Surendra Arora

Romance

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Surendra Arora

Romance

समुंदर

समुंदर

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" मैं तो मान बैठा था कि शेष कुछ बचा ही नहीं है। क्लाइमेक्स का दृश्य अपनी बात कहकर अदृश्य हो चुका है। जिस कथा के प्रवाह में, मैं पिछले तीन घंटे में खुद को खो चुका था, उसने अपनी तार्किक परिणति को प्राप्त कर लिया है।मेरे भाग्य का निर्धारण हो चुका है। अब यही मेरी  जिंदगी की आखिरी सच्चाई है। मुझे अपनी आँखों में उतरे हुए बेबस पानी को पोंछना है और डूबना है उस भूलभुलैया में जो जाने - अनजाने मेरी जिंदगी की दिनचर्या बन चुकी है। मैं चाहूँ या न चाहूँ मुझे अब उसी तालाब में रहना है, डूबना है, उतराना है जिसकी हदें ही नहीं, गहराई को तय करने में मेरी कोई भूमिका नहीं है, जो खुद को मेरा हमदर्द कहते हैं। उन्होंने मुझे समझा दिया है कि इस तालाब के बाहर मेरा कोई वजूद नहीं है। मेरी सारी सक्रियता तभी तक गतिशील है जब तक कि मैं इस तालाब का हिस्सा हूँ  । तालाब से बाहर निकलते ही गर्म और सूखी हवाएँ मेरे नथुनो को इतना गर्म कर देंगीं कि उनकी तपिश से शायद मेरे फेफड़ों भी जल उठेंगे। "

वो तालाब को आत्मसात करने के रास्ते खोजने लगा।

" यह क्या, आसमान तो सचमुच बिना किसी ओर - छोर का निकला। कुदरत ने तो कुछ और ही लिख रखा है। आसमान उतना नहीं है, जितना ये लोग कहते हैं। ये तो वहां तक फैला है, जहां तक इनके फ़रिश्ते भी नहीं पहुँच सकते। इनकी उम्मीद से परे अचानक एक परी किसी अनजाने लोक से आई, उसने अपने धवल पंख फैलाये, अपनी स्नेहिल दृष्टि मुझ पर डाली और मेरी आँखों में अपने विशवास को उड़ेलते हुए बोली, “ ऊपर गगन की ओर देखो, यह अनंत तक फैला है। " उसने बताया है " जब कोई उसकी ओर देखते हुए पुरजोर कोशिश करता है तो उसकी नजरे सितारों की दुनिया से भी आगे भी निकल सकती हैं । " 

" वो कैसे ? "

" मेरी तरफ देखो। मैं बहुत दूर तक देखती हूँ, इसलिए उड़कर कहीं भी निर्द्व्न्द जा सकती हूँ। "

" तुम्हारी आँखें बड़ी - बड़ी हैं और  तुम्हारे पंख सुंदर ही नहीं मजबूत भी हैं। तुम दूर तक देख भी सकती हो और उड़ कर दूर तक जा भी सकती हो। मेरे पास तो इनमें से कुछ भी नहीं है। ये तालाब ही मेरा घर है। " उसके चेहरे पर मायसि थी। 

" ये तुम्हारा वहम है कि मेरे पास आकाश छूने या नापने के लिए अलग से कोई साधन है । ये पंख सिर्फ दिखने के हैं, हाँ मेरो आँखे जरूर दूर तक देख सकती हैं और जब वे अपनी मंजिल देख लेती हैं तब मेरे पंखों को भी पंख लग जाते हैं, तब मेरे इरादे मुझे उस मंजिल तक ले जाते हैं जिसे मेरी आँखों ने देखा है और फिर संजोया है। "

" ……. ! "

" अभी भी सोच रहे हो ? झांकों अपने अंदर। वहॉँ तुम्हें शक्ति का कभी न खत्म होने वाला समुन्द्र मिलेगा। ये तालाब तो दूसरों ने बनाया है तुम्हें बांधने के लिए। जब अपने अंदर के समुन्द्र में डुबकियां लगाओगे तो अपने चारों तरफ असंख्य सीपियाँ बिखरी पाओगे, तुम्हारे हाथ अपने आप आगे बढ़ेगें और उन सारी सीपियों को समेटना तुम्हारी मंजिल होगी। "

वंदना अपने परिवेश से अलग लिखने में तल्लीन थी। उसे पता ही नहीं था कि उसके लिखे को कोई साथ - साथ पढ़ भी रहा है।"

 " इतना सुंदर लिखा है वन्दु तुमने आज। लगता है अपने गंतव्य को समझ गयी हो और उसे पाने से पहले अब रुकोगी नहीं …….। निश्छल और निर्द्व्न्द कशिश ही वे पंख होते हैं जो संवेदना को अनंत गगन की अकल्पनीय सीमा के पार ले जाते हैं। तुम्हारे पंख, तुम्हारा प्रेम करने वाला ह्रदय है, तुम्हारी कलम तुम्हारी संवेदनाएं हैं। प्रकट वह चाहे जिसके भी माद्यम से हो। रम जाओ ईश्वर की डी हुई इस क्षमता में। यह सामर्थ्य ईश्वर सबको नहीं देता ” 

    “ ।”

    “ सोच क्या रही हो ? अब कभी थैंक्स कहा तो कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाउँगा ..। जब कोई मन से पागल हो जाता है तब वह अपने - आप में खोकर दूसरों के बजाय स्वयं से अधिक बातें करने लगता है। स्वयं से बात तभी होती है जब संवेदनाये ध्वनि तरंगों से भी तीव्र गति से गतिशील होती हैं। होठ सिले रहते है परन्तु संवाद अनंत होता है। "

    “प्लीज मुझे सपनो के संसार में मत ले जाओ। वे टूटते है तो आवाज नहीं होती पर विनाश भयंकर होता है। प्यार बार - बार नहीं होता। मैं भी ऐसा नहीं कर सकती। ” वंदना लगभग कराह रही थी।

“ हाँ ! मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। बड़ी तकलीफ भी होती है कि जिंदगी के जिस मुकाम पर तुम मेरी दिनचर्या में आयीं, तुम्हें अपनी जिंदगी का वह हिस्सा नहीं बना सकता जिसमें सभी सपने साथ - साथ बुने ही नहीं जाते, उन्हें साथ - साथ जिया भी जाता है। अब तो हमारे भाग्य की रेखाओं में तुम्हारी भूमिका एक गेस्ट आर्टिस्ट से अलग कुछ नहीं है।"

" सब कुछ जानते हुए भी बार - बार क्यों चले आते हो मेरे सामने ? जब रुकन नहीं होता, तो आने की मज़बूरी क्या है ? एक बार चले जाने के बाद भी कोई आता है क्या ? एक ही दर्द सहते - सहते किसी दिन जिंदगी रूठ भी तो सकती है ! "

" जिनके मन में समुन्द्र की उठती हुई अथाह तरंगों की उमंग होती है, उनसे जिंदगी कभी नहीं रूठती।" 

“ तो फिर जाओ उन हाथों को साफ़ करके उनमें उकरी लकीरों को पढ़ो जिनमें बनी तस्वीरें तुमने  धुंधली कर दी हैं। "

" धुंधली ही तो की हैं, मिटाई तो नहीं ! "

" कौन कहता है कि उनको मिटा दो। पर उनको वो जाल भी मत बनने दो, जिसमें कोई उलझ कर रह जाए।" 

 " जाल तो हम खुद बुन लेते हैं। जिसे जाल समझते हैं वो जिंदगी को मजबूती देने वाला फ्रेम भी तो हो सकता है ? ”

 " यही वो कोशिश कर रही थी, जो कुछ मैं लिख रही थी और तुम पढ़ रहे थे। समुन्दर अथाह होता है बिना किसी ओर - छोर के। तुमने ही एक कृत्रिम तालाब को फिर से गहरा करना शुरू कर दिया। " वंदना ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा।

वो वहां से चल दिया, खुद से इस उम्मीद के साथ कि अब कभी वापस नहीं आएगा।


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