एक कप जिंदगी

एक कप जिंदगी

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 " जिंदगी को जितना और जिस तरह जीना था जी लिया। अब इसकी किसी भी ऊंच - नीच में कोई दिलचस्पी बची नहीं है। रात को नींद आ जाती है तो लिहाफ में सिमट जाता हूँ और नहीं आती है तो पलथी मारकर बिस्तर पर बैठ जाता हूँ।रात कितनी देर सोया , इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।थकान होती है तो नींद दिन को घेर लेती है।अब तो दिन भी रात जैसे ही हो चले हैं। न किसी के पास जाना ,न किसी ने यहाँ आना।भूले से कोई आ गया तो चाय का एक प्याला शेयर हो गया।मन किया तो पार्क में बिना वजह जा बैठना।लोगों को ,खास तौर से जोड़ों को आवारागर्दी करते हुए देखना ,ईर्ष्या हो जाए तो पेड़ - पौधों की हरियाली से या फिर खिले हुए फूलों की खिलखिलाहट से बात करके अपने अंदर के सूनेपन को भरना। फूलों पर कीट - पतंगों को मंडराते हुए देखना फिर जब ऊब हो जाए तो धीरे - धीरे क़दमों से वापस घर आ जाना।अब न सूरज के निकलने से कोई मतलब है और न ही उसके डूब जाने। 

 लगता है जिंदगी फिसलती जा रही है जैसे बंद मुट्ठी में से रेत। नदी का पानी भी तो अपनी राह खुद कहाँ तय करता है ! जिधर ढाल हुई ,वही उसकी राह बन जाती है।ढाल न मिली तो सूरज की तपिश या फिर किसी गर्म हवा का झोंका ही भाप में बदलकर बादलों तक उड़ाले जाता है।"

" मतलब यहां तक आते - आते तुम जिंदगी से बेजार हो गए हो , उस नाव की तरह जो बिना किसी नाविक के नदी में तैर रही है।" 

" हाँ ! मैं इस वीराने में तुम्हारे साथ अकेले में , मैं यही शेयर करने लायक बचा हूँ।"

" हो सकता है कि तुम ठीक सोच रहे हो। क्या पता तुम तक आते - आते मैं भी यही सब सोचने लगूँ। जिंदगी का आइना मुझे भी इतना ही साफ़ दिखने लगे।"

" हाँ ! एक बात और।।जिंदगी ,तू अपनी किसी बात पर इतरा मत। तेरे होने से जो कुछ चलता है , तेरे न होने से भी सब कुछ वैसे ही चलता है , चहकता है भले ही जगह बदल जाती है। " 

" तुम्हारी गहराई देखकर ,तुमसे रश्क होता है।मन करता है उसमें डूबकर उसे नापने कि कोशिश करूँ। तुम्हारी इजाजत हो तो चलो जिंदगी के आगे, उससे इतर उस पार जाकर उसे देख आते हैं। शायद वहां कुछ और भी हो।"

 " ठहरो ! मेरा चाय पीने का वक्त हो चुका है।मुझे चाय बनानी भी होगी और बिना बिस्किट के मैं चाय नहीं पीता।तुम बाजार से ब्रांडेड क्वालिटी का  बिस्किट का एक पैकेट ले आओ। मैं तब तक चाय का पानी गैस पर चढ़ा देता हूँ। तुम्हारी इच्छा हो तो तुम भी चाय पी लेना।"


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