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Sajida Akram

Thriller

3.4  

Sajida Akram

Thriller

शिकारा

शिकारा

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179


सना को अपनी पुरानी डायरी में एक पिक्चर मिली, तो वो ख्यालों में खो गई।

कश्मीर की उन वादियों में पहुँच गई।

अपनी अम्मी के साथ कैसे 

नाना जान-नानी जान के यहाँ गर्मी की छुट्टियां बिताने जाती थी। कश्मीर में बहुत मज़े करतीं थीं।

उस पिक्चर मैं, नुसरुत के साथ बैठी थी।डल झील के पानी में पैर लटका कर।वो भी क्या लम्हें थें ? घंटों हम यूहीं बैठे रहते थे और सामने बर्फ की ऊंची- ऊंची पहाड़ियों को निहारते रहतें थे।नानी कई बार आवाजें लगती अब शाम हो रही है "लड़कियों" अंदर आ जाओ कांगड़ी ले लो सर्दी लग जाएगी। मगर हमें वो बर्फीली पहाड़ियाँ बहुत लुभावनी लगती थी।

 अब्बू की आवाज़ से मेरी यादों का सिलसिला टूटा। मेरी आँखों में आंसू थे।वो लम्हें घूम गए।जब अम्मी को पड़ोसियों ने फोन किया था। आपके घर पर हमला हुआ है,अम्मी तो सदमें से बेहोश हो गई थी।हम सब सदमें में आ गए थे।

नाना जान के डल झील वाले घर पर कुछ सिरफिरे आतंकियों ने हमला कर दिया। पूरे शिकारे को आग के हवाले कर दिया और सबकों गोलियों से भून दिया था।

वजह थी, उन आंतकियों को शक था। मामू जान और उनके दोस्त पुलिस के इंफार्मर है।

 आतंकियों की ख़ुफ़िया ख़बरें पुलिस को देतें हैं।

अम्मी भी ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई।कुछ ही दिनों में हमें अकेला छोड़कर इस दुनिया से चली गई।

अब्बू ने ही मेरी और भाई की परवरिश की हमें अम्मी की कमी महसूस नहीं होने दी।

आज भी कभी कश्मीर की याद एक कसक छोड़ जाती है।जिसमें मेेेरे नाना जान और नानी जान और मेरी प्यारी कज़िन नुसरतमामू जान और मामी हम से हमेशा के लिए बिछड़ गए।


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