शर्म आनी चाहिए
शर्म आनी चाहिए


दो दुकानों में रखी राखियों में बातचीत हो रही थी। बड़ी दुकान में रखी महंगी राखी ने पड़ोस की दुकान में टोकरी में रखी सादी राखियों से कहा, "देखों मैं और मेरी सहेलिया कितनी सुंदर हैं। सब हमें ही खरीद रहें हैं और हमारे मालिक को अधिकाधिक मालामाल कर रहे हैं..और एक तुम हो, जिन्हें कोई देख तक नहीं रहा, शर्म आनी चाहिए तुम्हें।"
ये सुन टोकरी में रखी रुई से बनी, हल्दी और कुमकुम से सजी राखी ने धैर्य के साथ जवाब दिया कि "राखी लाभ-हानि का पर्व नहीं है, और न ही आकर्षण या दिखावे का। यह प्रेम और रक्षा का पर्व है।" तो ऐसे में, इन आते जाते लोगों को, मेरी चीथड़े पहनी मालकिन और उसकी मेहनत नहीं दिखाई दे रही, तो तुम ही बताओ, शर्म किसे आनी चाहिए।