सम्मान
सम्मान
दुपहरी में कचरा लेने वाली अम्मा अपनी नवेली बहू के साथ गेट पर खड़ी आवाज़ दे रही थी। मैने गेट खोला, इतनी गर्मी में मुझे उन्हे गेट पर खड़ा रखना अच्छा नहीं लगा। उन्हे बरामदे में बुला लिया। पंखा चला दिया। दोनो सास बहू ज़मीन पर बैठने लगी। नवोढ़ा बहू के हाथों की मेंहदी, और पैरो की महावर का रंग ताजा था। घूँघट में चेहरा आधा छुपा था। आधे छुपे चेहरे में से भी उसका रूप झलक रहा था।
नयी बहू का इस तरह ज़मीन पर बैठना, मुझे अच्छा नहीं लगा, कोने में पड़ी बेंच पर इशारा कर मैने कहा- अम्मा आप दोनो उस पर बैठ जाये" बातों का सिलसिला शुरु हुआ--- "बहू तो बहुत सुन्दर है। क्या नाम है आपका" मैने पूछा घूँघट का एक सिरा दाँतों से दबाती हुई वो बोली--सोनक्षी और शर्मा गई। "बहन जी, बहू के बाप ने मोटर साइकिल दी अपनी बेटी को दहेज़ में। बहुत बड़ा मुहल्ला है इसके बाप का" उसकी सास ने कह।
सोनक्षी वैसे ही दाँतों में घूँघट का सिरा दबाए नीचे सिर किये रही। मैने सूप में अनाज, साड़ी, बिछिया, चूड़ी, सुहाग के अन्य समान के साथ नेग के रुपये भी रख, उसकी पहनी हुई चूनर के आंचल में शगुन के रुप में रख दिये।
अम्मा समान देख संतुष्ट लगी। समान उसने अपने साथ लाये थैले में भरा और उठते हुए बोली--बहन जी ,बहू की सब घरों से कोंछा असीर वाद हो गया। कल से ये काम पर आयेगी। सास के साथ सोनाक्षी भी खड़ी हुई। पर अगले ही पल वो कुछ दूरी ले साष्टांग लेट गई। मैं अचकचा गई। पीछे हटते हुए मैने कहा--अरे, अरे बेटा आप ये क्या कर रहे हो। आशीर्वाद तो ले लिया आपने हमसे।" वो धीरे से उठी, बोली-आँटी, तुम कितनी अच्छी हो। हमको और अम्मा को ऊपर बिठाया। और हम को सम्मान दिया। आप कहकर हम लोगों से बोली।