Amogh Agrawal

Children

4.3  

Amogh Agrawal

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मेरे शब्द

मेरे शब्द

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एक अनजाने शहर में एक अनजाने विद्यालय में एक लड़के का प्रवेश होता है। गाँव के लड़के ने न तो पहले कभी इतना बड़ा विद्यालय देखा था, न कभी सोचा था। जैसे -तैसे पूछते हुए अपनी कक्षा में प्रवेश किया। लेकिन जूते बाहर उतार दिए। और अपने दोनों हाथों को जोड़कर कहाँ - "दीदी जी! क्या मैं अंदर आ जाऊँ?"

"हाँ! आ जाओ। लेकिन जूते पहनकर आना। बाहर से कोई ले जायेगा। और पहने रहना।"

जैसे ही लड़के ने कक्षा में प्रवेश किया, सारे लड़के हँसे, बहुत जोर से हँसे जैसे उन्होंने किसी जोकर को देख लिया हो। दीदी जी ने तुरंत सभी को डाँटते हुए शांत कराया। और लड़के को अपने सामने खड़े होने के लिए कहा।

"तुम अपने बारे में बताओ?"

"जी दीदी जी! मैं राकेश शर्मा, सरस्वती शिशु मंदिर, हृदयतल तहसील, हृदय जिले से। पिता श्री मान राम शर्मा जी, माँ श्री मति गंगा शर्मा जी। दसवीं 75 प्रतिशत से पास किया दीदी जी।

अच्छा सुनो। कुछ बातें याद रखो। यह इंग्लिश मीडियम स्कूल है। यहाँ इंग्लिश में बात होगी। जो इंग्लिश आती है बोलना और सीखने की कोशिश करना। जाओ बैठ जाओ।

राकेश ने घर आकर प्रतिदिन कुछ इंग्लिश के शब्द और वाक्य लगा और अगले दिन विद्यालय जाकर उपयोग करता। उसकी मेहनत रंग लाई। त्रिमासिक परीक्षा में केवल 15 बच्चे पास हुए उसमें से एक राकेश था। 

राकेश की मेहनत, लगन देख उसके कई मित्र बने। लेकिन अभी उसकी इंग्लिश अच्छी नहीं हुई थी। इसलिए जब वह बोलता तो अटक जाता। कई बार डांट खाता। लेकिन एक मेम से उसने कभी डांट नहीं खाई क्योंकि राकेश जैसे ही अटकने वाला होता या गलत बोलता उसकी आवाज बनकर आती उसकी दीदी जी। जो उससे पहले दिन मिली थी। जो अनजाने शहर में उसे एक मां की कमी कभी महसूस न होने देती। बस राकेश के दिल से तीन ही शब्द निकलते थैंक यू मेम।

#ThankyouTeacher


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