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Nisha Gupta

Tragedy

4  

Nisha Gupta

Tragedy

सहारा

सहारा

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" तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?", लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"

उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?

" संदली!, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।

" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।

" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? ", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।

" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई....", संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।

" अरे वाह! क्या सीख रही हैं इन दिनों?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।

"अरे संदली मैं तो सच में तुम्हें याद कर रही थी तुम्हें याद है जब तुम बीएससी में थी तब तुमने एक केक कॉम्पिटीशन में प्रतिभाग किया था और तुम जीती थी उस केक का स्वाद आज तक नहीं भूली हूँ, मुझे पता है बेटा तुम बहुत व्यस्त हो पर अगर इस समय तुम मुझे केक बनाना सिखाओ तो मैं केक बना कर जो बस्ती के बच्चे हैं ना उनको उनके जन्मदिन पर उपहार स्वरूप दे दिया करूँगी" जानकी ने बड़े प्यार और अपनत्व से कहा।

संदली देखती रह गई कौन करता है किसी के लिए सभी अपने भी स्वार्थी लगते हैं अब तो, सोच कर संदली बोली "आंटी ठीक है यहां बैठने से अच्छा है मैं आपके नेक विचार को आगे बढाने में सहयोग दूँ ।"

जानकी खुश हो गई धीरे धीरे संदली जानकी के करीब आ गई जानकी की अनुभवी आँखे इतना समझ चुकी थी कि संदली किसी अपने केद्वारा दिए घाव से पीड़ित है जो अब नासूर बन गया है उसकी आँखों का पानी सूख गया है मगर उनके पीछे का दर्द बहुत गहरा ह ।

धीरे धीरे संदली कब आंटी से माँ पर आ गई उसे खुद ही पता नहीं चला ।जानकी के अकेले जीवन में बहार आ गई और संदली कब उससे माँ की तरह चाहने लगी उसे भी नहीं पता चला ।दोनों हर दो चार दिन में बस्ती में जाती और केक मिठाई के साथ बच्चों को खुशियाँ बांटती और समय बिताती ।

"माँ आज मैं यही सो जाऊं" संदली बोली तो जानकी ने कहा "संदली क्यों न ऐसा करो कि जब तक तुम्हारी शादी नहीं होती तुम मेरे पास ही रहो ।दोनों का अकेला पन खत्म हो जाएगा और हम खुशियों को भरपूर जिएंगे और दूसरों से बांटेगें।"

रात को एक ही बिस्तर पर बहुत देर तक बाते करती संदली ने कहा "माँ मैं शादी शुदा हूँ और आपको पता है मैं अपनी ससुराल से भाग कर आई हूँ, ।किसी को नहीं पता कि मैं कहाँ हूँ जब यहां आई थी तो लोगो पर विश्वास नहीं था मुझे। मैं सब से बहुत बोलती अपने को बिंदास दिखाते दिखाते अब ऊब गई ।मेरा मन किसी से नहीं मिलता माँ ।"

"ऐसा क्या हुआ संदली सबको तो ये ही पता है कि तुम अपनी नौकरी की वजह से यहां हो और कुँवारी हो ।"

"माँ ये मेरे जीवन का वो सच है जिसे मेरी जन्म देने वाली माँ भी नहीं जान पाई कभी ।वो मेरे मरने की खबर सन् कर बीमार हुई और कभी बिस्तर से नहीं उठी और चली गई संसार छोड़ कर।"

""ओह मगर ऐसा क्या हुआ था क्या दहेज उत्पीडन?"

" नहीं माँ मैं वो भी सह लेती क्यों कि नौकरी कर के उनका मुँह रुपये से भर देती मगर -----------"

"मगर क्या संदली बोलो मेरा दिल अजीब हो रहा है"

" माँ मेरा पति शादी के लायक नहीं था मैंने इस बात को भी स्वीकार कर दो साल उनके साथ, किसी को कुछ भी बताए बिना गुजार दिये ,मगर एक रात मेरा देवर रात को मेरे कमरे में आया और बोला कितनी खूब सूरत हो कब तक आग में जलोगी तुम्हारी दैहिक जलन मैं शांत करूंगा और भैया कुछ कह भी नहीं पाएंगे समाज, में तुम भी बाँझ नहीं कहलाओगी ।सुनकर मैं सन्न रह गई माँ मेरा वजूद हिल गया मतलब घर में सब को पता था कि राकेश शादी काटने योग्य नहीं है ।"बस मैंने युक्ति से काम लिया और कहा ठीक है "आज तो मेरी तबियत ठीक नहीं हम पाँच दिन बाद मिलते हैं ।"

मुझे समय मिल गया सोचने का और मैं भाग आई ।बिल्कुल सुदूर अनजान जगह जहां मेरा कोई नहीं सब कुछ छोड़ कर ।कुछ दिन बाद शहर में एक मुझसे मिलती जुलती लाश को उन्होंने मुझे समझ कर अन्तिम क्रिया कर भुला दिया ।अपने बच जाने की खुशी मैं शुरू के सालों में भरपूर मनाई मगर अब लगता है दुनिया बहुत खराब है ।

जानकी निःशब्द संदली को अपने साइन से चिपटा कर आँखों के आंसुओं को पीने की कोशिश करती रही ।थोड़ा ठहर कर बोली संदली मुझे आज पूर्ण बेटी और तुम्हें माँ मिल गई ।ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है ।आज दोनों ही सुख की नींद सोइं ।




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