अमित प्रेमशंकर

Tragedy

5.0  

अमित प्रेमशंकर

Tragedy

शराबी फरिश्ता

शराबी फरिश्ता

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कवि:-अमित प्रेमशंकर ✍️

एदला,सिमरिया,चतरा (झारखण्ड)


बात उस समय की है जब मैं महाराष्ट्र के एक व्यवसायिक शहर भिवंडी में कपड़े के कारखाने में काम किया करता था। उस दिन को मैं आज तक नहीं भूल पाया।

सर्दी का मौसम था रात के करीब 10:30 बज चुके थे पास पड़ोस के सभी लोग सो चुके थे, और मैं भी खाना खाने के बाद सोने के लिए अपने कारखाने में जा रहा था, कारखाने के पास पहुंचा तो दरवाज़े पर ताला लटका पाया। ये क्या? शायद मैनेजर ताला बंद करके कहीं गया होगा, मेरी नजर सामने ठंड से व्याकुल आग जलाकर बैठे बुजुर्ग व्यक्तियों पर पड़ी और मैं उन्हीं लोगों के पास बैठकर गपशप करने लगा। थोड़ी देर बाद एक शराबी लड़खड़ाते हुए पैरों पर हम लोगों के साथ में आकर बैठ गया, बैठते बैठते गिरने सा हो गया। मैंने कहा भाई संभलो उसने कहा हां हां ठीक और बैठ गया। वह वहां बैठे बुजुर्ग व्यक्तियों से पैसे मांगने लगा, कहने लगा--- दादा कुछ पैसे दे दो खाने को कुछ नहीं है.. यह बात हम सभी के लिए बड़ी अजीब सी लगी क्योंकि उसके हाथ में पहले से ही शराब की बोतल और पैसे थे। उन लोगों ने उन्हें पैसे देने से इनकार किया तो वह भड़क उठा बोला तुम लोग मुझे पैसे नहीं दोगे, मैं देता हूं यह लो मेरे पास पैसे हैं यह लो शराब पी ओ! मुझे तो अंदर से हंसी आ रही थी, इसी बीच मैं मज़ाक में उसे कह बैठा भाई मुझे भी शराब पिलाओ! वह मेरी तरफ तीखी नज़रों से देखा और कहा शराब? क्या नाम है तुम्हारा? मैंने कहा जी अमित। ओ हो तो तुम शराब पियोगे! ना भाई ना ...शराब बुरी चीज है, शराब पीने से शरीर नुकसान होता है, मैं तुम्हें नहीं दे सकता और ना ही मैं तुम्हें पीने की सलाह दूँगा, मैंने सोचा इसे जरूरत से ज्यादा चढ़ी हुई है और फिर मैं मुस्कुराते हुए बोला भाई आप चले जाओ काफी रात हो चुकी है अब जाओ और घर जाकर आराम करो हम लोग भी चलते हैं, इतने में चेहरे पे मासूमियत और आंखों आँसू लेकर शराबी कहा अमित भाई..कौन सा घर किसका घर? कोई घर नहीं है मेरा, मैं जहां हूं वही मेरा घर है मैं जिसके साथ बैठता हूं वही मेरा परिवार है इतना कहते-कहते व पूरी तरह रो चुका था, ना जाने क्यों उसके दर्द भरी आवाज़ सुनकर मेरे भी आँसू छलक पड़े।

और वह शराबी अंदाज़ में उठकर अपने आँसू पोंछते हुए जाने लगा शायद मेरी आँखें पूरी तरह डबडबा चुकी थी उसने मेरे आँसू देख लिए और लड़खड़ाती टांगों से मेरे आँसू पोंछने के लिए मेरी आंखों की तरफ अपने हाथ बढ़ाया मैंने उसका हाथ रोका और अपने आँसू ख़ुद पोंछ लिये,

जाते जाते कहने लगा ठीक है भाई जाता हूं जाता हूं तुम लोगों को भी मैं पसंद नहीं हूं जाता हूं जाता हूं।

तब तक उधर से मेरे फैक्ट्री का दरवाज़ा खुला मैनेजर ने आवाज़ लगाया अमित आज सोना नहीं है क्या इतनी देर बाहर बैठे क्या कर रहे हो? मैं तुरंत गया सोने की तैयारी करने लगा लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी बार-बार मेरी नज़रों के सामने उसकी लड़खड़ाते हुए हाथ जो हमारे आँसू पोंछने के लिए बढ़ रहे थे, वह दृश्य मुझे सोने नहीं दे रहा था, खुद शराब पीते हुए दूसरों को शराब न पीने की सलाह देते हुए यह दोनों बातें मुझे कुछ सोचने पर विवश कर रही थी बड़ी मुश्किल से मैं सो पाया। सुबह उठा तो कुछ महिलाओं के चीखने चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी उठकर बाहर देखा कुछ लोग एक जगह इकट्ठा थे शायद किसी का देहांत हो गया था, जाकर देखा तो अवाक हो गया यह क्या? यह तो वही शराबी है जो रात को मिला था मैंने उसके अंतिम दर्शन किये उन्हें प्रणाम किया।

वह सब दृश्य याद आते ही आज भी मैं परेशान सा हो जाता हूं वह कौन था, कहां का था, कुछ समझ में नहीं आता शायद वो कोई फरिश्ता था जो एक शराबी के रूप में मुझे मिला था।


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