Sahana Banerjee

Horror

3.9  

Sahana Banerjee

Horror

शुभ रात्रि

शुभ रात्रि

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"क्या हुआ था उस रात ज़रा विस्तार से बताओ , हम चाहते हैं की तुम पहले की तरह खुशमिज़ाज हो जाओ बेटा। " मेरे पिता ने मुझे समझाते हुए कहा। लेकिन मैं उनसे भला क्या कहती ? उस काली रात की घटना ने मुझे अंदर से झकजोर के रख दिया था। विश्वास उठ गया था मेरा इस बात पर से की क्या सच है और क्या झूठ। ७ दिन हो चले थे और मैंने न कुछ खाया था और न ही पिया था। महज १९ साल की मैं भला करती भी क्या, अपने करीबी दोस्तों को एक एक करते हुए मरते जो देखा था।

मेरा नाम आयेशा है। मैं JLN मेडिकल कॉलेज की प्रथम वर्ष की छात्रा हूँ । कॉलेज में दाखिला लेते के साथ ही मेरे कई अच्छे दोस्त बन गए , लेकिन उनमे सबसे खास दोस्त मेरे ३ थे : राहुल , अदिति और अमर। हम हमेशा साथ साथ रहते और पढाई इत्यादि में भी एक दूसरे की मदद करते। पहला साल समाप्त हो रहा था तोह हम चारों ने कही घूमने जाने का सोचा। अमर अजमेर का था मगर हॉस्टल में रहता था। उसके पापा के पास एक कार भी थी जो वौसे कभी कभार चलने दिया करते थें, जब अमर ने अपने पिताजी से इजाज़त मांगी ट्रिप पे कार ले जाने की तोह वो आराम से मान भी गए. हम बेहद उत्साहित थे इस सफ़र के लिए। हम सभी को अपने माता पिता की अनुमति थी और हमारे अंतिम परीक्षा के बाद हम जाने का प्रोग्राम बना चुके थे।

हम चारो की दोस्ती में एक बात ख़ास बात थी। हम चारों ही उस पार की दुनिया में काफी रूचि रखते थे , ख़ास कर मैं, अमर और अदिति। राहुल को ये बातें रोचक कम और मनोरंजक अधिक लगती थीं। एक बार तोह उसने हम तीनों को डराने का प्रयास भी किया था मगर ख़ुद ही अपनी हँसी नहीं रोक पाया और पकड़ा गया। मगर हाँ हम चरों को भूत प्रेत काफी दिलचस्प लगते थें।

तो क्यूंकि हम मेडिकल के स्टूडेंट्स थें हमने ऐसे बहुत चीज़े पहले ही साल में देख डाली थीं जो आम लोग नहीं देखते। इससे हमें डर भी काम लगता था। तो हम ४ चल पड़े अपने मंज़िल की ओर। हम रात को सफर पे निकले थे और रस्ते भी धुंध के चादर से ढके पड़े थे। लगभग एक आध घंटे सफर करने के बाद हमें दूर में एक रोशनी दिखी। रात के ढाई बजे कोई दुकान खुला भी था ?? वो भी नेशनल हाईवे पर ,सोच कर हम सब भौचक्के रह गए। क्योंकि हमे उसी रस्ते पर जाना था हम आगे बढ़ गए। पास पहुंचे तो देखा एक अकेली लड़की , विधवा के वेश में ,चाय की उस दुकान के बर्तन साफ़ कर रही थी। हमने गाड़ी थोड़ी धीमे कर ली ताकि गौर से देख पाए इस अद्भुत वाक्या को घटते हुए। जैसे ही हमारी गाड़ी धीरे हुई ,वो लड़की या औरत अचानक रुक गई। उसका पीठ हमारी ओर था तोह कुछ समझ नहीं आ रहा था। इतने में अचानक अमर बोल पड़ा ड्राइवर सीट पर से :" उम्म्म मोहतरमा ज़रा अपना ख़ूबसूरत चेहरा तोह दिखाइए !", मैं और अदिति दोनों गुस्सा गए और कहा ,"चुप रहो!! ये क्या बदतमीज़ी है ?! परेशान क्यों कर रहे हो उन्हें !!"

अमर मुड़ के सफाई देने ही वाला था की अचानक मानो अँधेरा सा हो गया। रात का वक़्त था पर दुकान की रौशनी को क्या हुआ सोचते हुए हम सबने साइड में देखा तो भौचक्के रह गए। पूरा दुकान गायब था। मानो वहाँ कभी कुछ था ही नहीं !!

हम सबको लगने लगा मानो कोई स्वप्न देख रहे थे, दुःस्वप्न ! अमर ने गाड़ी दौड़ाई मनो उसके जान पे बन आई हो , पता नहीं कितनी दूर तक जाने के बाद हम सबने साँस ली। सब हाफ़ रहे थे। मानो दम घुट रहा था। "वो क्या था यार ?!",

मैंने पूछा रोती आवाज में।

"पता नहीं ",

अदिति बोली ,

"पर बड़ा ही भयानक अनुभव था !" "हाँ !बिलकुल सही। ऐसी किसी घटना की उम्मीद नहीं थी ",

राहुल बोला बौखलाया हुआ !

अमर चुप था। मनो उसे साप सूंघ गया हो। "अमर तू ठीक है ?", मैंने पूछा। कोई जवाब नहीं आया। उसके हाथ काँप रहे थे और कापते हुए उसने आगे की ओर अपनी ऊँगली से इशारा करते हुए कहा ,"ओह माय गॉड !! वो सामने खड़ी है!"

मुझे कुछ याद नहीं ठीक से मगर जब मैंने सामने देखा मुझे वो विधवा नज़र आई , जब कार की हेडलाइट उसके चेहरे पे पड़ी तो ह वह कुछ भी नहीं था!!न आँखें , न नाक न कुछ !! उसके गले पे एक बड़ा सा निशान था मनो किसी ने उसस्पी वार किया हो और उसकी दूधिया सफ़ेद साड़ी खून से लाल हो राखी थी पेट के पास।

मुझे बस चीखने की आवाज़ याद है , हम सबकी और फिर कुछ भी नहीं। जब आँख खुली तो मैं सदर हस्पताल में थी ,मेरे माँ बाबूजी पास में बैठे हुए थे।

बस एक ही सवाल पूछा था मैंने उनको

"मेरे दोस्त कहाँ है माँ ?" ,

माँ की आँखें भर आई और उन्होंने बोला ,

"बेटा तुमलोगो के कार का एक्सीडेंट हुआ था , तुम्हारे दोस्त ज़िंदा नहीं बच पाए। उनके शव भी नहीं मिले हैं। बस तुम मिली थी उस गाड़ी में ,बेहोश !"

उस रात हस्पताल में जब गए थें , मैंने एक आहट सुनी,हल्की सी। लगा मनो कोई दरवाजे क पास खड़ा है। जब नज़र साफ़ करके देखा तो कपड़ो से लगा कि वो अदिति थी। एक मिनट के लिए मेरी आँखें भर आयी ,

"तुम ज़िंदा हो, मुझे पता था !"

इतना कहते ही जब अदिति सामने आई , मेरे मुँह से चिल्लाहट निकल पड़ी ! वो अदिति का ही क्षत विक्षत शव था जो चल रहा था , उसकी हालत मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती बस इतना कह सकती हूँ की मेरी चीख से सब डर गए थे कमरे में डॉक्टर और नर्सेज मम्मी सब आ गए थे। उन्हें लगा मैं बच नहीं पाऊँगी !

बच तो मैं गयी थी मगर उस दिन से हर रात ,आज तक वो मुझे दिखाई देते हैं। कभी घर के आँगन में तो कभी मेरे कमरे के अँधेरे कोने में।

वो मेरे सपनों में भी आते हैं। उनके साथ क्या हुआ होगा मुझे रोज नई वीभत्स घटनाएँ दिखाते हैं। मैं ज़िंदा तो हूँ मगर इन् दृश्यों को सह नहीं सकती। कैसे बताऊ पिताजी को की शायद किसी अनजान वजह से मैं शारीरिक तौर पर यहाँ हूँ मगर मेरी आत्मा अभी भी उस हाईवे क किसी जंगल में कैद है जहाँ हर रोज मैं अपने दोस्तों की मौत देख रही हूँ।

फिर भी, हिम्मत जुटाकर मैंने पिताजी को ये बातें बता दी । मेरी कहानी सुनने के ४ दिन बाद पिताजी ने अचानक मुझे और माँ को ट्रिप पे ले जाने की बात कहीं। रोड ट्रिप। भंगड़ के ओर। जब माँ जाने से इंकार किया तो हमे जबरदस्ती बिच रात ले गए। मैं इस बार के ट्रिप से ज़िंदा नहीं लौटी , बस पापा लौटे और उनकी हालत मेरी तरह थी।

उन्होंने ये घटना फिर चाचा को बताया और फिर उनके साथ भी वही हुआ।


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