अमित प्रेमशंकर

Fantasy

3.8  

अमित प्रेमशंकर

Fantasy

फुटबालर मिनी

फुटबालर मिनी

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मिनी कोई खास सुंदर लड़की नहीं थी फिर भी प्रेम बाबू उससे बेइंतहा प्यार करते थे। कहते थे तुम मेरी जान हो तुम्हारे बिना मेरा जीवन शून्य है।तुम हो तो मेरी सांसें हैं। तुम हो तो मेरे जीवन की हर खुशी है। मिनी भी प्रेम बाबू से बहुत प्यार करती थी।प्रेम बाबू की आवाज सुने बिना मिनी की ना तो सुबह होती थी और ना ही शाम। सोते जागते हर घड़ी हर पल मिनी के जुबां पर प्रेम बाबू का ही नाम रहता था। प्यार से दोनों एक दूसरे को जान कहते थे। और सच भी यही था कि दोनों एक दूसरे के जान बन चुके।

प्रेम बाबू रिलायंस कम्यूनिकेशंस में सर्विस इंजिनियर पद पर कार्यरत थे और इन दिनों उनकी पोस्टिंग सम्बलपुर में थी। मिनी भी बगल के जिले झारसुगुड़ा से ही थी। बी० ए० की पढ़ाई जारी थी और फुटबॉल खेलने का भूत सिर पर सवार था। मिनी पढ़ाई में भी कोई खास नहीं थी लेकिन फुटबॉल बहुत अच्छा खेलती थी।इसलिए अपने कालेज में सबकी चहेती बनी हुई थी। वो बचपन से ही फुटबॉल प्लेयर बनना चाहती थी और अबतक अलग-अलग जिलों से कई टुर्नामेंट खेलकर दर्जनों शिल्ड व मेडल अपने नाम कर चुकी थी।

वो दिन आज भी बहुत अच्छे से याद है जब मिनी पहली नज़र में ही प्रेम बाबू को अपना दिल दे बैठी थी। १२ दिसम्बर २०१६ का दिन और वो खटारा साहु बस जिसमें मिनी अपने कुछ साथियों के साथ मैच खेलकर घर लौट रही थी। और प्रेम बाबू भी बारकोट में अपना काम पूरा कर के सम्बलपुर आने के लिए किसी बस की प्रतीक्षा कर रहे थे। थोड़ी देर की प्रतीक्षा के बाद साहू बस सामने आती दिखाई दी। सम्बलपुर जाने वाली बस है बोर्ड में पढ़कर प्रेम बाबू ने हाथ हिलाया,बस रूकी तो प्रेम बाबू अपना टूल्स बैग संभालते हुए फटाफट बस में चढ़ गये। और एक खाली सीट देखकर चुपचाप बैठ गये। शाम के लगभग चार बज रहे थे। दिन भर के काम से थके बस में बैठने के बाद प्रेम बाबू को ना जाने कब नींद लग गई। अचानक चलतीं बस में शोर होने लगी। प्रेम बाबू की आंखें फट से खुल गईं। देखा तो एक लड़की अपने सीट से बस के गलियारी में गिर गई थी। कुछ लोग उसे उठाने का प्रयास कर रहे थे। मुंह से झाग निकल रहा था। कपड़े सब ख़राब हो गये थे। शायद मिर्गी आई थी। प्रेम बाबू अपने सिट से उठकर उस लड़की की तरफ गये।कोई कह रहा था कि चमड़े के जूते सुंघाओ कोई कह रहा था लोहा छूआओ कोई कह रहा था मुंह पर पानी के छिटें मारो। प्रेम बाबू एक पल गंवाए बिना झट से अपने टूल्स बैग से एक १० _ १२ नम्बर का पाना निकालकर लड़की के हाथ में थमा दिया और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसके स्वास्थ्य में सुधार की प्रतीक्षा करने लगे। पता नहीं लोहा छूआना सच हुआ और लड़की आधे मिनट में ही उठकर बैठ गई। प्रेम बाबू अपने सिट की तरह फिर भागे और बैग से पानी की अधभरी बोतल खोलकर अपने चुल्लू से उसके मुंह पर छिटें मारने लगे और उसके ओढ़नी से उसका चेहरा साफ कर उसे उसके सिट पर बिठा दिया।अब वो ख़तरे से बाहर थी। अपने हाथों से पानी पिलाकर बगल में बैठी मिनी को बोतल थमाते हुए कहा कि बीच-बीच में इसे दो दो घूंट देते रहना। सब कुछ पहले जैसा समान्य हो गया। प्रेम बाबू भी अपने सिट पर आकर बैठ गए थोड़ी देर में आंखें फिर लग गई। बस सम्बलपुर की तरफ बढ़ते जा रही थी और मिनी प्रेम के सपनों में खो कर एकटक प्रेम बाबू को निहारते जा रही थी। यही वो पल था जब मिनी मन ही मन अपना दिल प्रेम बाबू को दे चुकी थी। पूरी बस में एकमात्र प्रेम बाबू की इस उदारता, सहानुभूति और बुद्धिमानी से मिनी काफ़ी प्रभावित होकर प्रेम बाबू के सपने देखने लग गई। प्रेम बाबू दिनभर के थकान की वज़ह से गहरी नींद में सो गए। और मिनी प्रेम बाबू के मासूम चेहरे पर अपनी नज़र गड़ाए बैठी थी।बेचैन बढ़ती जा रही थी। दिल मचलने लगा था। खिड़की से पुरवाई भी दुपट्टे को छूने लगे थे।बस अब सब्र का बांध टूटता जा रहा था कि कब प्रेम बाबू की आंखें खुले ताकि अपने सहेली रूपा के साथ जो पूरी बस में अकेले मानवता का परिचय दिया उसके लिए कम से कम थैंक्यू बोल सके।

अंधेरा हो चुका था बस सम्बलपुर पहुंचने वाली थी। मिनी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी काहे कि प्रेम बाबू संबलपुर में ही उतरने वाले थे। ड्राइवर ने लाईट जलाई प्रेम बाबू की आंखें खुल गईं।एकटक निहारती मिनी प्रेम बाबू की आंखें खूलते ही खुशी से झूम उठी और एक हल्की सी मुस्कान के साथ, कितना सोते हैं आप? शिकायत भरे लहज़े में बोली।प्रेम बाबू भी मुस्कुराते हुए बोले कि वो मैं दिनभर के काम से थक गया था ना इसलिए.... ।।

थैंक्यू! आपने मेरे फ्रेंड की जान बचा ली मिनी ने भावपूर्ण शब्दों में कहा। अरे नहीं इसमें थैंक्यू की क्या बात है यह तो हरेक इंसान का फ़र्ज़ बनता है कि किसी के मुसिबत में यथासंभव काम आए और मैंने भी वही किया।

यही तो आपकी महानता है मिनी ने कहा।

अच्छऽ आप अपना मोबाइल नंबर दे सकते हैं क्या? मिनी ने विनम्रतापूर्वक कहा। हां हां क्यों नहीं लिखिए! प्रेम बाबू ने कहा। फटाफट दस अंकों का मोबाईल नम्बर लिखवा दिया। थैंक्यू सो मच नम्बर देने के लिए वैसे आप रहते कहा है? जी मैं सम्बलपुर में रहता हूँ प्रेम बाबू ने कहा।

मैं झारसुगुड़ा में रहती हूँ।बी०ए० फाइनल इयर में हूँ। फुटबॉल खेलती हूं। मेरे पापा का नाम फलां है।दो भाई हैं फलां फलां नाम है। फलां फलां काम करते हैं और ना जाने क्या क्या ट्रेन की रफ़्तार से सब एक ही सांस में लपेट दी।

 प्रेम बाबू तो उसके मुंह ही देखते रह गए। इतनी फास्ट लड़की बाप रे! मन ही मन कहा। सम्बलपुर, सम्बलपुर कंडक्टर आवाज लगा रहा था।बस रूक गई प्रेम बाबू उतरे बाय बाय! फ़ोन करूंगी तो फ़ोन जरूर रिसिव करना मिनी ने खिड़की से हाथ हिलाते हुए कहा। जरूर जरूर प्रेम बाबू ने भी कहा।

बस चल पड़ी! सम्बलपुर से झारसुगुड़ा लगभग डेढ़ घंटे के पूरे रास्ते में मिनी प्रेम बाबू के बारे में ही कल्पना करते गई। घर पहुंचते ही फोन मिलाई हैलो मैं पहुंच गई रूपा भी अभी बिल्कुल ठीक है मैंने आपके बारे में अपनी मां को बताया आज आप ना होते तो रूपा की जान चली जाती। मम्मी आपसे बात करना चाहतीं है एक मिनट बात कर लीजिए। हैलो बेटा मैं मिनी की मां बोल रही हूं। हां मां प्रणाम! खुश रहो बेटा। मिनी तुम्हें बहुत याद कर रही है जब से आई है हाथ मुंह कुछ धोई नहीं और बस तुम्हारी ही बातें करती जा रही है। हां हां तारिफ तो करेंगी ही मां जी ट्रेन की तरह इतना तेज बोलती है बाप रे! मां के हाथ से फोन लेकर धमकाते हुए कहती है- ओए बाबू! क्या बोले मैं ट्रेन की तरह बोलती हूं। मुझे पागल समझते हो। मैं अनपढ़ हूं, गंवार समझते हो मुझे हऽ फोन में ही मुक्का मारूंगी समझें! अरे चुप कर बेचारे ने तेरी हेल्प की और तुम उसे ही धमका रही हो।एक नये व्यक्ति से ऐसे बात करते हैं भला? इतनी बड़ी हो गई न जाने भगवान तुम्हें कब बुद्धि देंगे।

मां बड़बड़ाते हुए मिनी को कोस रही थी। हां हां करो उसी की तरफदारी इतनी जल्दी वो अपना हो गया मैं पराई हो गई हं हं हं ...! मिनी की बच्चों जैसी हरकत और मिर्ची की तरह तिखी आवाज प्रेम बाबू चुपचाप फ़ोन को कान में लगाए सुन रहे थे। बेटा मिनी की बात को दिल पर मत लेना ये बचपन से ऐसी ही है। २४ की हो गई पर अब तक बचपना नहीं गया ये सब इसके पापा के लाड़ प्यार से हुआ है। ठीक बेटा अपना ख्याल रखना। और समय मिले तो मेरे घर जरूर आना। जरूर मम्मी जरूर आऊंगा ओके बाय।

  रात ग्यारह बजने वाले थे खाना खा कर प्रेम बाबू सोने चले कि फ़िर फ़ोन आया बड़ी सालीनता भरी आवाज आई हैलो मैं मिनी बोल रही हूं। हां बोलिए !प्रेम बाबू ने कहा।

आप मेरी बात को बुरा मान गए क्या! अगर बुरा लगा हो तो मुझे माफ़ कर दीजिए प्लीज। मैं आपके पैर पकड़ती हूं। अरे नहीं नहीं मैं नाराज़ नहीं हूं डोंट वरी! प्रेम बाबू ने भरोसा दिलाते हुए कहा।

एक बात पूछूं आपसे मिनी ने कहा। हां हां पुछो।

आपकी शादी हो गई है? नहीं अभी नहीं हुई।

ओहो कोई बात नहीं। ठीक है बाद में बात करूंगी कहकर फोन काट दी।

    प्रेम बाबू को कुछ संदेह हुआ कि कहीं मिनी के दिल में मेरे लिए कुछ बात तो नहीं चल रही जो कभी इतनी तिखी तो कभी माफी और फिर इस तरह के सवाल पूछ रही है।

आखिरकार प्रेम बाबू का संदेह सत्य निकला। अगले सुबह एक मैसेज मिला आई लव यू जान! आई रियली लव यू! आई मिस यू। मैं आपके जवाब का इंतजार करूंगी आपकी मिनी। मैसेज पढ़कर प्रेम बाबू सन्न रह गए अरे बाप रे ए कैसी आफ़त आ पड़ी। लेकिन मैसेज पढ़ने के बाद और उसकी हरकतों को देखते हुए प्रेम बाबू के हृदय में भी एक भावना के अंकूर पनपने लगें थे।

पर प्रेम बाबू ने इस प्रेम प्रस्ताव को ठुकराना ही उचित समझा क्योंकि उनके पिता इस प्रेम के रिश्ते को कभी नहीं स्वीकारते। अंततः प्रेम बाबू ने उसके नम्बर को ब्लाॅक कर दिया पर उनका दिल नहीं मान रहा था पर क्या करते। दिन बीता हफ्ते बीते इसी तरह एक मास बीत गया। इधर फ़ोन ना लगने के वज़ह मिनी का रो रोकर बुरा हाल हो गया था।प्रेम बाबू भी चैन से नहीं रह पा रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे कोई मूल्यवान वस्तु कहीं खो गई हो। चेहरे पर उदासी के बादलों ने अपनाडेरा डाल दिया,काम भी ठीक से नहीं कर पा रहे थे। मिनी की चिंता सताने लगी थी।जब नहीं रहा गया तो प्रेम बाबू ने उसका नंबर अनब्लाॅक कर दिया। पांच मिनट बाद तुरंत फोन आया फोन उठाते कि उससे पहले हाथ कांप रहे थे जैसे कितना बड़ा अपराध किया हो। किसी तरह फ़ोन उठाए मिनी की रूआंसी आवाज सुनकर हृदय द्रवित हो गया और कांपते स्वर में कहा कि साॅरी मिनी मुझे माफ़ कर दो आगे कुछ कहते कि इस से पहले आंसुओ ने कब्जा कर लिया सांसें तेज हो गई और हिचकी लेते लेते आई लव यू टू... आई लव यू टू बोलते बोलते फफक-फफक कर रोने लगे। प्रेम बाबू के मुंह से आई लव यू टू शब्द सुनना मिनी के लिए सबसे बड़ी दौलत थी! भला खुशी के आंसु कहां रूकने वाले थे दोनों ने खूब जी भर कर रोया और सदा के लिए दोनों एक दुसरे के जान बन गये।


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