सहम जाती हूँ मैं..
सहम जाती हूँ मैं..
सूने रास्तों में अक्सर सहम जाती हूँ मैं,
निगाहों से कितनी दफा़ निर्वस्त्र हो जाती हूँ मैं।
कुछ कह दूॅं तो खलता बड़ा है,
समझकर अबला, न जानें कितनी दफा़ छेड़ी जाती हूँ मैं।
जबरदस्ती के प्रेम में तेज़ाब तक डाल देते हो,
और प्रेम के नाम पर कितनी दफा़ अगवा कर ली जाती हूँ मैं।
मैं अपनी काया से आगे बहुत कुछ हूँ,
पर पहले अपने जिस्म से ही जानी जाती हूँ मैं।
देखकर अकेला, गिद्ध से टूट पड़े,
तुम जैसों के घर भी, माॅं, बीवी बहन के रूप में पाई जाती हूँ मैं।
नौकरी की चाह में, मुझे बाज़ार दे दिया,
अब तो हर वक्त लिए मुस्कान नोची जाती हूँ मैं ।
वो पति परमेश्वर है मेरा,
कितनी ही दफा़ बिस्तर पर लहूलुहान हो जाती हूँ मैं।
मेरी आप बीती मैं क्या ही बताऊॅं,
न्याय की इस जंग में हर बार कटघरे में खड़ी कर दी जाती हूँ मैं।
(बलात्कार)
सुनकर दिल दहल जाता है न.. क्यूॅं भूल जाते हैं कुछ दरिंदे की नारी भी एक इंसान है।)