Vimla Jain

Action Classics Inspirational

4.7  

Vimla Jain

Action Classics Inspirational

श्रेष्ठ टीचर पुरस्कृत रंजना

श्रेष्ठ टीचर पुरस्कृत रंजना

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पढ़ेगा इंडिया तभी तो बनेगा इंडिया

इस विषय के तहत मैं आपको इतनी प्यारी हैंडीकैप्ड और श्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार प्राप्त टीचर की कहानी, मेरे द्वारा बताती हूं। इसके जन्म पर पीडियाट्रिशियन ने यह बोला था कि, इसके शरीर में हड्डियों के इतने टुकड़े हैं ,कि यह कैसी सरवाइव कर पायेगी।

उन सब को हराकर इसकी सफलता और सफलता में इसकी मेहनत और भगवान का साथ और सरकार की नीतियां सब मिलाकर आज उसको एक सम्मानित व्याख्याता के रूप में सब जानते हैं।

किस तरह कितने हिम्मत से उसने दुनिया का सामना करते हुए अपने आप को सर्वश्रेष्ठ टीचर के रूप में और एक अच्छे इंसान एक अच्छी मां ,अच्छी पत्नी ,अच्छी बेटी, और अच्छी भांजी सब रिश्तो को अच्छे से निभाते हुए अपनी जिंदगी बसर कर रही है।

और उसने गांव को शिक्षित करने में शिक्षा की अलख जगाने में अपना पूरा सहयोग दिया है। उदयपुर के सीमावर्ती गांव में उसने बहुत काम किया। अगर उसकी कहानी आप तक पहुंचे तो मुझे अच्छा लगेगा।

पढ़कर आपको भी उस पर गर्व करने की इच्छा करेगी। सर्वश्रेष्ठ टीचर रंजना की कहानी मेरी जुबानी 

अतीत वर्तमान भविष्य कि अपनी बात कहूं तो 11 जनवरी 69 की मध्य रात्रि में अपने माता पिता की चौथी संतान के रूप में जन्म लिया।

माता पिता के उदास चेहरे पर चिंता के चिंताओं की गहरी रेखाओं को मैं अब भी महसूस कर समझ सकती हूं, की शारीरिक कमी के साथ जन्मी बेटी को देखकर कई सवालों ने जन्म लिया होगा।

समय अपनी गति से निर्बाध अनवरत चलता रहता है। एक नन्ही सी गुड़िया जिससे उन्होंने प्यार से पप्पी नाम दिया और पहचान के लिए रंजना नाम दिया।

समाज क्या कहूं बाहरी दुनिया के लिए कटाक्ष चिढ़ाते हुए मनोरंजन का माध्यम थी।

पर अपने परिवार के लिए उनकी अनमोल रत्न थी। मम्मी पापा की ऐसी विचारधारा ऐसी परवरिश जिस से दुनिया वालों के अनसुलझे सवाल उस दीवार से टकराकर उन्हें की ओर वापस लौट जाते ,तभी तो मेरे मन में मस्तिष्क में ना कोई सवाल जन्म लेते ना उत्तर ढूंढना पड़ता।

उस अभेद चक्रव्यूह को भेद कर कोई हीन भावना मुझ में प्रवेश ना कर सकी।

आत्मविश्वास से भरे अनंत जगमगाते दीपक जी की लो मुझे नवलोक की ओर गति करने के लिए जागृत करती रही ,और मैंने विज्ञान विषय के साथ स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण करी।

सपना तो डॉक्टर बनने का था। पर नियति तो मुझे कहीं दूर अलग अपने अस्तित्व ढूंढने का सोच रही थी।

अंतिम वर्ष में गिलहरी का डिसेक्शन करते हुए मन करुणा से भर गया ,और विज्ञान का हाथ छोड़ मैंने कला का दामन थाम लिय लिया। यहीं से नृत्य संगीत लेखन में रुचि जागी। और यह भावात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बनी।

भगवान महावीर, आचार्य श्री तुलसी ,सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह ,लाल बहादुर शास्त्री जी का जीवन चरित्र जीवन दर्शन पढ़ने का मौका मिला यह मेरे प्रेरणा पाथेय बने।

मैंने जाना कि अगर समाज में व्याप्त दुराचार अंधविश्वास शोषण अत्याचार से मुक्ति पानी है ,तो शिक्षा की अलख जगानी होगी। इसके लिए आवश्यक है कि भारत की ग्रामीण क्षेत्रों में जो लोग शिक्षा से वंचित हैं ,

वहां आने वाली पीढ़ी को शिक्षित होना बहुत जरूरी है। तभी हम तमस को हरा सकेंगे ,

यही विचार कर मैंने शिक्षा में स्नातक कर शिक्षण को अपना रोजगार के लिए चुन लिया।

1994 से आदिवासी ग्रामीण क्षेत्र अरावली की पहाड़ियों से घिरा राजस्थान के उदयपुर जिले की गोगुंदा तहसील में, शिक्षिका का पद ग्रहण कर राजकीय सेवा में कदम रखा।त

प्राथमिक शिक्षा के बालक बालिकाओं को विद्यालय से जोड़ने के अथक प्रयास करते हुए

ग्रामीण क्षेत्र में बालिका शिक्षा के प्रति जागरूकता अभियान प्रारंभ किया।

महिला पुरुषों को प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों से जोड़ शिक्षा में नवाचार कर गुणात्मक शिक्षा देने करके प्रयास करा।

अब तक तो मेरे जीवन के में शिक्षिका रच बस गई।

14 वर्ष तक प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े रहने के बाद सेकेंडरी हायर सेकेंडरी शिक्षण का कार्य ,

और वर्तमान में व्याख्याता इतिहास के पद पर रहते हुए कार्य कर रही हूं।

26 वर्ष की इस यात्रा में सिर्फ पाया ही पाया है। विद्यार्थियों का स्नेह वात्सल्य अपनापन उनकी ज्ञान पिपासा और अपने हर सवाल का जवाब अपने मन में अपने मैम मे ढूंढती आँखें, मन को प्रफुल्लित करती हैं।

वहीं दूसरी ओर जीवन की आधारभूत आवश्यकता के लिए संघर्ष करता बचपन ,मन को कुंठित करता है।

गुरु और शिष्य के अद्भुत संबंध को सब शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है।

उसे तो ह्रदय की गहराइयों से जीना पड़ता है। तभी तो इसे महसूस किया जा सकता है।

इस अप्रतिम सुखद अनुभूति को यदि आप भी आना चाहते हैं, तो स्वयं को इस क्षेत्र में जाना होगा।

और ज्ञान पिपासु जिज्ञासा की पहचान करनी होगी।

जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए।

कभी तालिया भी मिली ,तोकभी गालियां भी मिली।

सफर अभी लंबा है बहुत कुछ करना शेष है।

मन में पुरस्कार की अभिलाषा नहीं है।

एक गुरु का इनाम उसके शिष्य देते हैं। मुझे मेरे विद्यार्थियों ने लगातार सौ परसेंट परीक्षा रिजल्ट परिणाम देकर गौरवान्वित किया है। 

शैक्षणिक गतिविधियों को संचालित करते हुए अपने उच्च अधिकारियों के द्वारा ब्लॉक मावली उपखंड स्तर में मुझे उत्कृष्ट शिक्षक का जो सम्मान दिया गया।

उसने मुझे आगे भी नया करने के लिए प्रोत्साहित करा है, और करेगा 

आज तक को जो कुछ भी मैंने हासिल करा है उसमें मेरे इस्ट मेरे परिवार जनों का पूर्ण सहयोग है इसमें विशेष रूप से अपने भाई अपने डॉ मामा, मामी ने मुझे हमेशा उत्कृष्ट करने के लिए प्रेरित करा है।

पाठकों से भी अनुरोध है कि आप मनोबल बढ़ाएं। आत्मविश्वास जगा कर किसी को भी उसके लक्ष्य प्राप्त करने में सहयोगी बन सकते हैं।

दिशा व दशा बदल कर हमारे देश को सपनों का भारत बनाने में अपने अनुरूप सहयोग दे सकते हैं।

हार कर मन मार कर मत बैठ

आसमान की ऊंचाइयों को छूना है अगर

तो पंखों को फड़फड़ाने से मत रोक।


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