Bhawna Kukreti

Drama

4.5  

Bhawna Kukreti

Drama

शायद-7

शायद-7

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489


स्लिन्ग पर्स को गले से तिरछा डाल कर वो रेसोर्ट से बाहर निकल आई। ठीक सामने घना जंगल था। रिजॉर्ट के एक लोकल पहाडी स्टाफ ने उसे कहा था कि वह जंगल में पगडन्डी पर नीचे की तरफ न जाकर ऊपर की तरफ सीधे चलती जाए , और जब वन विभाग की ट्रैल ( गश्ती रस्ता) दिखे तो उसपर 1 किलोमीटर चले , उसी पर आगे झरना है , सिर्फ सवा घंटे का ट्रेक है।

तन्वी को सामने दो रास्ते दिख रहे थे। उसने ऊंचाई वाली पगडंडी को पकड़ लिया और धीरे-धीरे आगे बढ़ती गई।अब ये पगडंडी जंगल मे काफी नीचे की ओर जाने लगी।चलते-चलते काफी देर हो गयी थी और वन विभाग का गश्ती रस्ता अभी भी नही दिख रहा था। पगडंडी के दोनो ओर खड़ी पहाडी पर कुछ बकरियां अपने पैर पेड़ों पर टिकाए पत्तियां खींच-खींच तोड़ कर खा रहीं थीं।एक पहाडी पर उँचाई पर तन्वी को एक पेड़ पर कुछ गुलाबी फूल दिखायी पड़े जैसे चेरी के हों । वो मंत्र मुग्ध पहाडी पर उगी झाड़ियां पेड़ के तने पकड़ पकड़ कर उपर चढ गई। उपर पहुंच कर उसने देखा पहाडी के दूसरी ओर नीचे एक पहाड़ी नदी बह रही थी। इतना साफ पानी था की लाल भूरी काली मछलियां उपर से भी दिखायी पड़ रही थी।तन्वी को प्यास भी लग आई थी ।उसने पेड़ की दाल जोर से हिलाई तो झर झराते फूल नीचे रस्ते तक गिर गये उसने दुपट्टा फैला कर कुछ फूल अपने दुपट्टे मे बांध लिये और नदी तक पहुंचने के लिये फिसलती संभलती नीचे उतर गयी। 



नदी के किनारे अपने स्पोर्ट शू उतारने के बाद वह नंगे पैर , छोटे-बड़े पत्थरों पर चलते , पत्थरों के उपर से धीमे धीमे बहती नदी मे उतरी। पर उतरते ही तुरंत बाहर को निकल आई।


"ओ मां !! कितना ठण्डा पानी "।


उसके पैर डालते ही मछलियां भी तितर बितर हो गईं। कुछ देर बाद उसने चुल्लू मे पानी लिया और थोड़ा थोड़ा कर पिया। नदी के उस पार जंगल मे कुछ अंदर, उसे कुछ पीला-भूरा सा कुछ दिखा ।



रेसोर्ट वालों ने बता ही दिया था कि इस साल जंगल मे हिंसक जानवर नही हैं बस कभी साल दो साल मे एक दो बार भालू दिखता है। दो महिने पहले जंगलात वालों के बताया था की इस साल इस एरिया मे उसकी साइटिँग भी नही है। सो तन्वी नदी पर बह आये बड़े बड़े पत्थरों पर पैर रख कर इत्मीनान से उस ओर चली गयी। जैसे-जैसे वह करीब जाती गई दिखने लगा की वो पीली-भूरी चीज एक बड़ा सा दीमक का टीला थी। तन्वी ने इतनी बड़ा दीमक का टीला कभी नही देखा था। वो उसके कद से सवाया बडी और दो हाथ चौड़ा था। लेकिन दीमक जैसा कुछ दिख नही रहा था।हाँ कुछ गोल से छेद थे जिसमे से लगातार कड़कड़ की आवाज आ रही थी। 



तन्वी को ये आवाज उसके अपने बचपन मे ले गयी जब वो कन्चों को अपनी मुट्ठी मे बन्द कर बजाया करती थी।इसलिय उसे उन छेदों से उस आवाज का आना बहुत अनोखा लगा ।उसने दोनो हाथ उस बांबी पर टिकाए और एक आँख बन्द कर एक छेद मे झांका। उसे कुछ दिखायी नही पड़ा पर उस छेद से आवाज आनी बन्द हो गई। तन्वी ने पास पड़ी एक लकड़ी को उठाया और उस छेद मे डाला और घुमाया। अचानक उस छेद मे से एक सांप फुफ्कारता बाहर निकला। तन्वी अचानक ये हमला देख कर डर के मारे अपना संतुलन खो बैठी और गिर पड़ी । उसके डर के लिये ये कम ही था, धीरे-धीरे बाकी छेदों से भी सांप निकलने लगे। तन्वी उठकर भागने की कोशिश मे दो तीन बार गिर पड़ी। ।सांप उसी की ओर बढे चले आ रहे थे ।उसके मुह से बार-बार ये ही निकले जा रहा था " पापाऽऽऽ पापाऽऽऽ बचा लो प्लीज!! " दुपट्टा भी झाडी मे उलझ-उलझ जा रहा था। उसने दुपट्टा वहीँ छोड़ा और जान बचा कर भागी।


वो बस भागे जा रही थी। भागते-भागते उसे महसूस हुआ की जंगल की जमीन उंची होने लगी है।अब वो झाड़ियां, पेड़ पकड़-पकड़ कर चढने लगी। उसने पीछे घूम कर देखा,पीछे सब शांत नजर आ रहा था। वह धम्म से वहीँ एक पेड़ के नीचे बैठ गयी।


साँस फूल गयी थी, पसीने से तर बतर वो आस पास देखने लगी।दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था सिर्फ जंगल मे चिड़ियों की आवाजें और कीड़ों की भन्भनाहट गूंज रही थी।



घड़ी देखी तो पता चला उसे निकले तीन घण्टे हो चुके थे। उसने शरीर पर तिरछे लटकाये अपने स्लिन्ग बैग को खोला। उसको अपने पापा की बात याद आई।" हमेशा स्लिन्ग पर्स को काँधे से तिरछा लिया करो , फ़्री रहोगी।" , भरी आँखों से बुदबुदायी "थैंक यू पापा " उसने अपना ब्रेस्लेट चूमा जो उसके पास उसके पापा की आखिरी निशानी थी।


उसने पर्स को टटोला " नो, नो प्लीज नो!" उसने पूरा पर्स उलट दिया। वो मोबाइल कोट्टेज मे चार्ज़ींग पर ही छोड़ आई थी !



घबराहट हावी होने लगी, अब इस जंगल मे वो किस ओर जाय? सब तरफ एक जैसा दिख रहा था। उसने सर उठा कर उपर देखा , सर के ऊपर बस कुछ ऊंचाई पर मधुमखियोँ का बड़ा सा छत्ता लगा हुआ था।" पापा !" डर से वो सिहर गयी। धीरे से वो उठी और झुक कर उस पेड़ से दूर चली गयी।



'किस घड़ी निकली मैं आज, एक के बाद एक मुसीबत, अब किधर जाऊं? सोचते हुए तन्वी बस जंगल को देखे जा रही थी। फिर वो चलने लगी, कहीं तो पहुंचूंगी? वो पहाडी ये भी तो कह रहा था की आस पास छोटे बड़े काफी गांव हैं ,कोई तो मिलेगा । मन मे खुद को हिम्मत देती तन्वी बस चलते जा रही थी।



अचानक तन्वी को सामने से कुछ आता दिखा। वो खुश हो गयी ' कोई लोकल होगा , थैंक यू गॉड ' उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया। मगर तन्वी के होश फाख्ता हो गये, सामने से एक भालू अपने नन्हे बच्चों के साथ आ रहा था। तन्वी की चीख निकल गयी " पापाऽऽऽऽ" और वो होश खो वहीँ गिर गई।


*क्रमश:


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