संजू
संजू
प्रेमशंकर आज सुबह से ही बहुत परेशान परेशान दिख रहे थे। मासूम चेहरे पर चिंता की उभरी लकीरें स्पष्ट दिख रही थी। बूढ़ी माँ की तबीयत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। मजदूरी करके और घर के कुछ अनाज बेचकर जुटाए गए पैसों से इलाज़ के बाद भी माँ ठीक नहीं हुई थी। डॉक्टर ने बेहतर इलाज के लिए बीस हजार रुपयों की मांग की है।ये बीस हजार रुपए प्रेमशंकर के लिए 20 लाख के बराबर थे। सुबह से ही निकले सुद पर पैसे ढूंढते ढूंढते दोपहर के एक बज गए थे। अप्रैल महीने के चिलमिलाती धूप में भूखे प्यासे,नंगे पांव, गांव का शायद ही कोई ऐसा दरवाजा होगा जिस दरवाजे पर जाकर माँ के इलाज के लिए हाथ ना फैलाए हों परंतु कहीं से भी आशा की कोई किरण नजर नहीं आई।
इधर पत्नी संजू भी खिचड़ी बनाकर सासू माँ को अपने हाथों से खिला रही थी और चिंतित भी हो रही थी कि वे अब तक आए क्यों नहीं? हर थोड़ी देर में खिड़की से झांकती तो कभी बाहर दरवाजे पर जाकर उनके पैरों की आहट सुनने की चेष्टा करती। थोड़ी देर बाद बाहर साईकिल की घंटी की आवाज़ सुनाई दी संजू दौड़कर बाहर निकली तो देखी कि प्रेमशंकर गमछे से पसीना पोछते हुए निराशाजनक स्थिति में दरवाज़े पर खड़े है। अपने पति को इस अवस्था में देखकर संजू सब कुछ समझ गई।विधना के लेख को अपना किस्मत समझकर आंखों में आंसु छलक आए। खुद के आंसु को छुपाते, अपने पल्लू संभालते हुए झट से एक लोटा ठंडा पानी लेकर आई। प्रेमशंकर के चेहरे पर छाए उदासी के बादल को अपने मुस्कान से हटाने का प्रयास करते हुए कहती है आप हाथ मुंह धो कर कुछ खा लीजिए। देखिए तो कितना समय हो गया आप सुबह से कुछ खाए पीये नहीं है। और मैं भी अबतक ऐसे ही आपकी राह तक रही हूँ।
तो तुम खा लेती ना.. प्रेमशंकर ने कहा।
सुबह से अबतक सबके दरवाजे पर गया........ शंकर की बात बीच में ही काटते हुए संजू कहने लगी...
मैं जानती हूँ कि पैसों का इंतजाम नहीं हुआ।
पर आप चिंता ना करें
सब ठीक हो जाएगा।
आप जल्दी से खाना खा लीजिए।
मैं अभी लगाती हूं !
ईधर अधटुटी खटिये से बिमार माँ सब सुन रही थी। और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि- हे प्रभु अब ले चल मुझे! भला मेरे बहू बेटे कब तक मेरे लिए परेशान होते रहेंगे। पर होनी के आगे किसकी चली है।
खाना खिलाने के बाद संजू अपने पति प्रेमशंकर को भीतर के कमरे में ले गई। ताकि दोनों की बातें माँ ना सुन सके।
ये लीजिए.. और इसे बाजार में बेच आइए।
ये क्या? ये तो तुम्हारे शादी के गहने हैं।
हाँ? अब माँ को बचाने के लिए इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं है। संजू ने भिगे और निवेदन भरे स्वर में कहा।
अब जल्दी कीजिए और झट से जाइए। कल सुबह ही माँ को अस्पताल लेकर चलना है।
प्रेमशंकर ना चाहते हुए भी अपने पत्नी की सहमति से अपनी माँ को बचाने के लिए ज़ेवर बेचने का फैसला कर लेता है।
कांधे पर गमछा लेकर प्रेमशंकर भारी कदमों से बाज़ार की तरफ चल पड़ा।
शाम तक ज़ेवर बदलकर सोनार से इक्कीस हजार सात सौ रूपए ले आए। ।।।
माँ का इलाज अब संभव हो गया। प्रेमशंकर अगले ही सुबह शहर के बड़े डाॅक्टर के पास माँ को ले गया।
जहां तीन दिन तक सफल इलाज़ चलने के बाद माँ पूर्ण स्वस्थ होकर हंसी ख़ुशी से घर को लौट आई।।
