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Bhawna Kukreti Pandey

Drama

3  

Bhawna Kukreti Pandey

Drama

शायद-4

शायद-4

5 mins
413

अलमीरा से कपड़े निकालते वक्त एक फोटो फ्रेम गिर पड़ा। उसने उठा कर देखा तो ये वही फ्रेम था जो उस दिन तन्वी के बेड की साइड टेबल से प्रियम ने हटा कर अलमीरा में रख दिया था। तन्वी ने देखा तो कुछ देर को खो सी गई।


        ये तब की पिक थी जब सब शुरु हुआ था। रुचिर मेरा भी दोस्त था, कॉलेज के लड़के लड़कियों में खासा पॉपुलर था। लड़कियों में खास तौर पर। खूबसूरत लड़कियों को अपने व्यवहार से मोहना उसके लिये असान था।


        तब तन्वी से मेरी दोस्ती उतनी गहरी नहीं थी। मगर जान गई थी कि वो एक आम सी लड़की थी जो हाल ही में अपने डिप्रेशन से उबर रही थी। उसे अपने पापा से बेहद लगाव था उनकी असमय मृत्यु से उसे बहुत गहरा सदमा पहुंचा था। रुचिर को भी वो तब कुछ अजीब सी लगती थी। मगर कॉलेज के न्यू ईयर फंक्शन में जब वो थोड़ा करीने से आई तो रुचिर का ध्यान जरा देर को उस पर गया। तब स्वभाव से कोमल मन की तन्वी इस बात से अनजान, हमारे बीच की ही एक लड़की प्रकृति और बाकी ग्रुप के साथ न्यू ईयर फंक्शन को एन्जॉय कर रही थी। रुचिर भी सबका ध्यान अपनी ओर किये हुए था।

         प्रकृति ने तन्वी को उसे देखते हुए पाया तो चिढ़ाते हुए कहा "बच के रहना उस से , तुम्हारा मिज़ाज उस से मेल नहीं करेगा।" तन्वी ने मुस्करा कर बात टाल दी थी। प्रकृती को लगा बात आई गई हो गयी। मगर रुचिर ने तन्वी की ओर अपना इंटरेस्ट दिखाना शुरु कर दिया था। वो प्रकृति और तन्वी तक पहुंचना चाह रहा था, क्यूँकी हम सब जानते थे की तन्वी और प्रकृती अच्छी सहेली बन रहीं है। उसने प्रकृति से घनिष्टता बढ़ाई। प्रकृति ने ये तन्वी से बताया नहीं पर तन्वी को थोड़ा-थोड़ा आभास हो गया था की रुचिर और प्रकृति के बीच कुछ चल रहा है। कई बार उसने प्रकृति और रुचिर को इशारों में बात करते एक दूसरे की हैल्प करते देखा था। उसी दौरान तन्वी और मेरी दोस्ती बढ़ी थी।

 कॉलेज पूरा होने के बाद उसने, मैंने और प्रकृति ने एक साथ एक ही कंपनी में  जॉब करना शुरू किया। मैं और तन्वी एक ही रूम लेकर रहने लगे थे। उसी ऑफिस में रुचिर भी कुछ समय बाद आ गया। और अपनी मेहनत से बहुत जल्दी प्रमोट हो गया।इधर तन्वी ने अपना मन भी ऑफ़िस के काम में लगा दिया था। एक दिन हम तीनों बैठे थे कि प्रकृति ने उस से अजीब सा सवाल किया। "तन्वी ,रुचिर कैसैनोवा है न?" तन्वी अचानक उसके इस सवाल पर हैरान थी। "मैने कभी उस पर ऐसे गौर नहीं किया " , "झूठ, तुम अक्सर उसे देखती हो।" प्रकृती ने कहा "कब?" जब लंच आवर होता है तब देखा है" ," नहीं, ग़लतफहमी हुई तुम्हें!","अच्छा जी , एकटक उसी ओर देखती हो जिधर वो बैठा रहता है","नहीं, तुमको वाकई ग़लतफहमी हुई है, अब जब तुम्हें लगे तो मुझे टोकना", "हम्म इश्क़ और मुश्क छिपाये नही छिपते डीयर, बट अगर कुछ है तो बता रही हूं लूज टंग और गर्म दिमाग का है, तुम दूर ही रहना वरना रोती रहोगी सारी उम्र। इस से बढ़िया तो उसके साथ जो सजल है वो ही मुझे ठीक लगता है कूल ऐण्ड काम, बिल्कुल तुम्हारी तरह।" ,"ऐसा कुछ भी नहीं है प्रकृति, मुझे किसी पर ध्यान नहीं देना।" तन्वी और मैं उठ कर वहां से चले गए।हालांकि प्रकृति ने रुचिर के बारे में जो कहा वो सही था।पर वो मेरा भी दोस्त था तो मैंने चुप रहना बेहतर समझा।


अगले दिन लंच हावर में प्रकृति ने तन्वी को टोका "कहां देख रही हो?","हाँ, कौन?" तन्वी अपनी सोच से बाहर निकली "मैडम कल कितना समझाया मगर", "क्या समझाया, क्या मगर?" तन्वी में पूछा। "अभी जिधर ताक रहीं थी उधर की बात कर रही हूं" प्रकृति ने आँखों से इशारा किया। तन्वी ने गौर किया "ओह! नहीं, नहीं तुम फिर गलत समझी" ये कह कर तन्वी का गला भर आया। मुझे उस दिन तन्वी के मन का पता चला कि वो कितना सेंसिटिव है। उसने प्रकृति को बताया की अक्सर लंच हावर में उसे अपने पापा की याद आती है और वो बस दूर किसी एक ओर देखते अटक जाती है जब तक की हलचल न हो। ये संयोग ही होता है कि रुचिर उस ओर होता है। मगर उसके बाद मैंने  नोटिस किया की प्रकृति की इस बात ने अब तन्वी का ध्यान रुचिर की ओर खींचना शुरु कर दिया था। अब जाने-अंजाने उसे यह जानने में रूचि होने लगी कि वह कब कहाँ क्या कर रहा है। वह कभी कभी मुझसे उसके बारे में पूछती भी ही। एक दिन मुझे देर हो रही थी तो मैंने उसे अकेले चले जाने को कहा।उस दिन वह ओफ्फिस जल्दी पहुँची थी। 

"हाय" तन्वी के सामने रुचिर खड़ा था।

उस दिन किस्मत से दोनो जल्दी पहुंचे थे।

"आपसे काफी दिनों से बात करना चाहता था मगर डरता था!"

"डरता था?! क्यों?"

"आप बेहद संजीदा रहती हैं न इसलिए।"

"ओह!"

"पर अब लगता है कि आपसे डरने की जरूरत नहीं!"

कहते हुए उसने तन्वी की आंखों में झांका। तन्वी के लिए ये पहला और अनोखा सा अहसास था। उसके बाद अकसर आंखों आंखों में रुचिर तन्वी से बात करता। दोनो के बीच बिना शब्दों के बात शुरू हो गयी थी। 

   तन्वी के काम से उसके इमीडियेट बॉस बहुत इम्प्रेस थे।उन्होंने उसे अपनी पी एस में प्रोमोट कर दिया। रुचिर को पता चला तो वह भागा भागा आया था।"एक्सेप्ट मत करना ,वो ठीक आदमी नहीं है। " कहकर उसने तन्वी को बॉस के काफी सारे राज उसके सामने खोल दिये थे।" मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे जैसी लड़की के साथ कुछ भी गलत हो। तुम प्रकृति को रिकमेंड कर दो, वो बोल्ड है, संभाल लेगी।"  रुचिर की उसके लिए चिंता देख कर तन्वी प्रभावित हो गयी थी। 

     उसके बाद से दोनो ने धीरे धीरे साथ समय बिताना शुरू किया। रुचिर का अब भी ऑफिस में लड़कियों के साथ बहुत नाम जुड़ता था । लेकिन रुचिर तन्वी के लिए सीरियस था ऐसा तन्वी को हमेशा अहसास दिलाता था। सो तन्वी ऑफिस की बातों को सीरियसली नहीं लेती थी। रुचिर ने उसे अपने परिवार के बारे में , फ्यूचर प्लान के बारे में भी बताना शुरू कर दिया था।उसने कहा कि वो जैसे ही सेटल हो जाएगा वो उसकी और अपनी शादी की बात घर वालों से करेगा। तन्वी ने उसी डीं अपनी माँ और भाई से रुचिर के बारे में बात की। सब अच्छा था।

   वो और तन्वी अक्सर छुट्टियां अब साथ बिताने लगे थे।एक बार दोनो अंडमान गए जहां तन्वी को अपने बचपन का क्लासमेट मिला। उसने  तन्वी को पहचानते ही बड़ी गर्मजोशी से उसे गले लगाया। तन्वी हक्की बक्की रह गयी। उस वक्त रुचिर ने इसे कैजुअली लिया लेकिन बाद में अक्सर उसे उस क्लासमेट को लेकर छेड़ता। जब तन्वी परेशान हो जाती तो उसे बहुत प्यार से मना लेता। कहता कि वो उसे बस छेड़ता है, तन्वी को भी फिर लगता कि ये सिर्फ उसका मजाक करने का तरीका है। 

   ये सब और बहुत सी निजी बातें मुझे तन्वी मेल करके बताती रहती थी। हम दोनों के बीच एक गहरी दोस्ती हो चुकी थी। उसे मुझपर बहुत भरोसा था। मगर मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई कि मैं उसे रुचिर के साथ आगे बढ़ने से रोकूं और न मुझे तब ये लगा कि तन्वी इतनी गहराई से रुचिर से जुड़ जाएगी।


ख़ैर ,  "हेल्लो?! मैडम " मयंक की आवाज़ ने तन्वी का ध्यान अतीत से बाहर खींचा।" हाँ? "," कितना समय लोगी सब बस में तुम्हारा वेट कर रहे, चलो भी।"

       तन्वी ने अपना समान उठाया और बस में आ गई। बस पूरी फुल थी सिर्फ आगे की दो सीट खाली थी। उसने अपना समान जमाया और खिड़की के पास बैठ गई। मयंक ने ड्राईवर से कहा " सीधे सरोजिनी गार्डन चलो, प्रियम सर वेट कर रहे।

प्रियम सर अपने स्टॉप पर चढ़े, सारी बस भरी थी, सब ट्रैनी आये हुए थे। मयंक अपनी सीट पर खड़ा हो गया "सर प्लीज आप यहां आयें"," तन्वी नहीं चल रही?" सर ने पूछा " मैं यहां हूं सर ","ओके गुड चलो यहीं बैठता हूं।" कह कर वो तन्वी के बगल मे बैठ गये। "आर यू कम्फर्टेबल?!", हाँ सर क्यूं?", "क्यूँकी मैं सफर में ज्यादा बात नहीं करता सिर्फ गजलें सुनता हूँ।"

"गज़ल?!" तन्वी की आँखें चमक गयी।

कुछ देर में तन्वी और प्रियम एक साथ ईयर फोन पर आँख बन्द कर गज़ले सुन रहे थे। हॉल्ट स्टेशन आ गया। सब नीचे उतरे, मयंक ने दोनो को जगाया।" सर, तन्वी कुछ खा लीजिए।" सर उठ कर बस से नीचे जाने लगे।

मगर तन्वी आँख बंद पड़े थी। "तन्वी, तन्वी सर सर रूकिए " मयंक ने घबरा कर सर को पुकारा। "क्या हुआ?" ," सर यह उठ नहीं रही, कहीं यह कुछ खा कर तो नहीं चल दी थी।"

"मार खाओगे तुम अब "तन्वी ने एक आँख खोल कर मयंक के उड़े चेहरे को देखा और वह हँसने लगी। प्रियम सर, तन्वी की शरारत पर मुस्करा कर नीचे उतर गए। मयंक ने तन्वी को हाथ दे कर उठाया।


"बेटा ऐसे जान न लिया करो, अब चलो कुछ खा लो।"

"हाय ! तेरे जैसा दोस्त न होता तो मेरा क्या होता ....है न?!",

"हाँ ..हाँ ..चल अब "


दोनो बस से नीचे उतर आये। बेहद खूबसूरत जगह पर बस रुकी थी। पहाड़ी सड़क नयी-नयी बनी थी, सड़क का काला रंग दो सफेद पट्टियों के बीच उभर रहा था। सड़क भी दो पहाड़ियों के बीच से सामने दाई ओर घूम रही थी सड़क के किनार बुरांस के पेड़ लाल फूलों से भरे हुए थे, उपर साफ नीला आसमां और गुलाबी सी ठण्ड, क्या मौसम था !!


" लो चाय पीयो दोनो " प्रियम सर दोनो के लिये चाय ले कर चले आये। "सिर्फ चाय सर ?! पकौड़े वगैरह नहीं ?" मयंक बहुत खुश था।" तले जा रहे हैं", " अरे सर मिलेंगे नहीं, ये सब पहले खा पी लेंगे जानता हूं इन भूकड्डों को मैं, रूकिए मैं ले कर आता हूं " मयंक कूदता हुआ पास ही पहाड़ी ढाबे की ओर भाग गया।

"हम्म तो...तुम नटखट भी हो ?!" प्रियम सर ने चाय का घूंट भरते हुए तन्वी को कहा।




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