सेवा [6 जून]
सेवा [6 जून]
मेरी प्यारी संगिनी [6 जून]
आज फिर देर हो गई तुमसेेे मिलने में, जानती हो ना आज रविवार है, और सब की फरमाइशों को पूरा करते-करते देर हो जाती है, वैसे तो सारा कामकाज आजकल घर सेे हो रहा है, फिर भी ऑफिस बंद रहनेे पर सभी आराम के मूड में रहते हैं सिवाय मेरे
मेरा मानना है यह भी एक सेवा है अपने अपनों की, अपने परिवार की, सेवा धर्म सभी के लिए अनिवार्य है, सुबह की शुरुआत ठाकुर जी की सेवा से करने पर, दिन बहुत अच्छा जाता है,,
सेवा बुजुर्गोंं की और बच्चों की जो हम पर आश्रित हैं जरूर करनी चाहिए बच्चों की सेवा तो हम खुशी-खुशी कर लेते हैं परंतु जब बात आती है हमारे बुजुर्गोंं की तब हम थोड़ा उन्हें इग्नोर कर देते हैं, जबकि वह भी असहाय होते हैं, उनको भी बच्चों की तरह ही सेवा की जरूरत पड़ती है,,
यह हमेें कभी नहीं भूलना चाहिए कि, एक दिन हमारी जिंदगी की भी शाम होगी, हमें भी किसी के सहारे की जरूरत पड़ेगी, तब हमारा किया हुआ ही, हमारे पास वापस आएगा, अगर यह बात हम याद रखेंगे, तो कोई भी बुजुर्ग असहाय नहीं रहेंगें,,,
आज का "जीवन दर्शन" जो कील आपको बार-बार चुभे, उसे एक बार कस कर ठोंक देना ही सही रहता है,,
आज के लिए बस इतना ही, मिलते हैं कल फिर से, मेरी "प्यारी संगिनी"।