श्रेष्ठ जीवन की पृष्ठभूमि..
श्रेष्ठ जीवन की पृष्ठभूमि..


विचार ही जिन्दगी है। विचारों की गुणवत्ता के आधार पर ही जीवन की व्यवस्था निर्मित होती है। जिन्दगी विचार से ही गति करती है। वैचारिक योग्यता के आधार से ही जीवन के नियम अनुशासन बनते हैं। विचार से ही अनेकानेक व्यवस्थाएं निर्मित होती हैं। सब कुछ व्यवस्थित या अव्यवस्थित जो होता है उसके मूल में विचार ही होता है। ऐसा कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण सृष्टि ही विचार से चक्रवत गतिमान होती है।
आत्माओं की एक ऐसी अवस्था भी होती है जब आत्मा(ओं) की विचार (करने की) शक्ति जिसे अन्य शब्दों में विवेक कहते हैं वह प्रायः लोप हो जाती है। विचार (शक्ति) तीन प्रकार से प्राय: लोप हो सकते हैं। एक - स्वयं के अध्यात्मिक पुरुषार्थ की पराकाष्ठा से। दूसरा -पुरुषार्थ की हीनता (निम्न सोच) से। तीसरा -किन्हीं अशुभ कर्म परमाणुओं के प्रभाव के संयोग से। जिनके विचार अध्यात्मिक पुरुषार्थ की पराकाष्ठा से लोप हो जाते हैं वे आत्मा की उच्चतम अवस्था तक पहुंच जाते हैं। वे ऐसी अवस्था में पहुंच जाते हैं जहां से उनका भौतिक जीवन की विचार -व्यवस्था के साथ सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। लेकिन जिनके विचार अन्य दो कारणों से प्रायः लोप हो जाते हैं वे जीवन के सुव्यवस्थापन में उपयोगी नहीं होते।
वैचारिक/बौद्धिक संपन्नता व अध्यात्मिक सम्पन्नता बहुत गहरे अर्थों में एक दूसरे के पूरक हैं। कभी बौद्धिक सम्पन्नता आध्यात्मिक सम्पन्नता की अनुगामी बनती है और कभी आध्यात्मिक सम्पन्नता बौद्धिक संपन्नता की अनुगामी बनती है। दोनों की इकट्ठी संयुक्त भी अनिवार्यता है। दोनों की अपनी अपनी जगह भी अनिवार्यता है। श्रेष्ठ जीवन की पृष्ठभूमि में अथवा यूं कहें कि जीवन की श्रेष्ठ व्यवस्था में इन दोनों ही आयामों की विपुलता का होना अनिवार्य है।
अभिनव दुनिया बनाने के लिए विचारशील और विचार सम्पन्न समाज की भी उतनी ही आवश्यकता होती है जितनी अध्यात्मिक सम्पन्न व्यक्तियों की। श्रेष्ठ विचारों से सम्पन्न व्यक्ति श्रेष्ठ संस्कारों से सम्पन्न बनते हैं। यह ठीक है कि हमें विचारों से परे शान्ति और परम शान्ति का अनुभव करना है। हमें मणमनाभव होना है। यह भी ठीक है कि विचार फिर भी विचार ही होते हैं। विचारों में रहने से शान्ति कहां? जितने ज्यादा विचार होते है, हम उतने ही शान्ति से दूर चले जाते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि श्रेष्ठ, सृजनात्मक, सूखकारी महान विचार शान्ति की अनुभूति के लिए पृष्ठभूमि निर्मित करते हैं। इसलिए श्रेष्ठ कल्याणकारी सृजनात्मक विचारों को शान्तचित्त स्थिति के अनुभव से सींचते रहें। इसके साथ साथ विचारों से अतीत शान्तचित्त स्थिति का अनुभव भी करते रहें।