कंजूस बनिया सेठ
कंजूस बनिया सेठ


आज तक कई साल पुराना रखा तिरंगा, फिर एक बार किराने की दुकान में लहराने लगा। जगह वही, स्थिति भी वैसे ही। बस आज कुछ माह पहले से साफ नजर आ रहा था।
जब ग्राहक ने देखा तो बोल उठा - " सेठ! तुम पक्के बनिया हो। कितने साल से एक ही झंडा देख रहा हूँ यह एक रुपये वाला। तुम बदलते क्यों नहीं।"
"एक रुपये का हो या दस का। तुम्हें क्या? यह लो सामान और जाओ।"
कंजूस, बनिया। सेठ की बातें सुनकर, मन ही मन बोलकर ग्राहक चला जाता है। उधर तिरंगा सेठ की नीयत को भाप और तेजी से लहराने लगता है यह सोचकर कि चलो मेरे सेठ एक दिन की आज़ादी नहीं मनाते, न ही अन्य लोगों की तरह मेरे परिवार का हाल करते हैं।