सच
सच
आज तेरहवीं थी। औरतें श्यामा को घेर के बैठी हुई थी और श्यामा आंखों में आंसू लिए पत्थर थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह पल में क्या हो गया।अभी तो उसने कुछ ही दिन पहले अपने पति के साथ रामेश्वरम जाने के लिए टिकट बुक करवाया था।और कल शाम पता चला की विहान अब नही रहे । विहान ने अपनी अस्वस्थ्ता के बारे मे घर पर भी किसी को सूचित नही किया था । विहान के ऑफिस से सूचना मिली तब विहान का शव गांव के बुजुर्ग आगरा से गांव ले आये थे।
श्यामा की बड़ी ननद भी भाई की मृत्यु का समाचार सुन दौड़ी भागी गांव आई थी। श्यामा के पास जाकर उसने उसके कंधे बुरी तरह झिंझोड़े। लगभग चीख के वह बोली "अब क्या लेने आई है ? जब वह बुला रहा था तब तो गयी नहीं उसके पास। मर गया वो अकेले, अब तू भी मर जा।" कह कर वह अपनी मां के गले लग कर बिलख-बिलख कर रोने लगी।
उसी दिन, उसी समय देश मे दूसरे कोने पर एक और औरत नन्दिता, श्यामा के पति की तस्वीर को अपने आँसूओं से भिगोये जा रही थी।नन्दिता, जिसके बारे में श्यामा कुछ खास नहीं जानती थी।
आज सबके बीच बुत सी श्यामा पढ़ी लिखी , मेहनती और ससुराल के विपरीत प्रगतिशील विचारों की थी। श्यामा ने विवाह से पहले प्रतियोगी परीक्षा दी थी जिसमे वह पहले ही प्रयास मे सफल हो गई थी। सो शादी के कुछ समय बाद जब रिजल्ट निकला तो श्यामा ने पति से नौकरी करने की इज़ाजत मांगी। नौकरी देश के दूसरे हिस्से मे थी और ससुराल मे पर्दा-परम्परा थी ।औरतें देहरी से बाहर पैर निकलने की सोच भी नही सकती थीं। हालांकी श्यामा की ससुराल मे बहुत तंग हालात चल रहे थे ।एक बडी उम्र की दिव्यांग बहन की शादी नही हो रही थी, छोटे भाई -बहन अभी 10वीं 12वीं मे थे। पिता जी अब खेती बाड़ी कर नही सकते थे, मां भी बीमार ही रह्ती थीं ।विवाह से कुछ माह पह्ले ही डाकिया विहान पोस्ट ओफ्फिस मे परीक्षा दे कर क्लर्क बना था। फिर भी विहान की पगार कम पड़ती थी ।हर महिने दोस्तों से उधारी मे रहता था। श्यामा की ये सरकारी नौकरी ऑफिसर पोस्ट की थी, सबके भविष्य को एक सम्बल मिलता।विहान स्वभाव से दृढ़, व्यवहारिक मगर मीठा बोलने वाला चतुर व्यक्ति था।उसने ने घर वालों को अपनी तरह से समझा दिया और श्यामा को नौकरी करने की इजाजत मिल गयी ।
ससुराल में कुछ समय तक जब तक तंगी रही,दोनो ननदें ब्याही नही गयी, दूजी बहू नही आई तब तक किसी ने भी श्यामा के काम करने पर कोई आपत्ति नहीं दिखाई ।लेकिन जब से परिस्थितियां संभलने लगी और श्यामा के परिवार में एक के बाद एक तीन किलकारियां गूंज उठी तो सास जी की तरफ से दबाव पड़ने लगा कि वह अब नौकरी छोड़ दें और गांव आ जाए। लेकिन उस वक्त विहान ने परिवार की इच्छा के विरुद्ध श्यामा को खुद मना किया कि वह नौकरी ना छोड़े और यह कि वह घर वालों को समझा देगा। इस तरह विहान और श्यामा अपने बच्चों के भविष्य के लिए एक दूसरे से दूर रहकर नौकरी करते रहे।
विहान शुरू-शुरू में हर हफ्ते श्यामा और बच्चों से मिलने उनके शहर आता। धीरे-धीरे यह समय भी बढ़ता चला गया।पहले 15 दिन,फिर महीना डेढ़ महीना, फिर दो महीना और ऐसे करके यह अंतराल धीरे-धीरे अनिश्चित होता गया। श्यामा ने इस बाबत पूछा "सच बताईए क्या बात है?" विहान ने श्यामा को समझाया की क्यूँकी श्यामा नौकरी की वजह से ससुराल को समय नही दे पाती सो वो बीच बीच मे गांव चला जाता है जिस से सब संतुष्ट रहें। इस तरह घर परिवार देखते संभालते दोनो ही अपनी नौकरी मे व्यस्त हो गये।
दूसरे शहर मे विहान किसी कामकाजी इन्सान की तरह जिंदगी जिये जा रहा था । बढते किराये की वजह से उसे घर बदलना पड़ा और एक नये मोहल्ले मे एक कमरा मे रह्ने चला आया। यहीं विहान के जीवन में एक स्त्री का प्रवेश हुआ ।वह भी उसके पडोस के मकान मे किरायेदार थी ।विहान को पता चला की वह स्त्री अनाथ थी, अनाथालय वालों ने उसका विवाह एक हलवाई से करा दिया मगर उसके पति ने उसके कभी मां न बन पाने की वजह से उसे त्याग दिया था।
यह स्त्री और कोइ नही "नन्दिता" थी। उसका स्वभाव मृदु, सरल और सेवाभाव से भरा हुआ था। मोहल्ले मे सब उसके प्रति बहुत सम्मान और आदर भाव रखते थे। वह भी सबके सुख-दुख मे तन मन धन से लगी रह्ती थी । मोहल्ले के लोगों ने मिल कर उसके लिये केटरिंग का छोटा मोटा व्यवसाय भी शुरु करवा दिया था। जिसमे वह विहान को भी टिफिन सर्विस दिया करती थी।बिल्कूल बगल मे घर होने की वजह से दोनो का एक अच्छा परिचय भी हो गया था।
वहीँ विहान बहुत बुरी तरह बीमार पड़ा और घर वालों को इत्तला नही कर पाया। स्वभाव वश नन्दिता ने विहान की बहुत सेवा करी। क्या दिन,क्या रात सब एक कर दिया। नतीज़ा जिस विहान के लिये लोग कह्ने लगे थे की ये नही बच सकेगा, वह नन्दिता की सेवा से स्वस्थ हो गया। दिन-रात अपने आस-पास नन्दिता को करीब पा कर विहान का मन उसकी ओर होने लगा । नन्दिता का स्नेहपूर्ण और परवाह भरा व्यवहार उसे नन्दिता के प्रति प्रेम की ओर ले जाने लगा। उसने नन्दिता को हँसी-हँसी मे अपने मन की भावनाएं बताई। नन्दिता को उसके बारे मे सिर्फ ये पता था की वह पोस्ट ऑफिस मे क्लर्क है ।मज़ाक-मज़ाक मे भावनाएं प्रगाढ़ होने लगी। विहान के मन मे नन्दिता के लिये प्रेम-अनुराग बढने लगा। वह नन्दिता की आम जीवन की समस्याओं को सुलझाने मे सहयोग करने लगा। विहान की परवाह से नन्दिता के मन मे भी प्रेम का अंकुर पड गया । हास परिहास, व्यवहार और नित्य सम्पर्क के जल से प्रेम का अश्वथ पनपने लगा।
उधर श्यामा अपने बच्चों की परवरिश और नौकरी में पूरी तरह से रम गई थी। उसे विहान पर कभी कोई संदेह नहीं हुआ। विहान जब कभी भी घर आता बच्चों के लिए खूब सारे तोहफे और श्यामा के लिए खूब बढ़िया महंगी साड़ियां, चूड़ियाँ लेकर आता और दो-चार दिन बेहद प्यार से अपने परिवार के साथ रहता।श्यामा उसे विदाई मे गांव मे सबके लिये उपहार ,रुपये देती।
एक बार विहान के कमरे पर गांव से उसके चाचा जी पहुंच गए। उन्होंने रात 9:00 बजे विहान के चूल्हे पर नन्दिता को खाना बनाते हुए देखा तो पूछा कि यह महिला कौन है और यहां इस वक्त क्या कर रही है ? विहान ने कहा "यह खाना बनाने वाली है, बगल में रहती है, रोज ताजा खाना इन्हीं की वजह से मिल जाता है "। यह सुनकर उस दिन नन्दिता को बहुत धक्का लगा।बाद मे उसे पता लगा कि विहान विवाहित है और उसके तीन बच्चे भी हैं। वह विहान से प्रेम करती थी मगर अब दूर होने लगी। उसने विहान के कमरे से दूर अप्ना कमरा बादल लिया । नियति की लीला, विहान की तबियत एक बार और खराब हो गई। उसे आनन-फानन में अस्पताल भर्ती करना पड़ा।रक्त की तुरंत आवश्यकता थी और उसका रक्त दुर्लभ था, कहीं नहीं मिल रहा था। मोहल्ले में किसी को पता चला कि नन्दिता का रक्त, विहान के रक्त से मिलता है। वह तुरंत नन्दिता के पास पहुंचा और कहा कि विहान को खून की सख्त जरूरत है। नन्दिता ने मानवता और अपने मन मे उसके लिये दबे प्रेम के नाते उस दिन फिर विहान का जीवन बचाया।
विहान के मन में नन्दिता के प्रति प्रेम की तीव्रता बढ़ गयी। विहान का प्रोमोशन हो गया और तबादला आगरा हो गया।जाने से पहले उसने नन्दिता के कमरे पर जा कर कहा कि वह विवाहित जरूर है किंतु उसे शिद्दत से लगता है की वह उसे भी उतना ही प्रेम करने लगा है जितना अपनी पत्नी से करता है। समाज के नियम से बंधा है नहीं तो वह उसे भी अपनी अर्धांगिनी स्वीकार कर लेता। वो श्यामा को भी मना लेगा उसके और विहान के रिश्ते को लेकर।श्यामा खुले दीमाग की है कोई दिक्कत नही आयेगी ।वो सच मे चाहता है की वह नन्दिता के साथ ही बाकी का जीवन बिताये।
नन्दिता अपने कमरे मे खड़ी सब सुन रही थी। उसे इन सब बातों मे नही आना था । तब विहान ने उसके कमरे मे ईश्वर को साक्षी मांनते हुए सिन्दूर उसकी मांग मे रख दिया। विहान ने नन्दिता को अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया। नन्दिता,जो विहान के प्रेम मे तब भी थी, उन भावुक पलों मे चुटकी भर सिन्दूर और विहान के जीवन भर साथ देने की सौगन्ध पर भरोसा कर गई।इस बार फिर विहान के वचनो ने रिश्तों को अप्ने हिसाब से मोड़ने मे सफलता पायी और नन्दिता के दिमाग से ऐसे अधूरे रिश्तों का अंजाम छुपा लिया। विहान-नन्दिता, अगले ही दिन से पति पत्नी की तरह आगरा चले गये।
नये शहर मे मकान मे किरायेदारी नामा भरते हुए विहान ने उससे वचन लिया कि वह यह सच कभी किसी को नहीं जतायेगी की वह विहान की दूसरी पत्नी है। न ही वह उसकी पहली पत्नी या परिवार वालों से सम्पर्क करेगी, न रखेगी, नही तो श्यामा न सही मगर घर के और लोग लोग नन्दिता की ज़िदगी से उसके विहान , उसके विहान का मान-सम्मान, नौकरी सब छीन लेंगे। विहान अब नन्दिता के लिये पति था सो वह चुप हो गई।अब विहान बहुत प्रसन्न रहने लगा था।उसकी सेहत भी सुधरने लगी थी। वह हर महीने अपने बच्चों से मिलने जाता। श्यामा से अब भी प्रेम से व्यवहार करता और फिर वापस नन्दिता के पास लौट आता।
कुछ ही समय बाद श्यामा का भी तबादला एक सूदूर और अल्प विकसित क्षेत्र मे हो गया और अब उसे तीनों बच्चों को एक साथ अकेले संभालना मुश्किल हो गया। ससुराल मे सब उसकी नौकरी कर्ने की जिद से नाराज ही थे। उसे इल्म नहीं था की विहान ने यह जताया हुआ था की वो चाहता तो है की श्यामा नौकरी छोड़ सास-ससुर की सेवा करे मगर वो बच्चों की पढ़ाई और भविष्य के खातिर न नौकरी छोड़ ना चाहती है न छोटे शहर मे विहान के साथ रहना। तो कोई सहयोग के लिये आगे भी नही आया। बच्चे अभी भी बहुत छोटे थे उन्हे देखने के लिए श्यामा ने अपनी नौकरी से त्यागपत्र देने की सोच ली।
विहान इस बात पर बहुत बिगड़ा, उसे डर लगा कहीं ऐसा ना हो कि श्यामा,उसके मां पापा के साथ गांव मे न रह कर, कहीं उसके पासं चली आए। उसने मझले बेटे की जिम्मेदारी लेने की कही और बेटे को साथ लेकर आ गया। नन्दिता ने उस बच्चे को बहुत प्रेम दिया लेकिन बच्चा अपनी मां की ममता से वशीभूत उनके पास दो दिन भी रुक नहीं पाया। आखिरकार जैसे तैसे विहान ने रिश्वत दे दिला कर श्यामा का विभाग मे तबादला रुकवा लिया।
पलक झपकते तीन साल बीत गए। श्यामा ने विहान और बच्चों के साथ इस साल रमेश्वरम जाने के लिये एल टी सी ली थी कि अचानक यह अनहोनी घट गई। श्यामा को खबर बहुत देर से मिली ,वह अपने जिले के दौरे पर थी। गांव के बुजुर्ग विहान का शव आगरा से गांव ले आये थे।अन्तिम संस्कार के लिये विहान के घर वालों ने श्यामा की प्रतिक्षा नही की।श्यामा विहान का बडा बेटा किसी काम से गांव मे ही आया हुआ था।उसी ने मुखाग्नि दी।
महिने भर बाद श्यामा और उसके तीनो बेटे, विहान के एल आई सी के कागजी कामों को निपटाने पहली बार उसके कमरे मे पहुंचे। तीनो को कमरे के अन्दर से अगरबत्ती की खुशबू लगी। कमरा खुला था। देखा सफेद साड़ी मे कोई औरत विहान की माला चढ़ी तस्वीर के आगे, नीचे जमीन पर घुटनो के बल बैठी है।
अपने पीछे अचानक किसी के होने का आभास होते ही नन्दिता ने पलट कर देखा।सामने विहान का परिवार था। श्यामा ने देखा, नन्दिता की आँखें नम और लाल थीं, बड़े बेटे ने नन्दिता के पीछे विहान की तसवीर के बगल मे इशारा करके कहा "मां!! देखो पापा ने हम सबकी तस्वीरें कैसे पेड़ के जैसे सजाइ थीं !"
नन्दिता ने झट अपनी पासपोर्ट साइज़ फोटो उस दीवार से हटा ली।इस तस्वीर को कुछ ही दिन पहले मरणासन्न विहान ने उन तस्वीरों के पेड़ पर श्यामा के साथ लगाते हुए कहा था। " तुमने कोई अधिकार नहीं मांगा नन्दिता और न मैं खुल कर दे ही सकता हूँ मगर तुम मेरा सच हो।"
श्यामा को कभी चाचा जी बताया था की कोई भली स्त्री विहान के लिये खाना बना कर दिया करती है। ये शायद वही है ये सोच कर उसने नन्दिता को गले लगा लिया। "विहान थे ही ऐसे, किसी को भी उनसे लगाव हो जाय, आपने कई सालों उनका खयाल रखा है, मोह समझ सकती हूँ बहन ", " बहन ! ? " नन्दिता ने सुना फिर नन्दिता श्यामा गले लग कर कुछ देर रोती रही। जब सब थाम गया तो नन्दिता ने कहा "आप सब बैठीये, मैं चाय-पानी लाती हूँ।" कह कर वो चूल्हे की तरफ चली गयी। श्यामा और बच्चे वहीँ सोफे पर बैठ कर सुस्ताने लगे।
नन्दिता ने गहरी साँस लेते हुए एक नजर फिर विहान की तस्वीर को देखा, विहान आँखों मे एक अरज लिये उसे देख रहा था, तस्वीर के उपर चढे शीशे मे उसे विहान की पत्नी और तीनो बच्चे दिखायी पड़े। उसने गैस जलायी, चाय का पानी रखा और नीचे आंच पर अपनी तस्वीर जला दी।
अगले दिन श्यामा और बच्चे एल आई सी का काम निपटा, विहान का सारि यादें समेट वापस अपने घर को चले गये और नन्दिता, अपने साथ , विहान के गुमनाम सच को मन मे लिये वृंदावन निकल गई।