Bhawna Kukreti

Drama

5.0  

Bhawna Kukreti

Drama

शायद-1

शायद-1

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       तन्वी मेरी गहरी दोस्त है पर तब उस ने मुझे बताया नहीं था कि रुचिर उसकी जिंदगी में उसके लिए इतना जरूरी  हो गया था। रुचिर को मैं भी जानती थी। रुचिर और तन्वी दो कुछ अधूरे से मगर बेहद अलहदा सख्शियत। शायद एक दूसरे के खोये हिस्से को पूरा करने की सारी गुन्जायिश लगी हो। तन्वी और रुचिर के बीच आकर्षण लाजिमी ही था। तन्वी को ऐसा लगता था की रुचिर का मन हर दम इधर उधर रहता है जिस वजह से वह अपनी मंजिलों के पास पहुंच कर भी नहीं पहुंच पाता। 

         रुचिर को तन्वी में कपैसीटी होते हुए भी आत्म विश्वास की कमी लगती। एक दुसरे को सहारा देते तन्वी और रुचिर के मन में एक दूसरे के लिये जगह बनने लगी। बकौल तन्वी ,सब बहुत सपनीला सा था। दोनो, जब भी जैसे भी जहाँ भी साथ होते समय जैसे पल में गुजर जाता मगर दोनो खुश हो जाते। एक दूसरे के सपनो में रंग भरते भरते , हकीकत ने आइना दिखाना शुरु किया । तन्वी के शादी के सवाल पर रुचिर ने तन्वी को भला बुरा कह दिया। तन्वी इस सब के लिये तैयार ही नहींं थी। रुचिर इस तरह से क्यूँ पेश आया ? क्यँ उनके बीच के पलों को गाली की तरह उसके मुह पर दे मारा। ऐसा क्या हो गया था? हर बार छोटे-छोटे मन मुटाव होते थे लेकिन ऐसा भी होगा ये तन्वी ने नहीं सोचा था।


खैर, एक नॉर्मल रिश्ते की खातिर उसने एक पॉजिटिव दायरा बनाना शुरु किया। रुचिर भी शायद यही चाह रहा था।दोनो अपनी अपनी जिंदगी में खोने लगे। कभी कभी तन्वी को होता की वो रुचिर से मिले बात करे, मगर क्या बात करेगी अब सब पहले जैसा नहीं लगता था। रुचिर कब क्या है ये अब उसके लिये एक ऐसी पहेली हो गयी थी जो वो सुलझाने चलती तभी और उलझ जाती। 

       एक मौका आया भी मिलने का, आमने सामने हुए, रुचिर खुश सा लगा मगर कुछ था जो अबोला सा रह गया दोनो के बीच। तन्वी एक आम मुलाकात कर चली आई। उसने उस दिन मुझे ई मेल किया कि उस दिन वह इतना रोई की अब शायद ही कभी आँसू उसके आँखों से निकले। उसके बाद जो रिश्ता बचा उसमें मानो औपचारिकता बस गयी। रुचिर ने भी कोई खास तवज्जो नहीं दी। वह अपनी मंजिलो की तलाश में चल दिया। 


          इधर तन्वी अपनी तन्हाई में, दूसरों के सपने सुनती, सोचती और कूची से कैनवस पर उतार देती। उसने अपने चित्रों को गराज़ सेल में रखा, कुछ चन्द चित्र सराहे गये। इस से उत्साह बढ़ा। कुछ समय बीता उसके शहर में नई आर्ट गैलरी का इनौगुरेशन हुआ जहां, नॉए शौकिया चित्रकारों के साथ उसके चित्रों कि भी प्रदर्शनी लगी। शहर के नामचीन चितेरे वहाँ आयोजकों ने बुलाये हुए थे। सब उसकी तस्वीरों को सरसरी निगाह से देख कर चले गये। किसी को कुछ खास नहीं लगा। वहीँ प्रियम भी पहुंचा हुआ था उसने उसके चित्रों में, रंगो में लिपटी तन्वी का अक्श देखा। प्रियम खुद भी एक अच्छा कलाकार था। अपना मुकाम था उसका। तन्वी में अभी सुधार की काफी गुंजायश थी, रिपिटीटिव हो जाती थी मगर हर टॉपिक में सरलता झलकती थी। ये ट्रेंड आजकल लगभग खत्म ही था। अब बोल्ड और ज्वलंत मद्दे ध्यान खींचते थे।


          उसने तन्वी के पास जा कर कहा, "आपकी शुरुआत अच्छी है"। तन्वी के लिये ये बहुत सुखद अनुभव था क्यूँकी उसे लगने लगा था की वह शायद समय बर्बाद कर रही है, उसकी कृतियाँ गराज़ सेल के लायक हैं। जहाँ लोग रंगों से आकर्षित होते हैं सब्जेक्ट मैटर से नहींं।



"यू हैव न्यू मेंल" तंवी ने अपना लैपटॉप ओन ही किया था की मेंल का नौटिफीकेशन पॉप अप हुआ। उसने पढा, किसी संस्था की तरफ से नजदीक के शहर में" रंगों की बरीकियां" कार्यशाला का आमंत्रण था। उसने अपनी स्वीकृति भेज दी।


तन्वी ने गर्दन चारों ओर घुमा कर देखा, कार्यशाला में काफी नये-पुराने चेहरे थे। उनमें से एक चेहरा देखा देखा सा लगा। उस चेहरे ने दूर से ही कूची हिला कर अभिवादन किया। तन्वी ने भी नमस्कार किया। उसे ध्यान आ गया की ये वही व्यक्ति हैं जिन्होने उसका हौसला बढाया था। उसने नाम याद करने की कोशिश की मगर याद ही नहीं आया। "ओह! नाम तो मैने पूछा ही नहींं था। " परिचय शुरु हुआ, पता चला वो प्रियम शाह हैं।


"प्रियम शाह !" तन्वी को यकीं नहींं हुआ, अभी कुछ दिन पहले जब वो अपने पीस को फाइनल टच दे रही थी तो टीवी पर पीछे चल रहा था, "इस वर्ष स्वर्ण कमल पुरस्कार महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा श्री प्रियम शाह जी को अपनी उल्लेखनीय कृति स्वप्न मन्जूषा के लिये प्रदान किया जाता है। " उसने पलट कर देखा तो टीवी पर राष्ट्रपति, साल्ट-पैपर बाल और मौव रंग का कुर्ता पहने व्यक्ति को पुरस्कार दे रहे थे। टीवी पर लाइव प्रसारण के साथ साथ साईड में प्रियम शाह जी की शायद कॉलेज डेज़ की पिक शो हो रही थी। "तभी नहीं पहचान पायी मैं " तन्वी बुदबुदायी।



वॉर्क्सॉप में वाकई तन्वी को बारीक जानकारियाँ मिली। अब उसे खुद ही अपनी कृतियों में काफी कमियाँ नजर आने लगीं। वो शर्मिंदगी महसूस करने लगी की क्या सोच कर वो चल दी थी प्रदर्शनी में। वॉर्क्सॉप में प्रियम शाह ने बहुत जरुरी बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की थी। उन्होने अन्य नवोदित कलाकारों के साथ साथ तन्वी को भी कई बेहतरीन सुझाव दिये। उन्होने तन्वी को अपनी संस्था को जोइन कर्ने को कहा। तन्वी को एक खुला आसमान दिखा। उसने संस्था जोइन कर ली।


"मयंक जी जो बताया जाता है उस पर अभी एक्सपेरिमेंंट नहीं, काम करिये बस। " प्रियम का ये लहजा तन्वी ने बीते 8-9 महिनो में नहीं देखा था। वो साथी कलाकार के स्ट्रोक पर कर रहे थे। "और आप तन्वी जी ..आपको तो ख़ैर... महज शौक है !" प्रियम शाह ने पलट कर तन्वी को देख कर कहा। प्रियम सर के वहां से जाने के बाद मयंक बोला "लगता है आज सुबह से  किसी बात से उखड़े हुए हैं सर ।"  ,"सुबह से?", "हाँ , मैं पड़ोसी हूँ इनका। सुबह से कुछ अनमने से हैं। वैसे बहुत ही अच्छे इंसान हैं पर आज कुछ तो है...।" मयंक ने सोचते हुए कहा। तन्वी ने कुछ नहीं कहा। "अर्रे यार, याद आया, आज तो ..निवे..।", "क्या आज तो...?", "नहीं कुछ नहीं ,छोड़ो यार ,तुम सही से स्केच पूरा करो ,नहीं तो तुमको भी डोज़ मिलेगा।" बात आई गयी हो गयी।


तन्वी रोज समय से पहले पहुंचती और अपनी जगह पर जा कर चुपचाप अपने कैनवास पर लग जाती। आज भी वो जल्दी चली आयी थी। वो ऑफिस में घुसी ही थी कि उसे दो आवाजें सुनाई पड़ी। उसके फ़ोननपर रुचिर की कजेल आ रही थी और साथ ही किसी के कराहने की आवाज भी सुनाई दी। उसने फोन रिसीव किया और वह आवाज की ओर बढ़ी। "हेलो ","हाय, कहाँ हो?","अभी अभी ऑफिस पहुंची हूँ","लौट आओ, तुम्हरे घर मे बैठा हूँ" रुचिर दूसरी तरफ से बोल रहा था।फोंन पर बात करते करते उसने  देखा मयंक फर्श पर दीवार से पीठ टिकाए बैठा है। उसके आंखें खुली थी लेकिन पुतलियां ऊपर की ओर थी। वह बमुश्किल कुछ बोल पा रहा था।शायद अपने आस पास तन्वी के होने का आभास हुआ।
" त...त..तन्वी"
"मयंक, क्या हुआ, तुम ऐसे ?" तन्वी फोन पर बात करना भूल कर भाग कर मयंक के पास पहुंची। उसने मयंक को जैसे छुआ वह लुढ़क गया।
तन्वी ने बड़ी मुश्किलो से उसे उठाया और बिठाया। लेकिन उसके शरीर की ताकत जैसे खत्म हो रही थी।"प्लीज मयंक , आंखें खोलो, कुछ तो बताओ ,क्या हो रहा है तुम्हे?!!", "पानी..." मयंक ने बहुत धीमी टूटती आवाज में कहा।वो लगभग पूरा तन्वी पर लुढ़क गया था।तन्वी ने उसे संभालते हुए अपने स्लिंग बैग से पानी की बोटल निकाली और उसे पानी पिलाने की कोशिश करने लगी।पानी मुह से इधर उधर गिर रहा था ।
मयंक और तन्वी दोनो के कपड़े भीग गए थे। तन्वी ने इधर उधर देखा और जोर से चिल्लाई "हेल्प...हेल्प कोई है यहाँ ,प्लीज जल्दी आइये।" ऑफिस में उसकी आवाज इको हो रही थी।"है ईश्वर मदद करिये!"तन्वी बुदबुदा रही थी।

तन्वी खुदलो बी पी की पेशेंट थी, इसलिए अपनी पानी की बोटल में हमेशा नींबू पानी रखती थी। शायद उसी की वजह से मयंक थोड़ा नार्मल होने लगा था। तन्वी ने मयंक को संभाला हुआ था।मयंक को होश आने लगा। उसने तन्वी को देखा। तन्वी उसके चेहरे को थपथपा रही थी। " प्लीज, होश में आओ मयंक, कुछ बताओ तो मैं कुछ कर पाऊँ"

मयंक ने उसके कान में कहा "मेरा बैग..." तन्वी ने तुरंत सामने गिरे उसके बैग को पैरों से खींच कर एक हाथ से खोला। उसने पूरा बैग टटोला। मयंक ने फिर कहा"अंदर की पॉकेट..." तन्वी ने पॉकेट खोली एक दवाई की स्ट्रिप थी। फटाफट उसने एक गोली मयंक को खिला दी। मयंक अब भी उसी पर निढाल हुआ पड़ा था।

कुछ लोगों के चलने की आवाज आई।तन्वी फिर बोली "हेलोsss कोई है प्लीज़ हेल्प..।" प्रियम शाह और बाकी स्टाफ के दो चार लोग ऑफिस आ चुके थे।सबने मयंक को तुरंत उठाया और हॉस्पिटल की ओर भागे। हॉस्पिटल पहुंचने से पहले मयंक दुबारा बेहोश हो गया था। प्रियम शाह और तन्वी पूरा दिन हॉस्पिटल में रहे ।

"कई बार कहा है इसे घर से किसी को बुला ले साथ रहने के लिए मगर सुनता ही नहीं" प्रियम शाह फोन पर किसी को कह रहे थे। तन्वी मन ही मन मयंक के ठीक होने की दुआ करे जा रही थी। "मेरे साथ रहने को भी तैयार नहीं होता। एनीवे, डॉक्टर जैसा कहते हैं... बताता हूँ। "

प्रियम शाह ने फोन डिसकनेक्ट किया और तन्वी के बगल में आकर बैठ गए। एक गहरी सांस लेते हुए तन्वी को देखा और कहा " तुम भी अकेले ही रहती हो ..है न?","जी सर", "हम्म..।"

डॉक्टर ने मयंक का चैक अप करने के बाद उसको तीन दिन हॉस्पिटल में रखने और किसी एक को वहां रुकने को कहा। प्रियम शाह ने तन्वी की ओर देखा। तन्वी ने कहा "मैं रुक जाऊंगी सर।","ओके फाइन, आज रात तक घर वाले भी आ जाएंगे।"
दोपहर में तन्वी ने मयंक को सूप पिलाते हुए कहा " तुमने आज डरा दिया सबको" ," सोरी यार, दवा लेना भूल जा रहा था कुछ दिनों से", "पर ये लापरवाही ठीक नहीं न "," हम्म..पर होश में होता तो मजा ही आ जाता" मयंक की आवाज में शरारत आ गयी।" अभी भी मसखरी..?" तन्वी ने डांटते हुए कहा।
" अरे माँ मर गया !!", "क्या हुआ?"तन्वी परेशान हो उठी।मयंक ने बड़ा दुखी चेहरा बनाते हुए कहा " सूप के साथ डांट पिला दी तुमने।" , "तुम..!" तन्वी ने उसे आंखें दिखाते हुए कहा। फिर आवाज में नरमी लाते हुए बोली" तुम ठीक हो जाओ पहले फिर जितना मरजी हंसी मजाक करना ।"
मयंक ने चुपचाप सूप पिया और गंभीर हो कर बोला" थैंक्स तन्वी, आज तुम समय पर न होती तो... उसका क्या होता?", "किसका क्या होता?" तन्वी पास रखे स्टूल पर बैठते हुए बोली। "वही जिसका मैं सुहाग बनूंगा कभी...हहहहहहह" मयंक फिर चहकने लगा। तन्वी ने सर हिलाते हुए उसे देखा और कहा "क्या हो तुम?!"

शाम को डॉक्टर्स के साथ प्रियम शाह और ऑफिस के स्टाफ आये । प्रियम तन्वी के लिए थर्मस में कॉफ़ी ले कर आये थे। तीन चार घंटे मयंक के साथ बिताने के बाद प्रियम शाह ने कहा "तन्वी चलो तुम्हे घर छोड़ देता हूँ।" तन्वी ने सवालिया नजरों से उन्हें देखा "..मयंक के मामा जी पहुंचते ही होंगे। तब तक ये सब लोग हैं यहां" स्टाफ के लोगों की ओर इशारा करते हुए कहा।

"चलो बाय मयंक...कल मिलते है" , " पक्का आओगी ?" मयंक बच्चे जैसी मासूमियत से बोला। तन्वी मुस्कराते हुए बोली " श्योर बडी " और प्रियम शाह के साथ हॉस्पिटल से बाहर चली आयी।

कार में बैठते ही तन्वी को याद आया कि सुबह रुचिर ने काल किया था। उसने फोन उठाया देखा , रुचिर के 3 मिस कॉल और 2 मैसेज थे। उसने तुरंत मेसेज चैक किया। रुचिर ने नाराजगी जताई थी। वह काफी देर तक घर पर उसका इंतजार करता रहा था।
प्रियम शाह ने कार के सीडी प्लेयर पर ग़ज़ल लगा दी। जगजीत सिंह जी की ग़ज़ल "वो खत के पुर्जे उड़ा रहा था .." चलने लगी। इधर तन्वी ने रुचिर फोन मिलाया।घण्टी जाती रही लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ। उसने कुछ देर बाद फिर फोन मिलाया। इस बार पहली रिंग में उठ गया ।"हेलो"दुसरी तरफ से कोई मीठी आवाज में बोल रही थी। तन्वी ने चौंक कर फोन को देखा और नंबर चेक किया, नम्बर रुचिर का ही था। "हेलो, रुचिर जी से बात हो सकती है ?" प्रियम शाह ने कार में बजते म्यूजिक को बंद कर दिया। " आप कौन"," जी मैं.. मैं तन्वी", " ..किसका फोन है?" पीछे से रुचिर की आवाज सुनाई पड़ी। "कोई तन्वी है!" फोन के दुसरी तरफ खामोशी दी छा गयी।अगले पल"हेलो तन्वी, अभी मीटिंग के बीच मे हूँ ,बाद में बात करता हूँ।" कह कर रुचिर ने फोन काट दिया। तन्वी ने फोन को पर्स में रखा और कार के बाहर देखने लगी ।

कुछ देर बाद प्रियम शाह ,ने तन्वी को उसके घर के नीचे ड्राप किया ।तन्वी सीढ़ियों पर पहुंची ही थी कि प्रियम शाह ने उसे पुकारते हुए कहा " तन्वी...सुनो...कल ऑफिस पहुंचना पहले, कुछ ड्राफ्ट है वे जल्दी पूरे करने हैं।" तन्वी में पलट कर देखा ।" ....उसके बाद साथ चलेंगे... मयंक से मिलने" प्रियम शाह ने मुस्कराते हुए कहा। तन्वी को प्रियम शाह का इस तरह से कहना कुछ अटपटा सा लगा।मगर उसने सिर्फ सर हिला कर हामी भर दी। प्रियम शाह मुस्कराते हुए कार में आगे बढ़ गए।
सुबह प्रियम शाह ने उसके घर के पास पहुंच कर कॉल किया "तन्वी रेडी हो तो नीचे आ जाओ, सीधे हॉस्पिटल चलते हैं।" तन्वी नीचे आयी देखा कार में पीछे की सीट पर कोई सुंदर सी महिला भी बैठी है । वो प्रियम शाह के सर के कॉलर को सही करते हुए कुछ कह रही थी। तन्वी को आता देख वह महिला मुस्कराई और कार का गेट खोल कर उसे पास बैठने को कहा ।"हेलो तन्वी!","हेलो मैंम " तन्वी ने शिष्टता से कहा।" थैंक्स... कल तुमने मयंक की हेल्प की" तन्वी ने मुस्करा कर प्रियम सर और उस महिला को देखा।" ओह , में पहले अपना परिचय दे दूं ..मैं सुगंधा हूँ..प्रियम की बेस्ट फ्रेंड!" उस महिला ने तन्वी को गौर से देखते हुए कहा। " तन्वी ,ये मेरी भाभी जी हैं, मयंक और ये एक जैसे हैं ..हहहहहह ।" प्रियम शाह ने बात काटते हुए कहा। "क्या प्रियम ...तुम..थोड़ा तो देखने ..." ," तन्वी ,मयंक को शायद आज शाम डिस्चार्ज करेंगे।" प्रियम शाह ने बात बदलते हुए कहा।"आज शाम!!??" ," हां , और वो तुम्हारी बात ज्यादा सुनता है, उसे समझाना की घर से किसी को साथ रहने के लिए बुला ले या फिर ...", "या फिर क्या?" सुगंधा ने पूछा "या फिर...घर बसा ले।" प्रियम शाह ने कहते हुए गेयर बदला और हॉस्पिटल की ओर जाने वाली सड़क पर कार को मोड़ लिया।

मयंक डिसचार्ज हो कर घर लौट आया था । तन्वी के समझाने पर उसने अपने छोटे भाई को अपने साथ रहने के लिए बुला लिया।

बीते दिनों तन्वी और मयंक एक दूसरे के काफी संपर्क में रहे थे ।दोनो के बीच एक अच्छी दोस्ती हो गयी। प्रियम शाह भी इन सब के बीच दोनो पर काफी भरोसा करने लगे थे। वे दोनो को अब अपने साथ शहर में होने वाली काफी एक्सहिबिशन और इवेंट्स में ले जाने लगे थे। लगता था जैसे तन्वी की जिंदगी अब आसान हो चली थी।

 तन्वी आज  ग्रोसरी स्टोर में घर के लिये समान खरीद रही थी, की उसे एक बच्चे की जिद सुनाई दी" पापा मुझे ये कलर नहीं चाहिये, ये बहुत लाईट होते हैं।, उसने झांक कर देखा हाथों में सब तरह के कलर लिये डेनिम जीन्स और टी शर्ट पहने कोई आदमी अपने बच्चे को मना रहा था। बच्चे ने तन्वी को झाँकते देखा तो थोड़ा सकुचा गया। इस आदमी ने पलट कर देखा, ये प्रियम शाह के जैसा दिख रहा था। तन्वी चौंक गयी उसने एक नजर फिर उसे देखा, वह व्यक्ति मुस्कराया। "हेल्लो मैम !", "हेल्लो, आप ?!" वो प्रियम जैसा दिख रहा था मगर प्रियम नहीं था। " आप तन्वी जी हैं न ?!", "जी, मगर आप कैसे ?!", "प्रियम मेरा छोटा भाई है, उसीने तस्वीरों में आपको दिखाया था। ", " तस्वीरों में?", " ग्रूप फोटोस ऐन्ड यौर वर्क ", " ओह, पर आप?", " पापा प्लीस चलो ना, मुझे मिल गया मेरा कलर" उस बच्चे ने बांह खिंचते हुए अप्ने पापा से कहा ", "ओके बेटा चलो, नाईस मीटिंग यू मैम, " तन्वी ने मुस्करा कर सेम हेयर कहा, और अपनी ग्रोसरी लेने चली गयी।

अगले दिन प्रियम पास आए और कुर्सी खींच कर उसके पास बैठ कर बोले" शिवम बता रहा था कि कल आप उस से मिली। " " जी सर, आपका भतीजा बहुत क्यूट है" तन्वी ने कहा" सब कहते है मुझ पर गया है " तन्वी ने प्रियम को गौर से देखा " नहीं तो ! आपकी शक्ल तो नहीं लगी", प्रियम सर  हँस पड़े, हसते हुए उसने कहा " उसे मेंरी तरह रंगो से प्यार है। "तन्वी झेंप गई।  

        मयंक वहीं पास में बैठा अपना पीस फाइनल कर रहा था। सर के जाने के बाद बोला "क्या अदा है तन्वी डियर, ऐसे बैठी रहो, एक स्केच बना दूं । ", "मयंक जी..प्लीज बिहेव। ","धत्त तेरे की ,जी लगा कर सब गड़बड़ कर देती हो। ये जी वःगैरह सर के लिए रखो यार।" मयंक ने मुस्करा कर हाथ आगे बढ़ाया । तन्वी ने ब्रश से हैंडशेक किया ।"कमाल ही हो तुम यार, अच्छी छनेगी तुमसे।" मयंक की शक्ल में तन्वी को एक अच्छा दोस्त मिल रहा था।


       शाम हो रही थी, तन्वी के सर में दर्द था। वो बालकनी में डूबते सूरज के सामने बैठी सर पर बाम लगा रही थी। फोन पर एक मेंसेज फ्लैश हुआ " हाय " उसने तुरंत देखा, रुचिर था और कुछ लिख रहा था। " हेल्लो", " तुम अब याद भी नहीं करती?!" तन्वी के दीमाग में आया 'वीक ऐंड है, अभी खाली बैठा बोर हो रहा होगा तभी मेंसेज, वरना ', " मेंरी कलीग तुम्हारी साइंड पैंटींग गिफ्ट में लेकर आई है", " ओह!", " तुम पैंटींग भी करती हो !।।।बताया नहींं कभी ?!", " बस शौकिया रंगो से खेल लेती हूँ", " हाँ भई  खेलना तो तुम,  वैसे भी बहुत अच्छा जानती हो ", तन्वी रुक गई, उसने नेट ऑफ़ कर दिया। 

         रुचिर का अंदाज अच्छी तरह से जानती थी। उसे अन्दाजा था की इसके बाद वो बात को कहां ले जायेगा। उसे तन्वी को ह्युमिलेट करने में बहुत सुख मिलता था। जब तन्वी रो लेती थी तब वो उसे नरमी से पेश आता जैसे कुछ हुआ ही नहीं। इस वक्त तन्वी का सर फटने सा लगा। वो अन्दर अपने बिस्तर पर चली आई। जैसे वो लेटने को हुई, फोन बजने लगा, रुचिर ही होगा, उसक अहंकार बर्दाश्त नहीं कर पाया होगा तन्वी का इस तरह बात बीच में छोड़ चल देना। तनवी ने सीधे फोन रिसीव कर कान में लगा लिया और झुंझलाते हुए  बोली

 " देखो रुचिर मेरा सर फटा जा रहा है, तुम्हे भड़ास निकालनी है न!  बाद में निकाल लेना। मैं खुद कॉल कर लूंगी ओके?! पर अभी बात नहीं कर पाऊंगी। " 

' हेलो... तन्वी, मै प्रियंम शाह ।"

" ओह सर, आप ?"

     प्रियम को तमिलनाडु बुलाया गया था एक सेमिनार में 6 दिन के लिये। उसे अपने साथ दो त्रैनी को लाने को कहा गया था। इस वजह से तन्वी और मयंक को साथ ले जाना चाहते थे। दोनो को अच्छा एक्सपोसर मिलेगा।

        तन्वी, मयंक और प्रियम सेमिनार के बाद आस पास के जगहों को देखने निकले थे। लोकल बाजार कुछ अलग दिखते थे। प्रियम ने दोनो को बज़ार को अच्छी तरह देखने को कहा। तन्वी मार्केट के एक कोने पर ही अटक गयी। दीवारों पर इतनी सुन्दर पैंटींग और रंगों का इतना मोहक नजारा उसका मन किसी फूल की तरह खिल गया। 

          " ये निवेदीता और मैने बनायी थी " प्रियम सर ने उसके पीछे से आकर बोला । " बहुत सुन्दर है " तन्वी उसी में खोयी उस पैंटींग को हाथों से छूती महसूस कर रही थी, " कितना प्यार भरा है इसमें ", " हाँ, हम दोनो ने रात में इसे बनाया था ", "रात में सर ?!", "हाँ पूर्णिमा थी उस दिन, ऐसे ही निकले थे हम दोनो, उसे ये दीवार पसंद आई थी, जिद कर बैठी थी की इसे हम हमारे प्यार का रंग दे दें ......." तन्वी ने आवाज में नमी मजसूस की तो पलट कर  देखा ।प्रियम सर की आँखें भर आईं थी।, " वाव, ये कितनी सुन्दर पैंटींग है सर!!" चहकता हुआ  मयंक भी वहीँ आ गया। और उसने एक फोटो ले ली।

     रात के खाने के बाद, उसने प्रियम को होस्टल (जहां वे सब ठहरे थे) के बरामदे में टहलते देखा। प्रियम सिग्रेट के छल्ले बना रहे थे। वो फर्स्ट फ्लोर पर अपने रुम की ओर चल दी। वो रुम का दरवाजा खोल ही रही थी की प्रियम सर का काल आया। उसने रीसीव किया " ओह ! मैं भूल गया, सॉरी ", " क्या सर, समझी नहीं ?", " बहुत रात हो गयी, गुड नाइट तन्वी", प्रियम की आवाज में उसे लगा जैसे रुंधे हुए गले से बात हो रही हो। " ओके सर गुड नाइट। " 

        तन्वी ने अपने रुम की खिड़की के पर्दे हाटाए। आसमां में पूरा चाँद उसकी खिड़की के करीब लग रहा था, 'वाव !!! आज ब्लू मून है।' उसकी नजर नीचे गयी। देखा बहुत दूर तक फैले लान में  प्रियम एक सीमेंट सलाह की बेंच पर अकेले बैठे हुए थे। तन्वी ने देखा वह अपनी आँखें पोछ रहे थे। अचानक प्रियम ने पलट कर उसकी खिड़की की ओर देखा। तन्वी को देख उन्होने हाथ से हेल्लो किया। तन्वी खिड़की से पीछे हट गयी।

     उस वक्त उसे रुचिर बहुत शिद्दत से याद आया। रुचिर भी उसे इसी तरह हाथ हिला कर  हेल्लो किया करता था। उसने फोन के मेंसेज बॉक्स को चैक किया, रुचिर के दो मैसज थे। उसने बहुत तेजी से उंगलियां चलाई और मेंसेज पढ़े।

   तन्वी और तन्हा हो गई। रुचिर ने कटाक्ष करते मेंसेज भेजे थे। 'क्या मैं इसी लिये रुचिर से मिली थी की हर बार जलील और तन्हा कर दी जाऊं।' वो उठी, शाल लपेटा और नीचे उतर आई।

     प्रियम अब भी वहीँ बैठे थे, तन्वी को आता देख वो बेंच पर एक तरफ खिसक गये। तन्वी कुछ दूरी पर बैठ गयी। " रुचिर को मिस्स कर रही हो ?" तन्वी हैरान हो कर प्रियम को देख रही थी। "आप रुचिर को कैसे जानते है सर।", "तुमने उस दिन फोन पर मुझे रुचिर समझ कर डांट दिया था "।तन्वी के मन में भरा दर्द उसकी आँखों से बहने लगा। 

       प्रियम ने उसे रुमाल दिया " तुम दोनों की लड़ाई अभी तक चल रही है क्या?", तन्वी कुछ नहीं बोली उसका गला भर आया। "...मगर जिंदगी में बेमतलब की गलतफहमियां जरुरि नहीं है तन्वी,  तुम दोनों को जितनी जल्दी हो सके मनभेद दूर कर लेने चाहिए।" ,"जी सर " तन्वी ने आँसूं पोछे। प्रियम सर ने सिगरेट का एक लंबा से कश लिया।और आसमान में चाँद को देखने लगे। तन्वी भी उनकी देखा देखी चाँद को देखने लगी। उसके चेहरे पर एक पल को मुस्कान आ गयी लेकिन अगले ही पल उसकी आंखें फिर डबडबा गयीं। " तुम लोग आपस मे रात में बात तो करते ही होंगे..बात कर लो। तुम्हारा मन भी शांत हो जाएगा।" प्रियम सर ने उसे कहा। तन्वी चुपचाप आप के फोन से खेलती  रही। फिर प्रियम सर ने आगे कुछ नहीं कहा।

        काफी देर दोनो वहां चुपचाप साथ बैठे रहे । रात गहराने लगी थी और ठंडक भी  बढ़ चली थी। तन्वी ने अपने शाल को और कस के लपेट लिया। कुछ देर बाद प्रियम सर ने कहा ,"वाक करें ?!"। 

    टहलते हुए प्रियम सर ने कहा "सुन पा रही हो?" , "क्या सर?" ," सुनो .. पेड़ों की सरसराहट  किसी धुन सी नहीं लग रही?" तन्वी ने ध्यान दिया । वाकई एक लय में पत्ते हवा से सरसरा रहे थे। तन्वी को लगा जैसे ये पेड़ रुचिर का नाम एक लय में गा रहे है। उसका मन हुआ कि वो रुचिर से बात करे।उसे साथ बिताए पल याद आने लगे थे। उधर प्रियम चलते हुए  निवेदिता के दिये लाइटर को बार बार जला बुझा रहे थे।

   साफ था कि पूरे चाँद की रोशनी में दो अलहदा इंसानों के प्यार में डूबे, तन्वी और प्रियम जैसे अपनी अपनी खूबसूरत यादों में भीग रहे थे।

 " चलो आज तुम्हे अपनी कहानी बताता हूँ, शायद तुम मेरी बातों का मतलब समझो। " दोनो वापस उसी स्लैब पर आकर बैठ गए। तन्वी गौर से प्रियम सर को सुनने लगी। प्रियम सर कह रहे थे " निवेदीता मेरा पहला प्यार थी, वो मुझे छोड़ कर न जाती तो ..."

 "छोड़ के न जाती मतलब ...?"

    प्रियम सर अपनी और निवेदिता की कहानी बताने लगे। प्रियम सर पहली बार निवेदिता से एक एक्सहिबिशन मे मिले थे।वो ऑर्गनाइज़र से मिलने  के लिए मैनेजर से झगड़ रही थी। उसकी समझ से उसकी पेंटिंग्स को सही डिसप्ले नहीं दिया गया था। प्रियम सर ऑर्गनाइज़र में से एक थे।

   उसका शोरशराबा सुन कर वो केबिन से बाहर आये थे। उन्हें आते देख वो उनकी तरफ बढ़ गयी थी ," ऑर्गनाइज़र अंदर है क्या ? " प्रियम शाह ,एक दम सादे कपड़ों में थे। जिसकी वजह से वह उसे एक एम्प्लोयी समझ बैठी थी।"बोलो भी ..है क्या अंदर?" ,"आप मुझे बताइये क्या बात है", "यहां का भी वही हाल है जो सब जगह का है, इधर आओ....ये  इसे देखो ,ऐसे डिस्प्ले होता है? नए हैं तो क्या हुआ?  ऐसे ट्रीट मेन्ट दिया जाएगा?" वह उनका हाथ खींचते हुए अपने प्लेटफॉर्म पर ले गयी। 

       प्रियम शाह ने उसे गौर से देखा । वो लंबे घुंघराले बालों वाली, छोटे कद की, सांवली सी पहाड़ी लड़की थी। बमुश्किल उसके कांधे तक पहुंचती थी लेकिन उसके हाथों  की पकड़ इतनी जबरदस्त की प्रियम की बांह दुखने लगी थी। किसी तरह प्रियम शाह ने उसे समझाया कि इस तरह की प्लेसिंग के पीछे एक लॉजिक है, नया ट्रेंड है। जब क्राउड उसकी पेंटिंग तक बार बार आने लगा तब जा कर वह कुछ शांत हुई थी और प्रियम के लिए कॉफ़ी ले कर आई थी।

"पहाड़ियों को तो चाय बहुत पसंद होती है?!"

" हां होती है बट आई फाइंड दिस रिलैक्सिंग!"

"सो... तुम्हारा  एम्बिशन क्या है?" कॉफी की सिप लेते हुए प्रियम शाह ने कहा।

"है एक "

"शेयर"

" ओके...मेरा एम्बिशन है कि मेरी पेंटिंग्स की एक इंटरनॅशनल एक्सहिबिशन हो और उसके बाद..."

"उसके बाद ..?"

"...धूमधाम से शादी और क्या?!" उसने ताली बजाते हुए कहा।  प्रियम शाह उसके कहने के अंदाज पर हंस पड़े।

"ओके..ख़ैर आप ने अपना नाम तो बताया नहीं मिस निवेदिता?!"

" ओह  सॉरी माय बैड , मैं निवेदिता ...एक मिनट आपको पता तो है मेरा नाम !" निवेदिता ने प्रियम शाह से कहा। प्रियम शाह ने मुस्कराते हुए उसे देखा ।निवेदिता ने तुरंत हाथ मिलाने के लिए  प्रियम की ओर अपना हाथ बढ़ाया "अपना नाम तो बता दो डियर ।" ,"प्रियम शाह !" ,"प्रियम शाह ..ओके..अरे नहीं... तुम तो ऑर्गनाइजर्स में से हो न!!", निवेदिता ने अपनी छोटी छोटी आंखों को बड़ा करते हुए कहा।"हाँ जी", "बड़े तेज हो तुम ", " तुमसे थोड़ा कम ।' 

    निवेदिता प्रतिभाशाली, और जिंदगी के लिए अनेक सपने लिए हुए थी। धीरे धीरे प्रियम शाह को निवेदिता का अल्हड़, बेबाक और खुशमिज़ाज होना भाने लगा। निवेदिता भी उसे पसंद करने लगी। दोनो अक्सर एक्सहिबिशन और प्रोजेक्ट्स के सिलसिले में साथ-साथ देश दुनिया मे ट्रेवल करते। किसी तीसरे की दोनो को जरूरत ही नहीं लगती थी।कुछ समय बाद वे दो हो कर भी दो नहीं रहे थे।अब लोगों के बीच निवेदिता मतलब प्रियम और प्रियम मतलब निवेदिता हो चुका था।

   अचानक से निवेदिता उसे अपने घर पहाड़  लेकर गयी। प्रियम हैरान थे जान कर कि निवेदिता एक शाही परिवार से ताल्लुक रखती थी। जिसकी अब एक रिसोर्ट चेन थीं। इतने समृद्ध घर की इकलौती होने के बावजूद वो घर से इतनी दूर, शहर में एक छोटा सा फ्लैट लेकर एक आम सी जिंदगी जी रही थी। और कभी उसने जिक्र तक नहीं किया था कि वो किस फैमिली को बिलोंग करती है।

     हालांकि उसने प्रियम शाह को लेकर अपने मन की बात अपने घर वालों को काफी पहले बता दी थी। इसलिए प्रियम शाह को घर आया देख उन्होंने उसके सामने तुरंत निवेदिता और उसके विवाह का प्रस्ताव रख दिया। मगर प्रियम शाह को इस बारे में जरा भी अंदेशा नहीं था। वो सकपका गया था। ऐसा नहीं था कि वो निवेदिता से प्यार नहीं करता था  या अपने परिवार वालों से बात नहीं कि थी ।लेकिन उसका सोचना जरा अलग था। 

        प्रियम शाह को निवेदिता के एम्बिशन की बात याद थी और वे उसकी पेंटिंग्स की इंटरनेशनल एक्सहिबिशन के लिए लगे हुए थे। जिसे वो निवेदिता को सरप्राइज देना चाह रहे थे।उसके बाद वह निवेदिता को प्रोपोज़ करते ।मगर उस वक्त उसके मुह से निकला " फिलहाल कुछ समय रुक जाते हैं।" निवेदिता ने उनकी इस बात को गलत ले लिया। उस वक्त वो  कुछ नहीं बोली। 

पहाड़ से लौटने से पहले पूरे परिवार के साथ वे सब पिकनिक के लिए गए। प्रियमशाह को पता नहीं था कि निवेदिता के अंदर हर दिन हर, घंटा एक गतलफहमी का गुबार बढ़ते जा रहा था। वे सब उस दिन 'लवर्स एंड'  पर मैट बिछाए आपस मे हंसी मजाक कर रहे थे। बातों बातों में निवेदिता की मां ने फिर पूछ लिया  "प्रियम हम निवेदिता को लेकर तुम्हारे लिए श्योर रहें न!" , प्रियम शाह कुछ देर चुप रहे, निवेदिता ने तब प्रियम शाह की ओर एक उदास नजर से देखा और उठ कर वहां से चल दी ।

        प्रियम ने उसके इस तरह जाने पर उसे रोका ।लेकिन वो रुकी नहीं।तब प्रियम शाह ने  निवेदिता की मां से अपनी भविष्य की योजना बताई और अपने घर वालीं से बात भी कराई ।सब दोनो की शादी को।लेकर बहुत उत्सुक थे।ये से। जान कर  निवेदिता की माँ बहुत खुश और निश्चिंत हो गईं थी।लेकिन प्रियम ने उन्हें इस सरप्राइज  को बरकरार रखने को कहा। 

अचानक शोर शराबा हुआ।पता चला कि निवेदिता अवनि धूम ने खोई चली जा रही थी कि उसका पैर फिसला और वह गहरी खाई में गिर गयी।

हॉस्पिटल में वह काफी दिन कोमा में रही। प्रियम डीं रात वहीं बना रहा। हर तरह की कोशिशें हुईं। लेकिन प्रियम शाह ने उसे खो दिया।प्रियम शाह बिल्कुल टूट गए। उनके मन मे कसक बहुत गहरे चुभने लगी कि अगर वे उस दिन 'हां 'कह देते या उसे हाथ पकड़ कर रोक लेते तो शायद...। वे दुनिया से अलग थलग हो गए। उस दौरान उनके परिवार ने उनका बहुत साथ दिया।इस दुख की वजह से प्रियम शाह का करियर भी प्रभावित हुआ। सबने सोचा की अब प्रियम शाह कभी भी कम बैक नहीं कर पायेगा।ये सच हो जाता लेकिन प्रियम शाह और निवेदिता के परिवार ने उसे सदमे और गिल्ट से निकाला।  

  धीरे धीरे प्रियम शाह ने वापसी की और निवेदिता के नाम पर कम्पनी खोली और उसमे रम गया। पहली इनटरनेशनल एक्सहिबिशन निवेदिता की पेंटिंग्स की रखी। जिसमे उन्होंने निवेदिता की याद में "स्वप्न मंजूषा" को भी शो केस किया। जिसे बाद में राष्ट्रपति पुरुस्कार मिला।

   प्रियम शाह गहरी सांस भरते हुए प्रेंसेट में लौट आये। तन्वी उनकी और निवेदिता की कहानी सुनते सुनते पिलर का सहारा ले कर सो गई थी। 

      प्रियम सर ने समय देखा 2:30 बज गए थे। सुबह होने में बस डेढ़ घण्टा था ।प्रियम ने निवेदिता को गहरी नींद में देखा, तो वे भी दूसरे कोने पर पिलर का सहारा ले कर, आंख बंद कर वहीं बैठ गए।











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