श्राद्ध श्रद्धा से

श्राद्ध श्रद्धा से

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दादा ससुर जी का श्राद्ध दिन था, हर साल की तरह सास के साथ शोभा मंदिर के पास ब्राह्मणों को भोजन कराने आई थी। दो बच्चे छुप कर देख रहे थे, शोभा ने इशारे से दोनों को पास बुला कर बिठाया और जैसे ही थाली रखी सास चिल्लाती हुई आई।

ये क्या कोई कायदा पता भी है की नहीं, ये ब्राह्मण नहीं है, सत्यानाश ना करो।

"मम्मी जी कायदा कहता है की ब्राह्मण भोजन कराना है पर साथ में कोई और नहीं खा सकता ये कहाँ का कायदा है, भूखों की कोई जाति धर्म नहीं होता। दादा जी को अच्छा ही लगेगा।" कहते हुए बच्चों की थाली में पूड़ी डालती है। 


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