समंदर वाली स्त्री
समंदर वाली स्त्री


लोग कहते है स्त्री नदी की तरह होती है।किसी कवि या लेखक ने ही शायद स्त्री को नदी की उपमा दी होगी।
नदी तो बस बहते जाती है।जैसे भी,जहाँ से भी रास्ता मिलता है वह बहती रहती है।और पता नहीं कहाँ कहाँ से रास्ता बनाते हुए वह आकर समंदर मे समा जाती है।
हो सकता है कि नदी का समंदर में इस तरह मिलना ही उसे स्त्री की तरह समझने को जाना गया है।
क्या आपको कभी लगता है की स्त्री नदी की तरह होती है?मुझे तो हमेशा ही स्त्री किसी समंदर की मानिंद गहरी लगती है जिसकी गहरायी कोई जान ही नही पाता है।वह अपने अंदर पता नही कितनी बातों को छुपा लेती है। उसके दिल के किसी कोने में गहरे अंदर तक न जाने कितने राज़ दफ़न होते है।
समंदर अपनी लहरों के साथ हर बार किनारों की तरफ दौड़ पड़ता है ठीक उसी तरह स्त्री भी बार बार अपने रिश्तों की तरफ़ दौड़ आती है। उन्हें सम्भालनें के लिए।वह पक्का करके ही दम लेती है है कि सब कुछ ठीक चल रहा है। फिर शांत हो जाती है बिलकुल समंदर की उन मंद मंद लहरों जैसी।
क्या यह सही नहींं है ?
आप भी कभी जरा सोचकर देखिये...