सच्चे प्यार की यादें
सच्चे प्यार की यादें
छोटी छोटी कहानियों के बड़े बड़े किस्से है और बड़ी बड़ी कहानियों के छोटे छोटे किस्से हैं । कभी कभी ख़ामोशी जैसा कोई साथी नहीं होता तो कभी ख़ामोशी से बड़ा कोई दुश्मन नहीं होता। ये तो वक़्त वक़्त की बात है की किसको क्या मिला इस ज़िंदगी से कोई सब खोकर भी आराम सुकून पा जाता है और कोई सब पाकर भी आराम सुकून खो देता है। जिस ज़िंदगी से भागकर खुदको अकेला कर चला ये शक्श आज फिर से महफ़िल की तलाश में शहर शहर भटक रहा है कुछ साल पहले की बात है।
माही : "सागर तुम्हे लगता है जो तुमने सोचा है वो सही है."
सागर : "हाँ मुझे लगता है मैं दतिया शहर से ऊब गया हूँ मेरा मन किसी के साथ नहीं लगता, ,जिसे देखता हूँ ऐसा लगता है जैसे की ये शहर मुझे नोच रहा है।"
माही : "और तुम्हें ये लगता है की यहाँ से जाकर तुम सुखी हो जाओगे।"
सागर : "वो मुझे पता नहीं पर अब ये शहर मुझे मेरा सा नहीं लगता है जिन लोगों के लिए मैं इस शहर में आया था जब वो ही नहीं है तो अब मैं इस शहर में रहकर क्या करूंगा।"
माही : "और मैं, मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं । मेरा प्यार तुम्हारे लिए कोई मायने नहीं रखता।"
सागर : "ऐसी बात नहीं है पर मैं तुम्हे ये सब नहीं समझा सकता, मेरा जाना तय है और तुम मुझे रोको मत । क्योकि मैं रुक न पाऊंगा।"
( माही की आँखों में आंसू थे जिसे सागर देखकर भी अनदेखा कर रहा था वो नहीं जनता था की वो कितनी बड़ी गलती कर रहा है माही ने भी अपने दिल पर पत्थर रख लिया )
माही : "जब तुम्हारे लिए वही सब लोग थे जो तुम्हें धोखा देते रहे। खैर, तुमने फैसला कर ही लिया है तो अब तुम्हें मैं जितना जानती हूँ तुम मेरी कोई बात नहीं मानोगे और तुम्हें ऐसे समझ भी नहीं आने वाला, तो तुम चले ही जाओ पर एक बात याद रखना फिर कभी वापिस मत आना। क्योकि शायद तब तक मैं ज़िंदा ना रहूं और अगर ज़िंदा भी रही तो तुम्हारी न हो सकूँ।"
सागर : "मैं आने के लिए नहीं जा रहा हूँ माही ।"
माही : "फिर ठीक है तुम जाओ।"
(सागर बहुत दुखी था साल भर में उसके माँ बाप गुज़र गए थे और उसके बाद उसके परिवार वालों ने भी उससे रिश्ता तोड़ लिया था इसलिए अब वो इस शहर में नहीं रहना चाहता था पर इस फैसले ने माही को भी उससे दूर कर दिया था जो उससे बहुत प्यार करती थी। अपने दुःख में वो माही के प्यार को भी ख़तम कर रहा था। जो शायद सही नहीं था )
सागर दूसरे शहर मुम्बई चला गया। जहाँ उसने खुद को फिर जिया और एक अच्छा व्यापारी बन गया पर सागर हर शाम खुद को तन्हा ही पाता था वो न चाहकर भी माही को भुला नहीं पाया था क्योंकि सागर भी माही को बहुत चाहता था। उसने फिर माही से मिलने के लिए फिर बापस दतिया आया, पर अब बहुत देर हो चुकी थी माही की शादी हो चुकी थी और सागर आज भी तन्हा ही था उसने पैसा तो बहुत कमाया पर अपना खालीपन कभी भर नहीं पाया। जिस अकेलेपन के लिए वो भागकर आया था आज उसी अकेलेपन की तन्हाई उसे आवाज़ देती रहती थी तुमने माही के साथ ठीक नहीं किया। तुमने माही के प्यार को ठुकरा दिया। तुम आज भी वही हो अकेले वीरान और तन्हा शहर-शहर भटक रहे हो।