद की पढाई का पूरा खर्चा उठाने का जिम्मा लिया और रशिद ने 12 वीं में टाॅप किया।
उसके बाद स्काॅलरशिप से इंजिनियरींग की पढाई की। आज रशिद एक बड़ी कम्पनी में मैनेजर था । अब्बू आज अखबार में वृद्धाश्रम का फोटो छपा था उसमें आप दोनों की तस्वीर देखकर मैं यहां दौड़ा चला आया। ये क्या अब्बू ? आप वृद्धाश्रम में ? " हां बेटा सब नियति का खेल है" एक ठंड़ी सांस भरकर राधा बोल उठी। इतने में सलमा अपने दोनों बच्चे के साथ घुटने के बल बैठ गयी और जाॅन और राधा का हाथ अपने हाथ में लेकर कह उठी-- हम आपको प्रपोज करते हैं-- अब्बू अम्मी क्या हम सब हमेशा के लिये साथ में रह सकते हैं। आंखों में खुशी के आंसूं लिये राधा और जाॅन सिर हिला रहे थे, आज सच में प्रपोज ड़े ही तो था उनके लिये।