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Vijayanand Singh

Inspirational

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Vijayanand Singh

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श्रमेव जयते

श्रमेव जयते

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उस गाँव में आज जश्न का माहौल था। बरसाती नदी पर गाँव को सड़क से जोड़ने वाला पुल बनकर तैयार हो गया था। सी एम महोदय आज पुल का उद्घाटन करने वाले थे। गाँव के बाहर मैदान में एक बड़ा-सा पंडाल लगा था। सजावट तो ऐसी थी मानो कोई मेला लगा हो।

पानी कम रहने पर तो लोग नदी को पार कर शहर चले ही जाते थे मगर बरसात में नदी जब रौद्र रूप धारण करती थी, तो पूरा गाँव पानी से घिर जाता था। गाँव से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता था। दूर, दूसरे गाँव से होकर जो सड़क जाती थी, उससे होकर, आठ-दस किलोमीटर का लंबा रास्ता तय कर, शहर जाना पड़ता था। बरसात में नाव से नदी पार करने में न जाने कितने लोग जल-समाधि ले चुके थे। लोगों के युगों-युगों से संचित सपने आज पूरे हो रहे थे। सभी बहुत खुश थे। 

हरिया, रमुआ, इरफान, हैदर, उस्मान, शंकर, बैजू, गोपाल....सभी नये-नये कपड़े पहनकर इस कार्यक्रम को देखने आए थे।इनका श्रम आज सार्थक और फलीभूत होने जा रहा था। उनके चेहरे आनंद और संतुष्टि से चमक रहे थे।

लगातार बजते ढोल-नगाड़ों और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच, जब सी एम महोदय ने रिमोट का बटन दबाया, तो शिलापट्ट से रेशमी परदा सरकने लगा और उस पर लिखे बड़े-बड़े अक्षर चमक उठे। सहसा भीड़ हर्षातिरेक से झूम उठी जब उसने देखा कि सी एम महोदय मंच पर हरिया, रमुआ, हैदर, उस्मान, शंकर, बैजू, गोपाल को माला पहनाकर उन्हें सम्मानित कर रहे थे।

गाँव वालों ने देखा उस शिलापट्ट पर सुनहरे अक्षरों और रंगों में हरिया, रमुआ, हैदर, उस्मान, शंकर, बैजू, गोपाल आदि सभी मजदूरों के नाम अंकित थे, जिन्होंने उस पुल के निर्माण में अपना श्रम, रक्त और पसीना बहाया था।


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